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Tuesday, December 5, 2023

पति के दीर्घायु की कामना का व्रत है वट सावित्री व्रत…

पति के दीर्घायु की कामना का व्रत है वट सावित्री व्रत…

# वट सावित्री व्रत पर तहलका 24×7 विशेषांक..

स्पेशल डेस्क।
राजकुमार अश्क
तहलका 24×7
                   आर्यावर्त की धरती पर अनेक ऐसी स्त्रियों हुई है जिनका यशोगान कई सदियों से चला आ रहा है, उनके त्याग, पराक्रम और सतित्व के आगे इंसान ही नहीं देवता भी नतमस्तक होकर अपनी पराजय स्वीकार कर लेते थे। इसी तरह भारत भूमि पर एक ऐसी ही सती नारी ने जन्म लिया था जिसके सतीत्व के आगे यमराज को भी झुकना पड़ा था। नारी त्याग की एक ऐसी प्रतिमूर्ति है जिसको कितना भी कष्ट भोगना पड़े फिर भी वह अपने परिवार के ऊपर किसी भी तरह के दुख निवारण के लिए हर संभव उपाय करने को हमेशा तैयार रहती है। आज हम ऐसी ही एक सती नारी की कथा के विषय में जानकारी लेकर आए हैं जिसका व्रत रखकर स्त्रियों अपने पति के लम्बी उम्र की कामना करती है।

जी… हाँ वट सावित्री व्रत रखकर स्त्रियों आज भी अपने पति की लम्बी उम्र की कामना माता सावित्री से करती है। वट सावित्री व्रत की कथा के अनुसार मद्र प्रदेश के राजा अश्वपति की कोई संतान नहीं थी। राजा अश्वपति बडे़ ही धार्मिक प्रवृत्ति के राजा थे, उन्होंने राज्य के ब्राह्मणों, पुरोहितों से विचार विमर्श करके एक यज्ञ का अनुष्ठान कराया तत्पश्चात उन्हें एक सुंदर, सुयोग्य और सुशील कन्या की प्राप्ति हुई जिसका नाम उन्होंने बडे़ प्यार से सावित्री रखा।

माँ की प्यारी पिता की लाडली, प्रजा की आखों का तारा सावित्री राज परिवार में सारे सुखों को पाते हुए जब भी बडी़ हुईं तब राजा को उसके विवाह की चिंता सताने लगी। एक दिन सावित्री अपनी सहेलियों के साथ जंगल में घुमने चली गई, वहाँ उसने एक सुंदर युवक को लकड़ियां काटते हुए देखा वह युवक सावित्री के मन को भा गया और उसने उस युवक को मन ही मन पति के रूप में स्वीकार कर लिया। यह बात जब राजा को पता चली तो उन्हें बहुत दुख हुआ, मगर फिर भी वे सावित्री की जिद्द के आगे झुक गये।
उन्होंने उस युवक के विषय में जानकारी की तो पता चला कि वह द्रुमत्यसेन का पुत्र सत्यवान है जो किसी समय बहुत प्रतापी राजा हुआ करते थे, मगर समय विपरीत होने के कारण उनका सारा राजपाट छिन गया है। मगर राजा की चिंता उस समय और बढ़ गयी जब ज्योतिषियों ने बताया कि सत्यवान की आयु अब केवल एक वर्ष शेष बची है। आज से ठीक एक वर्ष बाद उसकी मृत्यु हो जाएगी।

राजा ने सावित्री को बहुत समझाने की कोशिश की मगर वह अपनी जिद्द पर अडी़ रही। हार कर राजा ने सावित्री का विवाह सत्यवान के साथ कर दिया। सावित्री विवाह के पश्चात अपने ससुराल आकर अपने सास ससुर की मन लगा कर सेवा करने लगी। सत्यवान जंगल से लकड़ियां काट कर बेचता और सावित्री घर के काम में रहती मगर उसे ज्योतिषियों की कही बात हमेशा याद रहती थी और वह सजग रहती।

समय का चक्र अपनी गति से चलतें हुए उस समय पर भी पहुंच गया जिस दिन सत्यवान का अन्तिम दिन था। उस दिन सावित्री विशेष रूप से सत्यवान के प्रति सतर्क थी। सत्यवान जब जंगल में लकड़ियां काटने जाने लगा तो सावित्री भी जिद करके उसके साथ हो ली, वह आज सत्यवान को एक भी पल के लिए अकेला नहीं छोड़ना चाहती थी। अचानक सत्यवान को चक्कर आया और वह जमीन पर गिर पड़ा। सावित्री को यह समझते देर न लगी कि यह अंतिम घड़ी है, वह पति का सर अपने गोद में रख कर विलाप करने लगी। अचानक से उसने अपने सामने मृत्यु के देवता यमराज को देखकर घबड़ा गयी मगर उसने अपना धैर्य नहीं छोड़ा और यमराज से अपने पति को जीवित करने के लिए प्रार्थना करने लगी मगर वह नहीं माने और सत्यवान के प्राण लेकर जाने लगे तो सावित्री भी उनके पीछे पीछे चल दी।

यमराज ने सावित्री को समझाने की बहुत कोशिश की मगर वह नहीं मानी, तो हार कर यमराज ने कहा मैं तुम्हें तीन वरदान दे सकता हूँ जिसे लेकर तुम वापस चली जाना, सावित्री यमराज की बात मान गयी उसने पहले वरदान मे अपने सास ससुर की आखों की ज्योति मांगी जिसे यमराज ने तत्क्षण दे दिया अब सावित्री ने दूसरे वरदान मे उनके खोए हुए राज्य को वापस मांगा, यमराज ने उसे भी पूरा करने के बाद सावित्री से तीसरा वरदान मांगने के लिए कहा जिसे सावित्री ने काफी सोच विचार करने के बाद कहा कि यदि आप मुझे कुछ देना ही चाहते हैं तो मुझे पुत्रवती होने का वरदान दीजिये, यमराज ने कहा तथास्तु… सावित्री जो चाहती थी यमराज ने उसे पुरा कर दिया, मगर उसने यमराज का पीछा नहीं छोड़ा, यमराज क्रोधित होकर बोले “मैंने तुम्हें तीनों वरदान दे दिए फिर भी तुम मेरे पीछे क्यों आ रही हो?”
सावित्री ने हाथ जोड़कर कहा “हे पिता श्री यह सत्य है कि आपने मुझे पुत्रवती होने का वरदान दिया है, मगर यह कैसे संभव जब कि मेरे पति के प्राण आप लिए जा रहे हैं? ” इतना सुनते ही यमराज के पैरों से जमीन खिसक गयी उन्हें उन्हीं के जाल में फंसा कर सावित्री ने उनको पराजित कर दिया था। सावित्री की चतुराई तथा पति प्रेम को देख कर यमराज बहुत खुश हुए और उन्होंने उसे अनेकों और वरदान दिया। सावित्री जब उसी वटवृक्ष के पास आई तो उसने सत्यवान के मृत शरीर में जीवन का संचार हो रहा था जिसे देखकर सावित्री बहुत खुश हुई और ईश्वर का धन्यवाद किया।

इस व्रत में खानपान का विशेष महत्व होता है, चूंकि सावित्री ने पति के प्राणों की रक्षा के लिए अपनी सुध बुध छोड़ दी थी और यमराज से सत्यवान के प्राणों की रक्षा की थी वैसे ही आज भी महिलाएँ अपने पति तथा परिवार की रक्षा के लिए व्रत उपवास रखतीं है। वट सावित्री व्रत के दिन महिलाएं व्रत रखकर माता सावित्री से अखंड सौभाग्यवती होने की कामना करती है। वट सावित्री व्रत अन्य व्रतों से कुछ अलग है। इस व्रत में पूरा दिन व्रत नहीं रखा जाता है, मगर कुछ स्थानों पर पूरा दिन व्रत रखा जाता है।
खास कर उत्तर प्रदेश, राजस्थान, पंजाब और हरियाणा में इस व्रत को पूरे विधि विधान से पूर्ण किया जाता है। इस दिन जो भी पूजा के समय आम, चना, खरबूजा, पूड़ी, गुलगुला, पुआ आदि चढ़ाया जाता है तथा उसे ही खाने का विधान है। प्राचीन मान्यता के अनुसार वट सावित्री व्रत के दिन सत्यवान् सावित्री की कथा को सुनकर जो भी कोई सुहागन स्त्री पुरे विधि विधान से इस व्रत का पूजा पाठ करती है तो माता सावित्री की कृपा से उसका सुहाग अमर हो जाता है.

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