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Sunday, April 20, 2025

लखनऊ में भाजपा की समन्वय बैठक रद्द, तनी रह गईं तलवारें

लखनऊ में भाजपा की समन्वय बैठक रद्द, तनी रह गईं तलवारें

# संघ के सह सर कार्यवाह अरुण कुमार के जरिए आरएसएस और भाजपा के मध्य समन्वय बैठक में यूपी में चल रही उठापटक का पटाक्षेप करने और सीएम की कुर्सी पर भी होना था बड़ा फैसला, बैठक न होने से दिल्ली-लखनऊ के शीत युद्ध में आया नया मोड़।

# 20,21 जुलाई को दो दिवसीय बैठक के लिए सब कुछ था पहले से निर्धारित, योगी, केशव को आमने-सामने बिठाकर होनी थी बात, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी व संगठन मंत्री धर्मपाल सिंह की मौजूदगी में होनी थी वार्ता।

कैलाश सिंह
लखनऊ।
तहलका 24×7 विशेष.                                                             उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री की कुर्सी पाने के लिए अरसे से लालायित डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के पीछे भाजपा हाई कमान या गुजरात लॉबी खड़ी है, तो सात साल से यूपी की कमान सम्भाले योगी आदित्यनाथ के पीछे आरएसएस (संघ) की सरपरस्ती है। दो साल से जारी शीत युद्ध बीते चार जून को लोकसभा चुनाव परिणाम आने के बाद से यह प्रत्यक्ष हो गया। भाजपा में चल रही इसी उठापटक के पटाक्षेप को 20-21 जुलाई को लखनऊ में आरएसएस और भाजपा पदाधिकारियों की बैठक निर्धारित थी, दोनों संगठनों में समन्वय (क्वार्डिनेशन) की जिम्मेदारी संघ के सह सर कार्यवाह अरुण कुमार के कन्धे पर थी।

बैठक में भाजपा प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी, संगठन मंत्री धर्मपाल सिंह की मौजूदगी में सीएम योगी, डिप्टी सीएम केशव मौर्य से आमने-सामने बातचीत के बाद सीएम की कुर्सी को लेकर बड़ा फैसला होना था, इसीलिए सभी मंत्रियों के दौरे भी टाल दिए गए थे। लेकिन, ऐन वक्त पर यह बैठक ही रद्द कर दी गई, जाहिर है शीत युद्ध के अब आर-पार की स्थिति में आने की संभावना प्रबल हो गई है।

संघ और भाजपा सूत्रों की मानें तो लोकसभा चुनाव के दौरान से अब तक दोनों संगठनों के प्रमुखों के बयान पर नजर डालनी पड़ेगी। चुनाव परिणाम आने के बाद संघ प्रमुख मोहन भागवत ने अपने वक्तव्य में मोदी का नाम लिए बगैर कहा था कि एक साल से मणिपुर जल रहा है उसपर चिंता करनी चाहिए और वहां जाना चाहिए। दूसरी बात, सत्ता के शीर्ष पर बैठने के बाद अहंकार नहीं करना चाहिए। अभी हाल ही में उन्होंने झारखंड में एक कार्यक्रम के दौरान वक्तव्य में कहा कि विकास का कोई अंत नहीं होता, यह इच्छा पर निर्भर करता है, उसी तरह (मोदी के जैविक न होने वाले बयान पर) कोई खुद को इंसान की बजाय देवता बताए तो पता चला कि देवता ने कहा, मेरे से बड़े भगवान हैं, उनसे पता चला कि मेरे से बड़े परमात्मा हैं जो निराकार हैं।

यह वक्तव्य इस बात का संकेत देता है कि संघ और भाजपा में समन्वय नहीं है। जबकि इससे पहले भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने बयान दिया था कि अब पार्टी को किसी दूसरे संगठन के सहयोग की जरूरत नहीं है, क्योंकि यह संगठन अब खुद में सक्षम है। इस बीच संघ के मुख पत्र ‘विवेक’ यह मराठी में छपता है जैसे पांच जन्य और आर्गनाइजर हिन्दी व अन्य भाषाओं में छपते हैं।

विवेक में रिपोर्ट छपी कि भाजपा की वॉशिंग मशीन में विभिन्न पार्टियों से आये दागी साफ नहीं हुए बल्कि उनके चलते भाजपा को ही नुकसान पहुंचा। दूसरी तरफ यूपी भाजपा में उठापटक और सरकार में सीएम योगी आदित्यनाथ और डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के बीच कुर्सी को लेकर चल रही रस्साकसी में भी गुजरात लॉबी का खेल माना जा रहा है। ऐसे में योगी को संघ द्वारा संबल मिलने से भी इनकार नहीं किया जा सकता है।

दरअसल इन दोनों प्रकरण लोकसभा चुनाव में हार का ठीकरा फोड़ने और योगी आदित्यनाथ को हटाने को लेकर भाजपा हाई कमान यानी अमित शाह का दिल्ली का रास्ता खुद के लिए सुरक्षित करने को माना जा रहा है। योगी पर ठीकरा फोड़ने का उपाय न मिलने की स्थिति में केशव मौर्य को सामने कर दिया गया। क्योंकि, योगी अन्य राज्यों के मुख्य मंत्रियों सरीखे नहीं जिन्हें हटाकर यूपी को जीतना आसान होगा? योगी पर्ची से निकले रबर स्टैम्प वाले सीएम नहीं, उन्हें संघ की सहमति पर लाया गया था। वह हिंदुत्व का बड़ा चेहरा, बड़े जनाधार वाले नेता बन चुके हैं।

उपर्युक्त परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो यही समझा जा सकता है कि राष्ट्रीय पैमाने पर मोदी और मोहन भागवत में वैचारिक समन्वय नहीं है। उत्तर प्रदेश में अगले पीएम की कुर्सी की राह में शाह के लिए योगी सबसे बड़े रोड़ा नजर आ रहे हैं। जबकि योगी की ऐसी कोई मंशा नहीं मानी जाती है। लेकिन, उनकी बढ़ी लोकप्रियता ही शाह की आकांक्षा के जरिए उनकी ‘परेशानी’ का सबब है। लखनऊ में संघ व भाजपा की अचानक रद्द हुई समन्वय बैठक को इस नज़रिए से भी देखा जा सकता है।

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