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Saturday, September 21, 2024

संघ-भाजपा में दल बदलुओं से हुए नुकसान व नये राष्ट्रीय अध्यक्ष को लेकर चल रहा है मन्थन

संघ-भाजपा में दल बदलुओं से हुए नुकसान व नये राष्ट्रीय अध्यक्ष को लेकर चल रहा है मन्थन

# यूपी के मतदाताओं ने दलबदलू नेताओं को 2024 के लोकसभा चुनाव में सबक सिखाकर भाजपा को ढाई दशक पूर्व के इतिहास को पढ़ने का संकेत भी दिया। 

# योगी आदित्यनाथ ने पाला बदल नेताओं पर कभी भरोसा नहीं किया, लेकिन पार्टी हाईकमान ने उनकी एक नहीं सुनी तब भाजपा के कोर वोटरों ने ही सबक सिखा दिया। 

कैलाश सिंह
राजनीतिक संपादक
लखनऊ। 
तहलका 24×7 विशेष
                    राष्ट्रीय राजनीतिक गलियारे में कहा और माना जाता है कि दिल्ली की केंद्रीय सत्ता तक पहुंचने का रास्ता यूपी से होकर गुजरता है, जिसे यहां से अधिक सीटें मिलती हैं वही दल दिल्ली में गद्दीनसीन होता है। इस साल हुए लोकसभा चुनाव में पार्टी हाईकमान ने अन्य प्रांतों की तरह यूपी में भी दूसरे दलों से पाला बदलकर पार्टी में आये गैर भाजपाइयों को टिकट देकर संगठन के कार्यकर्ताओं को उनके प्रचार में लगा दिया।
लेकिन पार्टी के कोर वोटरों ने उन प्रत्याशियों को हराकर उन्हें तगड़ा सबक सिखा दिया।दरअसल चुनाव के दौरान निराश (कैडर) संगठन के निष्ठावान कार्यकर्ताओं की उदासीनता देख कोर वोटर भी फिसलने लगे, साथ ही जातिगत समीकरण, आरक्षण व संविधान बचाओ के विपक्षी दलों के मुद्दे को और बल मिल गया जो भाजपा के पराजय का कारण बना।
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और भाजपा के सूत्र बताते हैं कि संघ और संगठन के बीच मंथन में ढाई दशक पूर्व यानी वर्ष 1996-97 में उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह की सरकार बनाने के लिए बसपा और कांग्रेस से क्रमशह 40 और 28 विधायक तोड़े गए थे। जबकि 1996 के विस चुनाव से पूर्व बसपा और कांग्रेस में एलायन्स हुआ था, लेकिन बहुमत किसी को नहीं मिली और कांग्रेस की सीटें कम भी थीं, इसके चलते लगभग छह महीने राष्ट्रपति शासन था।
बाद में भाजपा और बसपा में 6-6 महीने दोनों दलों की सरकार वाले फार्मूले पर समझौता हुआ जिसे मायावती ने ताज कारिडोर मामले की जांच को लेकर तोड़ दिया था। इसी के बाद भाजपा ने दलबदलुओं पर भरोसा करके जैसे-तैसे सरकार तो चला ली लेकिन 2002 से भाजपा केन्द्र और राज्य में हासिए पर चली गई।
कांग्रेस तो तभी से अब तक नहीं उठ पाई। यही वह समय था सपा और बसपा के उत्थान का।
इस बार के लोकसभा चुनाव से पूर्व भाजपा में गैर दलों के उन दागी नेताओं की भर्ती ऐसे हुई मानो यह कोई नई पार्टी बनी हो, इसके चलते भाजपा के कैडर में असन्तोष बढ़ने लगा जिसका अनुमान पार्टी हाईकमान को बिल्कुल नहीं था। वह पार्टी और कैडर को दरकिनार करके मोदी की गारन्टी, उनके चेहरे और लहर के ‘मद’ पर सवार थे, इसी बीच सीएम योगी आदित्यनाथ को हटाने की योजना पर दोनों डिप्टी सीएम को लगा दिया गया, फिर भी कोर वोटरों ने पार्टी हाईकमान के ‘मद’ तोड़कर रख दिया।
लोकसभा चुनाव चल रहा था और गैर दलों से भाजपा में आकर टिकट लेकर मैदान में उतरे दो तिहाई प्रत्याशियों के लिए पार्टी कैडर और कोर वोटर ‘साइलेंट किलर’ सरीखे काम करने लगा, जब नतीजा आया तब धीरे-धीरे भाजपा हाईकमान की आंख खुलनी शुरू हुई। जबकि संघ समय-समय पर सचेत करता रहा लेकिन उसे भी पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा के बयान के जरिए नजरंदाज़ कर दिया गया। जब संघ से दूरी बनी तो इसके स्वयं सेवक भी तमाशबीन हो गए।
अब संघ व भाजपा के बड़े पदाधिकारियों के बीच चल रहे मन्थन में दो बातों पर निर्णय होना है। एक तो पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष जो संघनिष्ठ हो, दूसरा गैर दलों से लाए गए दलबदलुओं से कैसे पिंड छुड़ाया जाए, क्योंकि इनके चलते ही भाजपा हारी और जुगाड़ सरकार बनानी पड़ी जिसकी उम्र अनिश्चित है। लेकिन सबसे बड़ा नुकसान तो मोदी की लहर और भरोसे वाली गारन्टी को हुआ।
बानगी के तौर पर महाराष्ट्र के उन दागियों को देखा गया जिनपर खुद मोदी ने अपने चुनावी भाषण में घोटाले के आरोप लगाए और बाद में उन्हें पार्टी में शामिल कर लिया गया। यहीं से विपक्ष ने भाजपा की वाशिंग मशीन को भी मुद्दा बना लिया था।

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