दिल्ली-लखनऊ में शीत युद्ध से हिलने लगी है भाजपा की जड़
# केशव मौर्य, ओपी राजभर, अनुप्रिया पटेल, संजय निषाद, राजेंद्र सिंह मोती, रमेश मिश्र और अब एमएलसी देवेंद्र प्रताप सिंह की चिठ्ठी और बयान रूपी तीर के निशाने पर हैं योगी। लेकिन, इन हमलों से भाजपा के कोर वोटर और कार्यकर्ता हो रहे हैं विचलित, अब पार्टी की जड़ हिलने लगी है।
# भाजपा कार्य समिति की बैठक में प्रस्ताव तो कई पास हुए, लेकिन लोकसभा चुनाव में हार का ठीकरा योगी पर नहीं फोड़ पाया दिल्ली दरबार, पार्टी के ही विधायकों, मन्त्रियों की यूपी सरकार के खिलाफ जारी बयानबाजी ने शाह और योगी के बीच शीत युद्ध को तेज कर दिया, इसमें पिसने लगा है संगठन।
कैलाश सिंह
लखनऊ।
तहलका 24×7 विशेष. उत्तर प्रदेश भाजपा कार्य समिति की 14 जुलाई को हुई बैठक में भी सीएम योगी आदित्यनाथ मजबूत बने रहे, लेकिन दिल्ली और लखनऊ के बीच दो साल से जारी शीत युद्ध थमने की बजाय और तेज़ हो गया है। इसका हालिया ताज़ा प्रमाण गोरखपुर क्षेत्र से एमएलसी देवेंद्र प्रताप सिंह की तरफ से 15 जुलाई को जारी चिठ्ठी है। जिसमें उन्होंने लोकसभा चुनाव में हार का प्रमुख कारण यूपी की नौकरशाही को ठहराया है।
मानो ब्यूरोक्रेसी के बल पर ही चुनाव जीतने का मंसूबा रहा जो फेल हो गया।विधायकों, मन्त्रियों के हो रहे लगतार हमलों से योगी की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ रहा है और पिट रहे मोहरों से अमित शाह का भी मकसद नहीं पूरा हो पा रहा है। लेकिन, भाजपा के कोर वोटरों में बढ़ती दुविधा से यह संकेत जरूर मिल रहे हैं कि पार्टी की जड़ ‘हिलकर’ सूखने की तरफ अग्रसर है।
अब तो पार्टी के कार्यकर्ता व जिलों तक के बड़े पदाधिकारी और उनके शुभचिंतक भी विचलित होने लगे हैं। बैठक में पिछड़े और दलितों को जोड़ने की बात तो हुई लेकिन उसके लिए ठोस रणनीति नहीं बनी। संगठन से बड़ा कोई नहीं का भाषण उसी तरह महसूस हुआ ‘मानो’ असंगठित कर्मचारी नारा लगा रहे हों कि- आवाजदो हम एक हैं। अपने वक्तव्य में योगी ने कहा कि पार्टी कार्यकर्ताओं के सम्मान पर आंच नहीं आने पाएगी।
इससे जाहिर हुआ कि उन्होंने इसे गंभीरता से महसूस किया कि नौकरशाही द्वारा प्रतिनिधि व कार्यकर्ताओं का अनादर हुआ है। लेकिन, सात साल से वह बेबस भी तो थे क्योंकि संपूर्ण नियंत्रण दिल्ली हाई कमान के पास था।30 जून को मुख्य सचिव की नियुक्ति के साथ लगाम उनके हाथ में आई। इसे समूचे प्रदेश ने देखा, सुना और समझा भी।
अब 10 विधान सभा सीटों पर होने वाले उप चुनाव में संगठन की मजबूती की परीक्षा होनी है। योगी को विपक्ष के साथ अपनों से भी लड़ना पड़ेगा! भाजपा सूत्रों के मुताबिक कार्य समिति की बैठक में हार की समीक्षा के नाम पर आरोप-प्रत्यारोप पार्टी के अंदर खूब चला और विपक्षी दलों कांग्रेस, सपा पर प्रहार और नसीहत ऐसे दी गई जैसे चुनावी सभा में होता है।
दो धड़े में विभक्त कैबिनेट तब परिलक्षित हुई जब नेताओं के भाषण के दौरान उनके समर्थक नारे लगाते रहे, उस समय यह बैठक चुनावी समीक्षा की बजाय विधान सभा में सदन की बहस सरीखी नजर आई। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यदि यूपी में सरकार और संगठन में अंदरूनी खेमेबंदी, लामबंदी, अनर्गल बयानबाजी नहीं थमी तो भाजपा की हालत द्वापर के यदुवंशियों सरीखी होने पर हैरत भी नहीं होगी।