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Monday, June 5, 2023

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खुद से जुड़ा फैसला! क्या हम खुद ले पा रहे हैं?- बीके शिवानी बहन 

खुद से जुड़ा फैसला! क्या हम खुद ले पा रहे हैं?- बीके शिवानी बहन 

स्पेशल डेस्क।
तहलका 24×7
                  जब भी हम कभी उदास, परेशान या नाराज हो जाते हैं तो उस समय हम अपने आप से पूछें या कोई आकर पूछे कि क्या बात है? क्यों इतना मूड खराब है? तो आज के समय में मन एक ही जवाब देता है कि बात ही ऐसी थी। उन्होंने ऐसा कर दिया, उसने ऐसा कह दिया, मुश्किल ही इतनी बड़ी आई है, परेशान तो होना ही था, गुस्सा तो आना ही था। इट इज़ नैचुरल, इट इज नॉर्मल।
इसी तरह कभी हम बहुत खुश होते हैं, बहुत शांत महसूस करते हैं, तो भी अगर कोई पूछे क्या बात है, आज बड़े खुश हो! तब भी हमारे पास एक ही जवाब होता है, बात ही ऐसी थी, खुश तो होना ही है। यह बहुत ढ़ीला सिस्टम है और यह बिलीफ सिस्टम बार-बार हमारे अंदर कौन-सी आदत को पक्का कर रहा है? वह आदत, वह संस्कार एक गुलामी का संस्कार है। हाँ, ‘गुलामी’ शब्द अच्छा नहीं लगता लेकिन इसको गहराई से चेक करते हैं। यह कौनसी गुलामी है। यह कौन-सी डिपेंडेंसी है। यह कौन-सी ऐसी आदत है जो मुझे फ्रीडम एक्सपीरियंस नहीं करने देती। जो मुझे अपनी पसंद का जीवन जीने नहीं देती?
वैसे तो कोई हमें रोके-टोके नहीं कि यह न करो, यह करो, बार-बार कहता रहे तो हम उनको क्या कहते हैं? आपको जो राय देनी है आप दीजिए लेकिन च्वॉइस मेरी है, मुझे चूज़ करने दीजिए। मुझे क्या करना है। बस मुझे निर्णय लेने की पूरी आज़ादी है। दूसरों को तो हम कह देते हैं लेकिन आज हमें यह अपने आप से कहने की ज़रूरत है, क्योंकि कुछ ऐसी डिपेंडेंसीज़ हैं। ऐसी गुलामी है जो सेल्फ क्रियेटेड है। हमने उसको खुद क्रिएट किया है। इससे फ्रीडम भी हम खुद ही खुद को देंगे। यह लड़ाई बाहर की नहीं है। इसे लड़ाई भी नहीं कहेंगे, यह सिर्फ एक छोटा-सा अटेंशन है। एक अन्डरस्टैंडिंग है जिससे हम कम्प्लीट फ्रीडम, इंडिपेंडेंस, स्वराज्य को प्राप्त करेंगे।
हमारा बिलीफ सिस्टम क्या बन गया है? आजकल जो हम महसूस करते हैं, जो हम सोचते हैं, जो हम बोलते हैं, जो हम बिहेव करते हैं, किसी ना किसी सिचुएशन की वजह से होता है। किसी न किसी व्यक्ति के व्यवहार की वजह से होता है। इसको कहा जाएगा ‘इमोशनल डिपेंडेंस तो एक है इमोशनल डिपेंडेंस, दूसरा है इमोशनल इंडिपेंडेंस तब होती है, जब हम खुद चूज करते हैं। और डिपेंडेंस तब होती है जब दूसरों की वजह से वह डिसीजन लिया जाता है। तो अगर हम यह बिलीव करते हैं कि जो हम सोचते हैं, फील करते हैं, हम जो बिहेव करते हैं, वह दूसरों की वजह से हो रहा है।
उस सिचुएशन, उन लोगों के व्यवहार की वजह से हो रहा है तो हम उन पर डिपेंडेंट हो गए ना, कि किसी का एक बोल हमें बहुत खुश कर देता है और किसी का एक शब्द हमें उदास कर देता है। किसी के लिए हम कहते हैं दे हर्ट मी, किसी के लिए हम कहते हैं दे डिसरिस्पेक्टेड मी, दे इंसल्टेड मी। मतलब हमारी आत्मा में खुशी है, गम है, उदासी है, नाराज़गी है या शांति है, स्थिरता है, यह क्या हम खुद चूज़ कर रहे हैं! क्या मैं आज़ाद हूं? क्या मैं स्वतंत्र हूं? यह बहुत ही महत्वपूर्ण सवाल है जो हमें अपने आप से आज पूछना ही पड़ेगा। क्योंकि कितनी बार हम यह कहेंगे कि उसकी वजह से, उनकी वजह से हम खुद की फ्रीडम को खत्म करते जा रहे हैं! जितना हम खुद की फ्रीडम को खत्म करते जाएंगे, उतनी हमारी आंतरिक शक्ति घटती जाएगी।
कभी असमझ, उलझन या आगे कुछ दिखाई न देता हो तो ऐसे में अपने आपसे पूछो, इंट्रोस्पेक्ट करो, मेरा मूड क्यों खराब हुआ? जब तक अपने आपसे इस तरह रूबरू नहीं होंगे तब तक नैचुरल नेचर नहीं बन पायेगी। अपना ध्यान तो रखना ही पड़ेगा ना! वरना हमारे मन का मालिक कोई और होगा। माना हम परतंत्र हो जायेंगे और परतंत्रता में खुशी कहां संभव! बस ऐसे मोड़ पर अपने को अपने से पूछो और देखो…
(लेखिका प्रजापिता ब्रम्हाकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय माउंट आबू- राजस्थान में अध्यात्मिक उपदेशिका हैं।)

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