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Monday, January 20, 2025

महबूबा मुफ्ती, सज्जाद लोन ने अजमेर शरीफ को शिव मंदिर बताने वाली याचिका की निंदा की

महबूबा मुफ्ती, सज्जाद लोन ने अजमेर शरीफ को शिव मंदिर बताने वाली याचिका की निंदा की

श्रीनगर। 
तहलका 24×7 
               प्रमुख कश्मीरी राजनेताओं ने अजमेर शरीफ को लेकर राजस्थान की स्थानीय अदालत में दायर याचिका की आलोचना की है। याचिका में आरोप लगाया गया है कि अजमेर शरीफ दरगाह, जो सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती को समर्पित एक पवित्र तीर्थस्थल है, कभी शिव मंदिर था। नेताओं ने चेतावनी दी कि इस कदम से देश भर में सांप्रदायिक तनाव बढ़ सकता है।जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने तनाव बढ़ने के लिए हाल के न्यायिक फैसलों को जिम्मेदार ठहराया।
उन्होंने इस संबंध में एक्स पर लिखा, “भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश की बदौलत भानुमती का पिटारा खुल गया है, जिससे अल्पसंख्यकों के धार्मिक स्थलों को लेकर विवादास्पद बहस छिड़ गई है।”पूजा स्थलों की 1947 की यथास्थिति बनाए रखने के सुप्रीमकोर्ट के निर्देश का विरोध करते हुए उन्होंने कहा, कि उनके निर्णय ने इन स्थलों के सर्वेक्षण का मार्ग प्रशस्त कर दिया है, जिससे हिंदुओं और मुसलमानों के बीच तनाव बढ़ने की संभावना है। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश के संभल में हाल ही में हुई हिंसा इसी फैसले का प्रत्यक्ष परिणाम है।
पहले मस्जिदों और अब अजमेर शरीफ जैसे मुस्लिम धार्मिक स्थलों को निशाना बनाया जा रहा है। जिसके परिणामस्वरुप आगे और अधिक रक्तपात हो सकता है।
पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष सज्जाद लोन ने “छिपे हुए मंदिरों का आविष्कार” करने के राष्ट्रीय जुनून की आलोचना की। उन्होंने कहा कि सवाल यह है कि विभाजन के दिनों की याद दिलाने वाली इस सांप्रदायिक हिंसा को जारी रखने की जिम्मेदारी कौन लेगा? भारत और दुबई के बीच तुलना करते हुए लोन ने कहा, अजमेर आध्यात्म और एकता का प्रतीक है।
इसके विपरीत हमारा देश, जो कभी आत्मीय था, अब दुखद रुप से आत्महीन प्रतीत होता है। विभाजनकारी गतिविधियों से प्रेरित है। एक और चौंकाने वाली बात, यह मुकदमा अजमेर दरगाह शरीफ में कहीं छिपे एक मंदिर की खोज में दायर किया गया है।2024 को अलविदा कहते हुए हम आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के युग में हैं। तकनीक का युग और भारतीयों के तौर पर हमें ईमानदारी से कहना चाहिए कि हमने किसी भी तकनीकी क्रांति में योगदान नहीं दिया है। हां, हमारे पास उन्हें खरीदकर उनका उपयोग करने के लिए संसाधन हैं।
लेकिन वैज्ञानिक नवाचार नहीं, कोई नहीं, दूर-दूर तक नहीं।हमारी भारतीय तकनीकी क्रांति उपयोगकर्ताओं के रूप में है, आविष्कारकों के रूप में नहीं। आविष्कार की हमारी इच्छा, छिपे हुए मंदिरों का आविष्कार करने के हमारे जुनून में निवेशित प्रतीत होती है।उन्होंने एक्स पर पोस्ट करते हुए लिखा कि और कोई गलती न करें। जनसंख्या का एक सांख्यिकीय रुप से महत्वपूर्ण हिस्सा इसकी सराहना कर रहा है। और हां, जितना अधिक शिक्षित लोग उतने ही अधिक मंदिर खोजकर्ता होते हैं।उन्होंने आगे कहा कि वे शिक्षित लोग जिन्हें भारतीय तकनीकी क्रांति की शुरुआत करने में सबसे आगे होना चाहिए था, वे मिथक बनाने में व्यस्त हैं।
मैं हाल ही में दुबई में था और मुझे यहां बनाए गए मंदिरों की वास्तुकला के रुप में भव्यता देखने का मौका मिला। दुबई सहिष्णुता और आपसी सम्मान का एक नखलिस्तान बन गया है। यह कितना अच्छा है। वस्तुतः हर राष्ट्रीयता यहां है और वे कितने व्यवस्थित तरीके से रहते हैं। मैं नब्बे के दशक के अंत में दुबई में था। अजमेर को आध्यात्मिकता का प्रतीक बताते हुए उन्होंने उम्मीद जताई कि आखिरकार संयम और सहिष्णुता की जीत होगी। सभी जगहों में से अजमेर आध्यात्मिकता का प्रतीक है। यह सभी धर्मों का गंतव्य है, जहां सभी धर्म, जाति, पंथ से परे मिलते हैं।
आध्यात्मिकता के उस महान स्थान के आध्यात्मिक उद्धार में एक अनूठी आस्था और भरोसा।उदारवादी विचारधारा और उग्रवाद के बीच की लड़ाई में, हमने कश्मीर में अपनी लड़ाई लड़ी। अलगाववादी खेमे के भीतर भी दोनों के बीच एक स्पष्ट सीमा थी। उदारवादियों और उग्रवादियों के बीच की लड़ाई में हजारों लोगों की जान चली गई। फिर भी उदारवादियों ने आत्मसमर्पण नहीं किया और उदारवादी इंशाअल्लाह कभी आत्मसमर्पण नहीं करेंगे।
इस बीच गुलाम नबी आज़ाद के नेतृत्व वाली डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आज़ाद पार्टी के मुख्य प्रवक्ता सलमान निज़ामी ने सोशल मीडिया पर अदालत के फैसले को चौंकाने वाला बताया। उन्होंने 1991 के पूजा स्थल अधिनियम का हवाला दिया, जो स्थलों की धार्मिक पहचान को बदलने पर रोक लगाता है। अजमेर में ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह सदियों से पूजा स्थल रही है, जहां सभी धर्मों के लोग आते हैं। 1991 का पूजा स्थल अधिनियम किसी भी पूजा स्थल की धार्मिक पहचान को बदलने पर रोक लगाता है और अदालतें इसे बनाए रखने के लिए बाध्य हैं।
यह चौंकाने वाला है कि एक स्थानीय अदालत ने दरगाह के अंदर एक मंदिर होने का दावा करने वाली याचिका को स्वीकार कर लिया। इसका जानबूझकर उकसावे का उद्देश्य नफ़रत और विभाजन फैलाना है। इसकी सभी को निंदा करनी चाहिए और इसे तुरंत रोकना चाहिए! दक्षिणपंथी हिंदू सेना के नेता विष्णु गुप्ता द्वारा दायर याचिका के कारण अजमेर की अदालत ने मंदिर से जुड़ी तीन संस्थाओं को नोटिस जारी किया है।

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