मकर संक्रांति विशेष : पर्व एक नाम अनेक
राजकुमार अश्क
तहलका 24×7
संसार में भारत को त्योहारों का देश कहा जाता है। मगर कुछ ऐसे पर्व भी हैं जो क्षेत्रीय सीमाओं के बंधन को तोड़ कर सम्पूर्ण भारत में अलग अलग नामों से मनाएं जातें हैं। उसी कड़ी में मकर संक्रांति भी आती है। जो सूर्य की गति पर निर्भर करती है। संक्रान्ति का अर्थ है सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में संक्रमण (जाना) करना।
वैसे तो पूरे वर्ष में कुल 12 संक्रान्तियां होती हैं, लेकिन इनमें चार संक्रांतियां मेष, कर्क, तुला और मकर संक्रांति सबसे महत्वपूर्ण मानी हैं। पौष मास में सूर्य का धनु राशि को छोड़ मकर राशि में प्रवेश करना ही मकर संक्रान्ति का रूप माना जाता है। वैसे तो भारतीय पंचाग चंद्रमा की गति से निर्धारित होता है। मगर मकर संक्रान्ति को सूर्य की गति से निर्धारित किया जाता है। मकर संक्रान्ति हिन्दुओं का प्रमुख पर्व है और इसे सम्पूर्ण भारत और नेपाल के सभी प्रान्तों में किसी न किसी रूप में मनाया जाता है।
उत्तर भारत में इस पर्व को मकर संक्रांति, पंजाब में लोहड़ी, गढ़वाल में खिचड़ी, गुजरात में उत्तरायण, तमिलनाडु में पोंगल, कर्नाटक, केरल और आंध्रप्रदेश में इसे संक्रांति कहते हैं। मकर संक्रांति से उत्तरी गोलार्ध में रातें छोटी और दिन बड़े होने लगते हैं. सर्दी की ठिठुरन कम होने लगती है। इसलिए कहा जा सकता है कि मकर संक्रान्ति अन्धकार की कमी और प्रकाश की वृद्धि की शुरुआत का भी प्रतीक है। समस्त जीवधारी (पशु,पक्षी, पेड़ पौधे) प्रकाश चाहते हैं। संसार सुषुप्ति से जाग्रति की ओर अग्रसर होता है। प्रकाश अधिक होने से प्राणियों की चेतना एवं कार्य शक्ति में वृद्धि होती है।
प्रकाश ज्ञान का प्रतीक है और अन्धकार अज्ञान का प्रतीक माना जाता है। यहां पर सबसे ज्यादा ध्यान देने योग्य बात यह है कि विश्व की लगभग 90 फीसदी आबादी पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध में ही निवास करती है। अतः मकर संक्रांति पर्व न केवल भारत के लिए बल्कि लगभग पूरी मानव जाति के लिए एक उल्लास का दिन है। सम्पूर्ण विश्व के सभी उत्सवों में संभवतः मकर संक्रांति ही एकमात्र उत्सव है जो किसी स्थानीय परम्परा, मान्यता, विश्वास या किसी विशेष स्थानीय घटना से सम्बंधित नहीं है। बल्कि एक खगोलीय घटना, वैश्विक भूगोल और विश्व कल्याण की भावना पर आधारित है। वेदशास्त्रों के अनुसार प्रकाश में अपना शरीर छोड़ने वाला मनुष्य पुन: जन्म नहीं लेता, जबकि अंधकार में मृत्यु को प्राप्त होने वाला व्यक्ति पुन: जन्म लेता है। यहां प्रकाश एवं अंधकार से यह तात्पर्य सूर्य की उत्तरायण एवं दक्षिणायन स्थिति से है। संभवत: सूर्य के उत्तरायण के इस महत्व के कारण ही भीष्म ने अपने प्राण तब तक नहीं छोड़े, जब तक मकर संक्रांति अर्थात सूर्य की उत्तरायण स्थिति नहीं आ गई।सूर्य के उत्तरायण का महत्व छांदोग्य उपनिषद में भी किया गया है। इस प्रकार स्पष्ट है कि सूर्य की उत्तरायण स्थिति का बहुत ही अधिक महत्व है।
सूर्य के उत्तरायण होने पर दिन बड़ा होने से मनुष्य की कार्य क्षमता में भी वृद्धि होती है। जिससे मानव प्रगति की ओर अग्रसर होता है। प्रकाश में वृद्धि के कारण मनुष्य की शक्ति में भी वृद्धि होती है। पंजाब और हरियाणा में इस समय नई फसल का स्वागत किया जाता है। लोहड़ी पर्व मनाया जाता है। वहीं असम में बिहू के रूप में इस पर्व को उल्लास के साथ मनाया जाता है।
वैज्ञानिक आधार की बात की जाए तो मकर संक्रांति के समय से नदियों में वाष्पन की क्रिया बहुत तेजी से होने लगती है। जिसके कारण इसमें स्नान करने से कई तरह के रोग दूर हो सकते हैं। इसलिए इस दिन नदियों में स्नान करने का बहुत महत्व है। मकर संक्रांति के समय उत्तर भारत में काफी ठंड का मौसम रहता है। ऐसे में तिल-गुड़ का सेवन करने के लिए विज्ञान भी कहता है, क्योंकि तिल और गुड़ का सेवन करने से शरीर को ऊर्जा मिलती है। जो सर्दी में शरीर को सुरक्षा प्रदान करती है। इस दिन खिचड़ी का सेवन करने के पीछे भी वैज्ञानिक कारण है। खिचड़ी हमारे पाचन तंत्र को दुरुस्त रखती है। इसमें अदरक और मटर मिलाकर बनाने पर यह शरीर को रोग-प्रतिरोधक बैक्टीरिया से लड़ने में मदद करती है।