आसमान से बरसती आग में जल रही जमीन, सूख रहा पाताल
# विशेष : जमीन पर विश्व पर्यावरण दिवस
लखनऊ/वाराणसी
कैलाश सिंह/अशोक सिंह
टीम तहलका 24×7
विकास के नाम पर पक्के घर बने तो खेत कम होने लगे और वाहन बढ़े तो फोर से सिक्स लेन सड़कें बनीं और पंच पल्लव वृक्ष कट गए, सूरज की तपिश से जलने लगी जमीन तो पाताल का रुख करने लगा भूमिगत जल स्तर।

दो दशक पूर्व से देश व प्रदेश भर में चल रहे विश्व पर्यावरण दिवस के बहाने करोड़ों-अरबों पौधरोपण, इसके नाम और संख्या पर खर्च होने लगी पांच गुना से अधिक रकम फ़िर भी आसमान की तरह साफ दिख रही जमीन।

केवल 90 के दशक में सड़कों के किनारे लगे पौधे पेड़ का रूप लिए दिखे, उसी के सहारे हर साल कागजों में पौधरोपण करता आ रहा है सरकारी महकमा, खर्च के नाम पर बढ़ता रहा बजट, तालाबों, नदियों, नहरों के भीटे, गांवों की बंजर भूमि भी खाली।

—————————— —-आज पर्यावरण असन्तुलन का ही नतीजा सामने है कि धरती पर जीवन को भारी कीमत चुकानी पड़ रही है। प्रकृति ने हर जीव-जंतु की मौजूदगी के लिए व्यवस्था दी है। लेकिन विकास की तरफ बढ़ रहे मानव ने पर्यावरण के संतुलन को बिगाड़ दिया। नतीजा सामने है कि सिकुड़ते जंगल के चलते वन्य जीव इंसानों की बस्ती में विचरण करने लगे।

पेड़ कटने लगे तो जमीन जलने लगी और इंसानों के साथ तमाम पशु-पक्षी भी मरने लगे, पेयजल की किल्लत बढ़ने लगी। वाहन बढ़े तो सड़कों का आकर बढ़ा और पंच पल्लव जैसे आम, पीपल, बरगद, पाकर, गूलर, पलास विलुप्त होने लगे।ये वृक्ष कार्बन डाइऑक्साइड को सोखते और आक्सीजन के साथ फल भी देते हैं, जिससे प्रकृति प्रदत्त जीवन की चेन बनी रहती थी।

अब शोभाकारी पेड़ बढ़ते तापमान में दम तोड़ देते हैं। इसका प्रमाण वाराणसी-लखनऊ फोरलेन पर देखा जा सकता है, जिनपर इन पेड़ों को हरा रखने का जिम्मा है वह गायब हैं।90 के दशक में जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की मौत के बाद राजीव गांधी ने पद सम्भाला तब उन्होंने पर्यावरण के महत्व को समझा और पौधरोपण की शुरुआत सड़कों के दोनों किनारों पर पंच पल्लव का रोपण कराने के साथ उनकी सुरक्षा के लिए लोहे और ईंट के ट्री-गार्ड की व्यवस्था सुनिश्चित की।

नतीजा ये रहा कि वर्ष 2014 तक तमाम सड़कों के किनारे बड़े-छोटे वाहन से गुजरने वाले लोग सुरक्षित यात्रा करते रहे। उसी समय के पेड़ों के नाम पर पौधरोपण पर हर जिले में करोड़ों खर्च होते रहे और लाखों पौधे कागजों में रोपे जाते रहे। बढती गर्मी और छुट्टा जानवर पौधों की मौत का कारण बना दिए गए। घरों के गमलों के शोभाकारी पौधे हाइवे के डिवाईडर पर शोभा बढ़ाने लगे, लेकिन उनकी अकाल मौत इंसानों की हो रही (हीट स्ट्रोक) से मौत से कदमताल करने लगी।

हर साल की तरह इस बार भी पांच जून को प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी और सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने चुनाव परिणाम की व्यस्तता के बावजूद पौधे रोपकर अभियान की शुरुआत कर दी, लेकिन वन विभाग की नर्सरी में अभी पौधे ही नहीं हैं। जबकि निजी नर्सरी हरे पौधों से लहलहा रही हैं। सरकारी नर्सरी में जुलाई आते ही लाखों पौधे अचानक उगेंगे और देखते ही देखते रोपण अभियान छात्रों और समाजिक संगठनों के जरिये चरम पर नजर आएगा।

फोटोग्राफी, वीडियोग्राफी व मीडिया से पता चलेगा कि अब गांव से लेकर शहर इतने हरे-भरे हो जाएंगे मानो समूची आबादी जंगल में बसी है। चारों तरफ हरियाली कागजों में हो जाएगी। करोड़ों खर्च दिखाकर सरकारी महकमे अपनी जेब भर लेंगे। इसके बाद फिर अगले साल हाय गर्मी, हाय पानी और लू से मरने वालों की बढ़ती संख्या में अस्पताल से लेकर शमशान, कब्रिस्तान नाकाफी साबित होंगे।

अभी जुलाई आने में करीब दो हफ्ते हैं। बानगी देखनी हो तो किसी गांव के तालाब देख आइए, वहां न पेड़ मिलेंगे और न पानी, कई जगह तो कागजों में दर्ज तालाब भी नहीं मिलेंगे। जौनपुर की बसुही नदी के दोनों किनारे उद्गम स्थल से समागम स्थल तक वृक्ष विहीन हो चुके हैं।

जबकि हर साल यहां लाखों पौधों का रोपण होता है। एक दशक पूर्व यही नदी जंगल नजर आती थी। अब सरकारी टीम नर्सरियों का निरीक्षण कर लक्ष्य के अनुरूप पौधे तैयार करने और हर ग्राम पंचायत को निर्धारित पौधे भी देकर कागजों के पेट भर दिए जाएंगे, लेकिन अबकी इन कागजी खेल पर लगाम लगाने को मुख्यमंत्री ने विशेष टीम लगाई है जो चल रहे कागजी खेल पर नजर रखेगी।