यूपी में योगी का बुलडोजर अपराधियों को रौंदता रहेगा
# उत्तर प्रदेश के बुलडोजर एक्शन मॉडल को अपनाने वाले देश के कई राज्यों में से राजस्थान और एमपी ने कानूनी प्रक्रिया को नहीं अपनाकर खुद को आरोपी की कतार में खड़ा कर लिया।
# योगी के बुलडोजर एक्शन को लेकर विमर्श (नेरेटिव) गढ़ने वाले विपक्षी दलों के नेताओं को यूपी में मुंह की खानी पड़ेगी, यहां अवैध सम्पति को ढहाने से पूर्व दी जाती है नोटिस।
कैलाश सिंह
राजनीतिक संपादक
लखनऊ।
तहलका विशेष
मार्च 2017 में जब उत्तर प्रदेश में भारी बहुमत से भाजपा की सरकार बनी और गोरक्ष पीठाधीश्वर एवं सांसद योगी आदित्यनाथ मुख्यमन्त्री बने तब यहां के बाशिंदों ने नहीं सोचा था कि वाकई अपराधी मिट्टी में मिल जाएंगे, लड़कियां सड़कों पर बिंदास चलेंगी और शोहदों को पीटने से भी गुरेज नहीं करेंगी। आम आदमी से लेकर उद्योगपति भी गुंडा टैक्स से मुक्त हो जाएगा। क्योंकि इससे पूर्व की सरकारों में कथित नेता और अपराधियों का रिश्ता चोली-दामन का था।
तब कानून डरता था यानी उसे लागू करने वाले कांपते थे। जो अधिकारी कानून सम्मत कार्य करने की हिमाकत करता था। उसका हाल पुलिस अधिकारी शैलेंद्र सिंह जैसा हो जाता था, लेकिन योगी ने पहले बुलडोजर एक्शन से अपराधियों और उनसे जुड़े लोगों को भी संदेश दे दिया कि प्रदेश में अब संविधान और कानून का राज चलेगा।
मुख्यमन्त्री योगी आदित्यनाथ के नजदीकी सूत्र बताते हैं कि उन्होंने कानून राज की फिर से स्थापना करने के लिए ही ‘बुलडोजर एक्शन’ शुरू किया जो अपराधियों, रेपिस्टों, भू- माफिया और सरकारी सम्पति को क्षति पहुंचाने वाले या दंगाई मंशा रखने वालों के खिलाफ अनवरत जारी है और चलता रहेगा। क्योंकि ‘सांच को आंच’ नहीं।
इस एक्शन में न तो चुनावी राजनीति है और न ही तुष्टीकरण। अपराधियों की अवैध संपत्ति को जमींदोज करने से पूर्व सम्बन्धित विभागों के जरिए आरोपियों को नोटिस देने के साथ उन्हें अपने दस्तावेज दिखाने को भी समय दिया जाता है।योगी सरकार का मानना है कि अपराधियों की कमर तोड़ने के लिए उनकी ‘आर्थिक रीढ़’ पहले तोड़नी जरूरी है।
एक बानगी देखिए, पिछले वर्षों में वाराणसी के कैंट-लंका रोड पर सरेशाम कुछ उपद्रवी सरकारी सम्पति के साथ राहगीरों के वाहन भी तोड़ने लगे तो पुलिस-प्रशासन ने उन्हें रोकने के साथ वीडियो रिकार्डिंग करके उनकी फोटो चौराहों पर लगा दी। इसके बाद दूसरे दिन से सभी आरोपी थानों में पहुंचने लगे, उनकी हेकड़ी खत्म हो गई। यह वाकया आंखों देखा है, इसीलिए इसका जिक्र किया। प्रदेश में पश्चिम से लेकर पूरब तक रंगदारी और अपहरण का बोलबाला था जो खात्मे की ओर है।
यदि कुछ नहीं बदला है तो वह है नौकरशाही में सुविधा शुल्क वसूली, बल्कि काम के बदले ली जाने वाली ऐसी रकम की साइज बढ़ गई है। पूर्ववर्ती सरकारों में यही ब्लॉक, थाने से लेकर जिला मुख्यालय तक के पुलिस-प्रशासनिक अफसर या उनके दलाल बोलते थे कि रकम ऊपर पहुंचानी पड़ती है, अब योगी की ईमानदारी पर इसकी लपट तो नहीं पहुंचती लेकिन उनके बड़े नौकरशाह खुद को अछूता होने का दावा भी नहीं कर सकते हैं, ये बातें आमजन में प्रचलित हैं।
बुलडोजर एक्शन पर विपक्षी दलों के नेताओं ने पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट की एक टिप्पणी को पूरा समझे बगैर उत्साहित होकर यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ के खिलाफ नेरेटिव (विमर्श) गढ़ना शुरू कर दिया कि अब यहां बुलडोजर पर ब्रेक लग जाएगा। कोर्ट ने कानून सम्मत कार्यवाही में राष्ट्रीय पैमाने पर गाइड लाइन बनाने की बात कही है।दिलचस्प ये है कि यूपी से कोई भी कथित पीड़ित कोर्ट नहीं गया बल्कि सरकार ने तो खुद हलफनामे में संविधान और कानून सम्मत कार्यवाही की बात कही है।
कोर्ट में उस जमाते इस्लामी से जुड़े लोगों के जाने की खबर है जिनके इस संगठन को बांग्लादेश में अभी तक प्रतिबन्धित रखा गया था। इस मामले में सुनवाई 17 सितम्बर को होने की सूचना है। मध्य प्रदेश और राजस्थान की सरकारों ने योगी के बुलडोजर एक्शन को मॉडल मानकर अपनाया लेकिन कानून को दर किनार रखा। दोनों प्रदेश के एक-एक मामले ऐसे सामने आए जिनमें एक दोषी किराएदार की बजाय मकान मालिक का घर ढहा दिया गया और दूसरे केस में दोषी बेटे की गाज उसके पिता पर गिराई गई।
यहां कानून का पालन नहीं हुआ। ऐसे ही मामलों में कोर्ट ने राष्ट्रीय स्तर पर गाइड लाइन बनाने को लेकर टिप्पणी की है लेकिन विपक्षी दलों के नेता योगी के बुलडोजर के रोकने को लेकर अति उत्साह में सोशल मीडिया के जरिए विमर्श गढ़ना शुरू कर दिया।