सीएम योगी तक पहुंचने लगी है भ्रस्ट नौकरशाहों की कुंडली
लखनऊ/वाराणसी।
कैलाश सिंह/अशोक सिंह
टीम तहलका 24×7
उत्तर प्रदेश के अधिकतर जिलों में (आईजीआरएस) समन्वित शिकायत निवारण प्रणाली ध्वस्त, कल्याण सिंह के शासन काल में शुरू हुआ तहसील व थाना दिवस मजाक बनकर रह गया। शिकायतों पर स्थलीय दौरा बन्द, समस्या सम्बन्धित विभागों को ट्रांसफर करने जैसे कोरम हो रहे पूरे। वसूली और विवाद का जिम्मा लेखपालों के कन्धे पर, फंसने पर इन्हीं के गले में फांस डालकर बच निकलते हैं जिम्मेदार अफसर।

पुलिस का अर्दली रूम कारखास के सिर पर, अतिरिक्त कारखास बाइक से भ्रमण कर खोजते हैं मोटा विवादित केस, थानों में अंग्रेजी शासनकाल की पहचान आज भी आमजन के मनोभाव पर हावी, हवालात का भय दिखाकर दोनों पक्षों से शेयर बाजार सरीखे होता है सौदा। क्षेत्र में सिपाहियों की बाज नजर गोकशी, हरे पेड़ की कटान और भूमि विवाद पर होती है। उनके कांटे में न फंसने पर बुलाते हैं थाने में।

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लोकसभा चुनाव में भाजपा से आमजन की नाराजगी में नौकरशाही भी प्रमुख कारण बनकर लोगों की जुबान से बाहर आयी। दरअसल, बीते सात साल से होता यह रहा है कि पुलिस-प्रशासन, माननीय, पार्टी के नेता, कार्यकर्ता की नहीं सुनता है। फिर यही नेता पीड़ितों को उन दलालों का नाम सुझाते रहे जो मोटी रकम तय करके पुलिस व प्रशासनिक अफसरों से बात करके काम करा देते हैं, फिर हर कोई खुश। बस यहीं आकर मुख्यमन्त्री योगी आदित्यनाथ की ईमानदारी दम तोड़ती रही।

इन अफसरों को बचाने के लिए प्रदेश की राजधानी में इनके आका बैठे जो हैं, यह चेन तब टूटती है जब सुविधा शुल्क के नाम पर वसूली गई रकम देने में रुकावट होती है। इस तरह साढ़े सात दशक से चल रही चेन कभी कमजोर नहीं पड़ी। रहा सवाल चुनाव में भाजपा से नाराजगी का तो वह यह कि जब पार्टी कार्यकर्ता, नेता, माननीय का कहना अधिकारी नहीं मानेंगे तो वोटर पांच साल में एक बार क्यों सुनेगा?

# अब गौर कीजिए लाल फीताशाही के कारनामे जो 75 साल से अब भी कायम हैं। पहले इसकी बानगी देखिए
प्रदेश के किसी भी जिले में कोई भी व्यक्ति जमींन अथवा मकान रजिस्ट्री कराने जाता है तो उसे कीमत के अनुसार एक प्रतिशत या इससे अधिक ‘नज़राना’ देना पड़ता है। इसी कड़ी में असलहों के लाइसेंस, थानों के अर्दली रूम, हवालात और कारखास शामिल हैं। जरा सोचिए किसी शरीफ व्यक्ति को कह दिया जाए कि आपको थानेदार साहब ने पुलिस स्टेशन पर बुलाया है, तो उसपर क्या गुजरती है?

इस कैंपस में तो दलालों, चोर-उचक्के बने सफेदपोश बिंदास आते-जाते हैं। पासपोर्ट वेरिफिकेशन और असलहों के लाइसेंस बनवाने में आमजन को लाखों रुपये देने पड़ते हैं बिना रसीद पाए। थानों की अनौपचारिक नीलामी होती है। उसका आधार सम्बन्धित थाने की लाखों में कमाई पर निर्भर होता है। इनकी बोली में शामिल वही कर्मी होता है जो बोली से अधिक दाम लगाता है। इसमें जौनपुर जिले के सरपतहा थाने पर तैनात दारोगा/थानेदार त्रिवेणी सिंह जैसे लोग ही फिट बैठते हैं।

ऐसा न होता तो यह थानेदार बीते एक साल में कई थानों पर तैनात रहते हुए एक माननीय, कई नेता और तमाम मीडिया वालों को धमकी देकर जिले में नहीं रह पाता। ऐसे अधिकारी-कर्मचारी योगी शासन में दी गई थीम “पुलिस मित्र” का पलीता निकाल रहे हैं। ये सब बानगी है जिसे हर जिले में देखा जा रहा है।

आमजन की समस्या दूर करने और न्यायालयों से मुकदमों का भार कम करने को कल्याण सिंह ने अपने शासनकाल में तहसील व थाना दिवसों की व्यवस्था लागू की थी, उसके बाद से ही यह व्यवस्था कोरम पूरे करने और वसूली का ठीहा बनकर रह गई। इसमें पुलिस व प्राशासनिक अधिकारियों के तहसील व थाना दिवसों पर मिलने वाली शिकायतें कोटा पूर्ति को ली जाती हैं। स्थलीय निरीक्षण कर समस्या के निस्तारण की बात सपने सरीखी बेमानी हो चली है।

# जौनपुर जिले की बानगी देखिए
मदियाहूं थाने के उंचनी खुर्द गांव में 4 मार्च 2024 को भूमि विवाद में एक व्यक्ति की हत्त्या, एक घायल हो गया। इस घटना में मृतक और उसके परिजन थाने और तहसील का चक्कर काट चुके थे, लेकिन पुलिस और राजस्व विभाग अपना रेवेन्यू बढ़ाने में लगे रहे। इसी तरह बरसठी थाना क्षेत्र के पलटूपुर गांव में बीते अप्रैल माह में भूमि विवाद में ही दो व्यक्ति की मौत और सात लोग ज़ख़्मी हुए। इस तरह की घटनाएं एक जिले की नहीं हैं बल्कि प्रदेश के हर जिले के हर थाना क्षेत्र में मिल जाएंगी। अब राहत मिलने के आसार इसलिए दिख रहे हैं क्योंकि मुख्यमन्त्री योगी आदित्यनाथ मिल रही रिपोर्ट को गम्भीरता से ले रहे हैं। नौकरशाही पर उनके सख्त तेवर भी आमजन में देखने को मिलेंगे।