आईये जानते हैं धनतेरस एवं प्रकाश पर्व दीपावली पर रोचक एंव वैज्ञानिक तथ्य
# जानिए हिन्दू मान्यताओं के साथ बौद्ध, जैन, सिख, आर्य समाज और महाभारत काल से दीपावली का सम्बन्ध
# मलेशिया में हरि दिवाली और नेपाल में तिहार नाम से मनाई जाता है दीपावली
स्पेशल डेस्क।
राजकुमार अश्क
तहलका 24×7
सर्वप्रथम तहलका परिवार की तरफ से समस्त गणमान्य एवं सम्मानित पाठकों को प्रकाश पर्व दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ.. हिन्दू धर्म में अन्य त्योहारों की तरह धनतेरस एवं दीपावली का भी विशेष इतिहास एवं महत्व है। इनसे जुड़ी अनेक मान्यताएं, परंपराएं और रीति-रिवाज हैं, जिनका सम्बन्ध न सिर्फ हिन्दू धर्म से, बल्कि अन्य धर्मों से भी है। इस लेख में आपको धनतेरस और दीपावली से जुड़ी कुछ ऐसी ही बातें पता चलेंगी, जो इतिहास के पन्नों में तो दर्ज हैं लेकिन आम जनमानस उनसे अनजान है।
# धनतेरस
दीपावली से दो दिन पहले धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि जब देवता और असुर मिलकर समुद्र मंथन कर रहे थे तो उससे उत्पन्न होने वाले नौ रत्नों में से एक धन्वंतरि भी थे। धन्वंतरि आयुर्वेद के जनक के रूप में जाने गए और उन्हें देवताओं का वैद्य भी कहा जाता है। पुराणों में इस बात का उल्लेख मिलता है कि कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की द्वादशी को कामधेनु, त्रयोदशी को धन्वंतरि, चतुर्दशी को महाकाली और अमावस्या को महालक्ष्मी का अवतरण इस पावन धरा पर हुआ था। धन्वंतरि की चार भुजाएँ थीं, जिनमें अमृत कलश, औषधि, शंख और चक्र विद्यमान थे। अपने अवतरण के समय ही उन्होंने मानव को आयुर्वेद का ज्ञान कराया था। कहा जाता है कि आयुर्वेद का सर्वप्रथम ज्ञान अश्विनी कुमारों को हुआ और उन्होंने यह विद्या इंद्र को सिखाई। इंद्र ने धन्वंतरि को इसका ज्ञान दिया। उसके बाद ही इसका प्रचार प्रसार हुआ।
धनतेरस के दिन धातु से बने सामानों को भी खरीदने की परम्परा है। सनातनी लोग इसे शुभ मानते हैं। एक अन्य प्रचलित प्रथा के अनुसार इस दिन मृत्यु के देवता यमराज की पूजा करने तथा उन्हें दीपक जलाकर प्रसन्न करने की परम्परा भी है। एक प्रचलित कथा के अनुसार हैम नामक राजा को बहुत तपस्या के बाद पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई लेकिन ज्योतिषियों ने भविष्यवाणी किया कि राजकुमार के विवाह के चार दिन बाद उसकी मृत्यु हो जाएगी। राजा ने पूरी सावधानी बरती कि राजकुमार की दृष्टि किसी स्त्री पर न पडे़, मगर एक दिन एक राजकुमार ने एक राजकुमारी से गन्धर्व विवाह कर लिया। भविष्यवाणी सच हुई और राजकुमार की मृत्यु हो गई। जब यमदूत उस राजकुमार को लेकर यमराज के सामने पहुंचे तो उन्होंने राजकुमारी के विलाप करने का मार्मिक दृश्य बताया और अकाल मृत्यु से बचने का कारण पूछा। यमराज ने बताया कि कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की रात जो प्राणी मेरे नाम से पूजन करके दीपमाला दक्षिण दिशा में रखेगा, उसे अकाल मृत्यु का भय नहीं रहेगा। तभी से इस पूजा की परम्परा चली आ रही है।
# दीपावली मनाने का धार्मिक कारण
दीपावली कार्तिक मास की अमावस्या को मनाई जाती है। यह त्योहार अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार अक्टूबर-नवंबर महीने में पड़ता है। ऐसी मान्यता है कि दीपावली के ही दिन भगवान श्रीराम अपने पिता द्वारा दिए गए चौदह वर्ष के वनवास की अवधि पूर्ण करके और रावण वध करके अपनी पत्नी सीता और अनुज लक्ष्मण के साथ अयोध्या वापस आए थे। अपनी खुशी का इज़हार करने के लिए अयोध्यानगरी के लोगों ने दीप जलाए थे। चूॅंकि वह रात अमावस्या की काली अंधेरी रात थी इसलिए नगरवासियों ने दीप जलाकर पूरे नगर को ही पूनम की रात में बदल दिया था। तब से लेकर आज तक यह परम्परा चली आ रही है।
दूसरी मान्यता के अनुसार दीपावली के ही दिन माॅं दुर्गा ने काली का विकराल रूप धारण कर असुरों का नाश किया था। जैन धर्म के अनुसार इसी दिन जैन धर्म के संस्थापक भगवान महावीर स्वामी को तीन दिन के ध्यान के बाद निर्वाण (मोक्ष) की प्राप्ति हुई थी।
बौद्ध धर्म के अनुसार दीपावली के ही दिन सम्राट अशोक ने हिंसा का मार्ग छोड़कर बौद्ध धर्म अपनाया था। इसीलिए इस दिन बौद्ध धर्म को मानने वाले विजय दशमी के रूप में मनाते हैं।
सिख धर्म की मान्यता के अनुसार दीपावली के दिन ही सिखों के दसवें गुरू गुरू गोविन्द सिह जहांगीर की कैद से मुक्त हुए थे। इस कारण सिख लोग इसे बन्दी छोड़ दिवस के रूप में भी मनाते हैं।
महान समाज सुधारक, चिंतक और आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानन्द सरस्वती को निर्वाण भी दीपावली के ही दिन प्राप्त हुआ था। वेदों के महान ज्ञाता और विद्वान स्वामी रामतीर्थ ने भी अपनी देह इसी दिन त्यागी थी।
महाभारत काल का भी सम्बन्ध इस पर्व से है। इसी दिन दुर्योधन द्वारा दिए गए वनवास एवं एक वर्ष के अज्ञातवास की अवधि को पूर्ण करके पांडव वापस हस्तिनापुर आए थे।
हिन्दू मान्यता के अनुसार इसी दिन माॅं लक्ष्मी क्षीर सागर में प्रकट हुई थीं तथा विष्णु जी से विवाह भी इसी दिन हुआ था।
दीपावली पर कई राज्यों में ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सूप बजाते हुए माता लक्ष्मी के आगमन का आह्वान करने की भी परम्परा है। कई जगह सरकंडी का हुक्का बनाकर उसे जलाकर पूरे घर में घुमाने के बाद उसे बुझाकर छत पर फेंक दिया जाता है। ऐसा करने के पीछे मान्यता है कि इससे घर में मौजूद नकारात्मक ऊर्जा का नाश हो जाता है। दीपावली पर मंदिरों में नया झाड़ू दान करने की भी परम्परा कई राज्यों में है।
# दीपावली मनाने का वैज्ञानिक कारण
आयुर्वेद चिकित्सा विज्ञान के अनुसार जब दो संधियाँ या दो मौसम परिवर्तन काल से गुजरते हैं तो उस समय मनुष्य के शरीर की बीमारियों से लड़ने की क्षमता कम हो जाती है और बीमारी फैलाने वाले कीटाणुओं की सक्रियता बढ़ जाती है। चूंकि दीपावली में भी वर्षा ऋतु के निगमन और शरद ऋतु के आगमन का समय होता है, ऐसे में हमारे ऋषि मुनियों ने बहुत ही वैज्ञानिक आधार पर दीप प्रज्ज्वलित करके वातावरण को शुद्ध एवं कीटाणु मुक्त करने की परम्परा बनाई थी। मिट्टी के दीपों में पंच तैल (सरसों, नारियल, महुआ, तिल, नीम) और देशी घी का प्रयोग करके उसको जलाया जाता है। उससे जो लौ उठती है वह अपने आस-पास के वातावरण को शुद्ध करने के साथ कीटाणु रहित भी कर देती है। इससे बीमारियों के फैलने का खतरा कम हो जाता है। पूरे वर्ष घरों में जो गंदगी फैली रहती है या जहाँ पर सफाई नहीं हो पाती है, वहां पर भी दीपावली में सफाई करके पूरी तरह स्वच्छ कर दिया जाता हैं।
यह प्रकाश पर्व सिर्फ अपने ही देश में नहीं बल्कि विश्व के अनेक देशों में अलग अलग नामों से प्रचलित है। मलेशिया में इसे हरि दीवाली और पड़ोसी देश नेपाल में इसे तिहार के नाम से जाना जाता है।