अब्दुल्ला सरकार ने ‘भूमि अधिकार विधेयक’ किया खारिज, कहा- भाजपा का ‘जमीन जिहाद’!
श्रीनगर।
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जम्मू-कश्मीर सरकार ने निजी सदस्यों के भूमि अधिकार विधेयक को खारिज कर दिया। जिसमें राज्य की भूमि पर उन लोगों को स्वामित्व देने की मांग की गई थी, जिन्होंने उस पर अवैध रुप से अपने घर बना लिए हैं।मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला, जिनके पास शहरी एवं आवास विकास मंत्रालय भी है, ने तर्क दिया कि प्रस्तावित विधेयक से भूमि हड़पने के लिए द्वार खुल जाएंगे।

जम्मू-कश्मीर विधानसभा में पुलवामा से पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के विधायक वहीद पारा द्वारा पेश विधेयक में उन लोगों को भूमि अधिकार प्रदान करने का प्रस्ताव किया गया था, जिन्होंने राज्य की भूमि पर अवैध रुप से मकान बनाए हैं।विधानसभा सचिवालय के अनुसार यह विधेयक उन 41 निजी विधेयकों में शामिल था, जिनमें शराबबंदी से लेकर केंद्र शासित प्रदेश में लोकायुक्त व मानवाधिकार फोरम की स्थापना तक के विधेयक शामिल थे।अध्यक्ष अब्दुल रहीम राठेर ने कहा कि बाकी विधेयक अगले सत्र में पेश किए जाएंगे। केवल आठ विधेयक ही सदन में रखे जा सके।

सरकार से आश्वासन मिलने के बाद छह विधायकों ने अपने विधेयक वापस ले लिए। लेकिन भाजपा के बलवानी सिंह मनकोटिया और पारा के प्रस्तावित कानून को सदन में पेश करने के लिए मतदान के लिए रखा। मुख्यमंत्री द्वारा विधेयक वापस लेने के अनुरोध के बावजूद, अध्यक्ष ने विधेयक को ध्वनिमत से पारित कर दिया। लेकिन समर्थन के अभाव में सदन ने उन्हें पेश करने की अनुमति नहीं दी। पारा ने कहा, आप अपनी नीतियों के कारण इसे अस्वीकार कर रहे हैं।

भाजपा इसे जमीन जिहाद कहती है, उनसे मत डरिए। जो लोग पिछले बीस सालों से इन घरों में रह रहे हैं, उन्हें नियमित किया जाना चाहिए और मालिकाना हक के दस्तावेज दिए जाने चाहिए। 5 अगस्त 2019 के बाद के निवासियों को बेदखली के नोटिस मिलने लगे और उन्हें घर खाली करने का आदेश दिया गया। यह विधेयक जम्मू-कश्मीर के लोगों के घरों और अधिकारों की सुरक्षा के लिए है।जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय द्वारा 2020 में रद्द किए गए रोशनी अधिनियम का हवाला देते हुए अब्दुल्ला ने कहा कि वे अदालत में इसका बचाव नहीं कर सकते।

राज्य भूमि अधिनियम (कब्जाधारक को स्वामित्व का अधिकार), 2001, जिसे आमतौर पर 2001 में फारुक अब्दुल्ला के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा अधिनियमित रोशनी अधिनियम कहा जाता है, का उद्देश्य 1990 से पहले भूमि पर काबिज लोगों को कानूनी अधिकार प्रदान करना था। इसने जम्मू-कश्मीर सरकार को 1990 तक राज्य की भूमि पर अनधिकृत कब्जाधारियों को मालिकाना हक देने की अनुमति दी। सरकार ने अनुमान लगाया था कि वह 1990 में प्रचलित बाजार दरों पर भुगतान के बदले कब्जाधारियों को भूमि हस्तांतरित करके 25,448 करोड़ रुपये जुटाएगी।इस योजना के माध्यम से उत्पन्न धन का उद्देश्य बिजली की कमी वाले राज्य में बिजली परियोजनाओं को वित्तपोषित करना था।

इसलिए इसका नाम ‘रोशनी अधिनियम’ पड़ा।मुख्यमंत्री ने विधानसभा में कहा अब प्रस्तावित विधेयक रोशनी से कहीं अधिक है। यदि यह विधेयक पारित हो जाता है तो मैं कल ही घर बनाकर उस पर भूमि अधिकार का दावा कर सकता हूं। हम ऐसा नहीं कर सकते। हमारे पास एक योजना है जिसके तहत भूमिहीन लोगों को पांच मरला जमीन दी जा सकती है। लेकिन जिन लोगों ने अवैध रुप से घर बनाए हैं उन्हें कानूनी अधिकार दिए जा सकते हैं, यह स्वीकार्य नहीं है।








