भारत के खिलाफ दुष्प्रचार में बीबीसी शीर्ष पर, कोरोना पर पश्चिमी मीडिया की असलियत..
नई दिल्ली।
स्पेशल डेस्क
तहलका 24×7
इसमें कोई शक नहीं है कि कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर ने भारत को बुरी तरह प्रभावित किया है। हालांकि इस दौरान संक्रमित मरीजों और होने वाली मौतों को लेकर पश्चिमी मीडिया ने जिस तरह हाय-तौबा मचाई, उसने उनके भारत विरोधी एजेंडे की पोल खोलकर रख दी। लेखक और पॉलिसी कमेंटेटर शांतनु गुप्ता के मुताबिक बीबीसी, वाशिंगटन पोस्ट और न्यूयॉर्क टाइम्स अपनी खबरों में भारत और देश के बड़े शहरों में संक्रमित मरीजों और होने वाली मौतों की बड़ी संख्या का बार-बार उल्लेख करते हैं, ताकि बाकी दुनिया को यह बताया जा सके कि भारत महामारी से सबसे ज्यादा प्रभावित है। हालांकि पश्चिमी मीडिया प्रति दस लाख जनसंख्या पर ना तो कोरोना मरीजों की बात करता है और ना ही मृतकों का सही आंकड़ा बताता है। क्योंकि अगर इन आंकड़ों की बात करें तो भारत की स्थिति पश्चिमी देशों के मुकाबले बहुत बेहतर है। कोरोना महामारी को लेकर भारत के खिलाफ दुष्प्रचार की बात करें तो बीबीसी शीर्ष पर है।

समाचारों के पक्षपातपूर्ण शीर्षक में गार्जियन भी पीछे नहीं, समाचारों में दुर्भावनापूर्ण शीर्षक की बात करें तो बीबीसी शीर्ष पर है। पिछले 14 महीनों के दौरान उसने लोगों को डराने वाले, संदेहास्पद और सुर्खियां बटोरने वाले 176 शीर्षकों का प्रयोग किया। पक्षपात पूर्ण सुर्खियां लगाने में ब्रिटेन का गार्जियन अखबार भी पीछे नहीं रहा है। उसने भारत में कोरोना महामारी को लेकर जो लेख लिखे, उसमें 96 फीसद के शीर्षक भय पैदा करने वाले थे। वहीं अमेरिकी अखबार वाशिंगटन पोस्ट और न्यूयॉर्क टाइम्स की बात करें तो दोनों के ही 88 फीसद शीर्षक (समाचारों की हेडिंग) दुर्भावनापूर्ण थे। शांतनु गुप्ता के मुताबिक पश्चिमी मीडिया भारत को लेकर तथ्यात्मक रिपोर्टिग में बहुत रुचि नहीं रखता है। उसकी कोशिश भारत सरकार के विरुद्ध एक विमर्श स्थापित करने की होती है। यही वजह है कि हमारे देश को लेकर वे लोग जो खबरें प्रकाशित करते हैं, उसमें से सिर्फ 22 फीसद समाचार ही तटस्थ रिपोर्टिग पर आधारित होते हैं।

550 से ज्यादा लेखों का विश्लेषण पिछले चौदह महीनों के दौरान भारत में कोरोना महामारी को लेकर पश्चिमी मीडिया की भूमिका का पता लगाने के लिए शांतनु गुप्ता ने एक विश्लेषण किया है। उन्होंने ब्रिटिश और अमेरिकी मीडिया से जुड़े शीर्ष समाचार पत्रों और चैनलों द्वारा लिखे और टीवी पर चलाए गए 550 से ज्यादा लेखों का अध्ययन किया, जिसमें चौंकाने वाली बातें सामने आई। खास बात यह रही कि इन समाचारों का एक बड़ा हिस्सा ना सिर्फ लोगों में डर पैदा करता है बल्कि भ्रामक भी है।










