दिल्ली विस चुनाव: बांसुरी स्वराज हो सकती हैं भाजपा का नया युवा चेहरा!
# फरवरी 2025 में होगा दिल्ली विधानसभा का चुनाव, जनवरी में जारी होगी अधिसूचना, सीधा मुकाबला भाजपा और आम आदमी पार्टी के बीच सम्भावित।
# आप की विश्वसनीयता के लिए आखिरी अग्नि परीक्षा होगा यह चुनाव, कांग्रेस से समझौता नहीं हुआ तो दोनों दल एक ही वोट बैंक पर होंगे निर्भर।
कैलाश सिंह
राजनीतिक संपादक
नई दिल्ली
तहलका 24×7 न्यूज
साल 2025 में राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली का विधानसभा चुनाव तीन दलों भाजपा, आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के लिए अस्तित्व का सवाल लेकर आ रहा है। 12 साल से आप के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने बाकी दोनों दलों को सत्ता की दहलीज तक नहीं पहुंचने दिया, लेकिन आखिरी के दो साल उनके लिए इतने भारी पड़े कि उनकी एक दशक की विश्वसनीयता वाली पूंजी का दिवाला निकल गया। इसका प्रमाण बीते लोकसभा चुनाव में तब मिल गया जब केजरीवाल ने दिल्ली की जनता से यहां की सभी सात सीटों पर आप और कांग्रेस को संयुक्त जीत दिलाने की गुहार लगाई, उन्होंने कहा कि जनता हमें जिताकर जेल जाने से बचा सकती है।
बाबजूद इसके, सभी सीटों पर उनकी पराजय से यह साफ हो गया कि उनका यह विक्टिम कार्ड फेल हो गया और उनके प्रति लोगों में कोई सहानुभूति नहीं रही।
वर्ष 1993 में पहली बार दिल्ली विधानसभा बनी और पहले ही चुनाव में भाजपा सत्ता में आ गई, जो पांच साल बाद 1998 का चुनाव ‘प्याज’ के बढ़े दाम के चलते हार गई। इसके बाद डेढ़ दशक तक कांग्रेस की शीला दीक्षित की सरकार का शासन रहा। वर्ष 2013 में अन्ना हजारे के आंदोलन से ‘कट्टर ईमानदार’ वाले घोड़े पर सवार होकर आये आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने खुद के जेल जाने से पूर्व तक भाजपा और कांग्रेस को भी सत्ता की दहलीज नहीं लांघने दी।
विभिन्न घोटालों के आरोपी केजरीवाल पहली बार 2025 में सर्वाधिक कमजोर स्थिति में चुनावी मैदान में नजर आएंगे। उनकी दो बड़ी ताकत ‘कट्टर ईमानदारी और जन सहानुभूति’ उनकी हथेली से रेत के माफिक फिसल चुकी है। इन दोनों ताकतों की पॉवर मिडिल क्लास वोट बैंक के पास रही है जिसने लोकसभा चुनाव के दौरान संकेत भी दे दिया। यदि केजरीवाल यानी आप और कांग्रेस में समझौता भी होता है तो दोनों दल झुग्गी झोपड़ी और मुस्लिम वोटों की पिच पर ही खेलेंगे, तब दिलचस्प ये रहेगा कि मुफ्त बिजली-पानी वाली रेवड़ी कितनी कारगर होती है?
दूसरी ओर साहब सिंह वर्मा के निधन के बाद सुषमा स्वराज कुछ महीनों के लिए दिल्ली की मुख्यमन्त्री रहीं। 1998 के विधानसभा चुनाव में हार और बाद में सुषमा स्वराज का निधन हो जाने से दिल्ली विधानसभा में भाजपा के पास कोई दमदार चेहरा नहीं नज़र आया। एक तरह से मानें तो पार्टी नेतृव विहीन हो गई। भाजपा के पास किसी भी राज्य में महिला सीएम भी नहीं है, जबकि केन्द्र की मोदी सरकार ने 33 फीसदी महिला आरक्षण का बिल भी पास करा लिया है।
राजनीतिक सूत्रों की मानें तो दिल्ली विधानसभा चुनावी समर में जनता मजबूत नेतृत्व वाले चेहरे पर नज़र गड़ाए है। ऐसे में भाजपा नई दिल्ली लोकसभा की पहली बार चुनी गईं सदस्य बांसुरी स्वराज को नया चेहरा बनाने पर मन्थन में लगी है। बांसुरी स्वराज दिल्ली की पूर्व मुख्यमन्त्री और केन्द्र में पूर्व विदेश मंत्री स्व. सुषमा स्वराज की बेटी हैं। वह कानून की पढाई के बाद प्रैक्टिस भी करती हैं और बेहतरीन प्रवक्ता भी हैं। आक्सफोर्ड की पढ़ी बांसुरी स्वराज दिल्ली को करीब से जानती हैं। इस तरह तीनों दल आगामी विधानसभा चुनाव में अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष करते दिखेंगे।