रक्षा बंधन : धागा एक, संदर्भ अनेक
एखलाक खान
समाचार सम्पादक
तहलका 24×7
रक्षा बंधन केवल पर्व नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति की आत्मा में रचा-बसा एक ऐसा पर्व है, जो स्नेह, विश्वास और कर्तव्यबोध का प्रतीक बन चुका है। हर साल श्रावण पूर्णिमा के दिन मनाया जाने वाला यह त्योहार न केवल भाई-बहन के प्रेम को प्रकट करता है, बल्कि इसके धार्मिक, सामाजिक और राजनैतिक पहलू भी गहरे और दूरगामी हैं।

# धार्मिक महत्व
रक्षा बंधन की जड़ें वेद-पुराणों तक जाती हैं। भागवत पुराण में वर्णन मिलता है कि जब भगवान विष्णु ने राजा बलि से वचन अनुसार पाताल लोक में निवास शुरु किया, तो लक्ष्मी जी ने उन्हें वापस लाने के लिए बलि को राखी बांधी और भाई मानकर अपना उद्देश्य सिद्ध किया। वहीं महाभारत में द्रौपदी द्वारा श्रीकृष्ण को राखी बांधना और कृष्ण द्वारा उसे चीरहरण से बचाना इस पर्व को दैवीय गाथा से जोड़ता है। राखी केवल एक धागा नहीं, बल्कि वह संकल्प है जो रक्षा का वचन देता है, चाहे वह मानव हो या भगवान।

# सामाजिक महत्व
समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से रक्षा बंधन स्त्री सशक्तिकरण और सामाजिक एकता का प्रतीक बनकर उभरता है। यह पर्व नारी को केवल आश्रय की आकांक्षी नहीं, बल्कि रिश्तों को जोड़ने वाली शक्ति के रुप में स्थापित करता है। बहन जब भाई को राखी बांधती है, तो वह एक सामाजिक अनुबंध भी रचती है। स्नेह का, उत्तरदायित्व का और संरक्षण का। आज के दौर में यह त्योहार साम्प्रदायिक सद्भाव और जातीय भेदभाव के विरुद्ध भी एकजुटता का संदेश दे सकता है, यदि इसे व्यापक दृष्टि से देखा जाए।

# राजनैतिक संदर्भ
इतिहास साक्षी है कि राखी ने कभी-कभी राजनीति की दिशा तक मोड़ी है। कहा जाता है कि रानी कर्णावती ने मुगल सम्राट हुमायूं को राखी भेजकर मेवाड़ की रक्षा की गुहार लगाई थी। हुमायूं ने इसे स्वीकार कर अपने सैनिक भेजे। आधुनिक संदर्भ में भी राखी एक प्रतीक बन सकती है। संविधान की रक्षा, लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा और नारी गरिमा की रक्षा का। आज जब राजनीति में नैतिकता और मानवीय मूल्यों की कमी महसूस की जा रही है, तब रक्षा बंधन जैसे पर्व हमें याद दिलाते हैं कि कर्तव्य केवल शब्द नहीं, कर्म के लिए होते हैं।

रक्षा बंधन के बहाने हमें आत्ममंथन करने की आवश्यकता है। क्या हम सचमुच अपनी बहनों की रक्षा के लिए तैयार हैं? क्या हमारी राजनीति, हमारे समाज और हमारी संस्कृति उन मूल्यों की रक्षा कर रही है, जिनके लिए यह पर्व खड़ा है?राखी का धागा कमजोर सही, पर उसमें भावनाओं की गांठ होती है। यह पर्व हमें यह याद दिलाता है कि रक्षा केवल बाहुबल से नहीं होती। वह होती है विश्वास से, मर्यादा से, और प्रेम से।