विनम्र श्रद्धांजलि रवि शंकर वर्मा
# सच कहने और लिखने के जुनून ने बना दिया सम्पादक
कैलाश सिंह
सलाहकार सम्पादक
जीतेजी तो नहीं, पर निधन के बाद भी नहीं दिखे तथाकथित समाजसेवी और राजनीतिज्ञ, अब लगता है राजनीति हो गई सबसे बड़ा व्यवसाय, सौ लगाओ, करोड़ों कमाओ।जौनपुर जनपद में ईमानदार प्रतिनिधियों में केवल एक नाम- पूर्व विधायक सुरेंद्र प्रताप सिंह का ही जेहन में कौंधता रहा, लेकिन अब आईएएस अभिषेक सिंह का नाम भी यहां राजनीतिक पटल व शहर-गांव की गलियों में मददगार के रूप में गूंजने लगा है।

तहलका संवाद साप्ताहिक समाचार पत्र व वेब न्यूज पोर्टल के संस्थापक सम्पादक रवि शंकर वर्मा के निधन पर 18 फरवरी 2024 को एक मात्र अभिषेक सिंह ही पहुंचे। उन्होंने परिवार से मिलकर दुख साझा किया, बाकी नेता और उनके लोग दिल्ली में टिकट के लिए कतार में लगे हैं। विधायक और मंत्री के पास फुर्सत ही नहीं।

वाकया वर्ष 2005-2006 का है, तब मेरी पोस्टिंग जौनपुर में अमर उजाला ब्यूरो में थी। मेरे सहयोगी साथी राजकुमार सिंह नवोदय विद्यालय से पढ़कर निकले युवा सराफा व्यवसायी रविशंकर वर्मा से मुलाकात कराये। जनपद मुख्यालय के बड़ी मस्जिद मोहल्ले के निवासी रवि से पूछा की इस प्रोफेशन को क्यों चुन रहे, जबकि यहां वेतन के नाम पर केवल जेब खर्च ही मिल सकता है और दलाली का कोई चांस नहीं। रवि का जवाब था जेब खर्च मिले न मिले पर ईमानदारी तो मिलेगी, यही जरूरी है। इनका सफर शुरू हुआ और मुझे दूसरे शहर में तबादला मिला।

बाद में इन्हें हम लोगों के साथ वाला माहौल भी नहीं मिला और सराफा कारोबार में वह फ्राड के शिकार हुए जिसमे 40 लाख की चपत लगी। परिणाम स्वरूप घर बेचना पड़ा। यहां से छत छिनी तो शाहगंज तहसील मुख्यालय पर किराये के घर में पत्नी अंजू, बेटियों नीतिका, शैलजा, बेटा जातिन के साथ रहने लगे। यहां पत्रकार व व्यवसायी विनोद साहू व अखलाख खान सहयोग में खड़े हुए। गाड़ी चलने लगी और अंत में रवि ने अखलाख खान को साथ लेकर वेब न्यूज पोर्टल तहलका के नाम से लांच किया। जिसके विजिटर की संख्या लगभग चार करोड़ हुई। इस खुशी को सेलिब्रेट कर भी नहीं पाए की माउथ कैंसर का हमला हो गया। आपरेशन की दिक्कत से उबरे तो दिसम्बर 2022 में दोनों दोस्तों ने तहलका संवाद साप्ताहिक समाचार पत्र का प्रकाशन शुरू कर दिया। जुनून देखिये, रहने को अपनी छत तक नहीं लेकिन पत्रकारिता जारी रही और इनका हम साया अखलाख खान बने रहे। इनके जज़्बे को कम से कम हर पत्रकार को सलाम करना चाहिये। तकलीफें राहु केतु की तरह पीछे लगीं थी। हौसला और जुनून आसमां की परवाज़ करते रहे। पिछले सात माह से कैन्सर ने पुनः मौत का खेल शुरू कर दिया और 18 फरवरी की तड़के रवि हार गए और मौत जीत गई।

अब बिना छत व बगैर किसी आमदनी के रवि की पत्नी को दो बेटियों एक नौ साल के मासूम बेटे के साथ जीवन यापन का दुष्कर दौर आ पड़ा है। यह ऐसे दौर की घटना है जब जिले व प्रदेश में समाज सेवा के नाम पर राजनीति और राजनीति के नाम पर व्यवसाय करने वालों की भरमार है। चुनाव सिर पर है और वोटों की तिज़ारत शुरू होगी। खरीद फरोख्त रात के तीसरे पहर में होंगी लेकिन किसी के पास रवि के परिवार की मदद और सहानुभूति के लिए वक्त नहीं है।

इस कठिन दौर में मात्र अभिषेक सिंह पहुंचे और परिवार के लिए छाया बन खड़े हुए। ये वही अभिषेक हैं जिन्होंने अपना इस्तीफा भेजा है, लेकिन अभी स्वीकार नहीं हुआ है। इन्हें ईमानदारों में इसलिए शुमार करने की कोशिश कर रहा हूँ क्योंकि इनकी पत्नी दुर्गा शक्ति नागपाल जो वर्तमान में बांदा की डीएम हैं। इन्होंने पूर्ववर्ती अखिलेश यादव की सरकार में खनन में भ्रष्टाचार पर रोक लगाई तो सरकार की भृकुटी तन गई थी। लेकिन वह शक्ति बनी खड़ी रहीं। ज़ाहिर है अभिषेक सिंह में भी यही ज़ज़्बा है जो अपने गृह जनपद में कुछ बड़ी लकीर खींचने का मन बनाये हुए हैं।