सोशल साइट्स से बढ़ रहा है दिखावा और आडंबर
# दिखावटी जीवन बन रहा है सामाजिक कटुता का मुख्य कारण
विचार मंथन।
रविशंकर वर्मा
तहलका 24×7
रिश्ते मानवीय भावनाओं का प्रतीक होते हैं। एक ओर जहां हमारे जीवन में कुछ रिश्ते खून के होते हैं, वहीं कुछ भावनाओं से भी बने होते हैं, जो कभी-कभी खून के रिश्तों से भी ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाते हैं। रिश्तों के बिना मनुष्य का जीवन अधूरा हो जाएगा। वास्तव में रिश्तों का कोई दायरा नहीं होता। परंतु आज समाज में मानवीय तथा पारिवारिक मूल्य धीरे-धीरे समाप्त होते जा रहे हैं।

अमीर रिश्तेदारों का सम्मान करते हैं, उनसे मिलने को आतुर रहते हैं, जबकि गरीब रिश्तेदारों से मिलने में कतराते हैं। अब तो केवल स्वार्थ सिद्धि की अहमियत रह गई है। आए दिन हम अखबारों में समाचार पढ़ते रहते हैं कि जमीन-जायदाद, पैसे-जेवर आदि के लिए लोग घिनौने से घिनौना कार्य कर जाते हैं, यहां तक कि अपने ही परिवार वालों की हत्या या फिर अपहरण तक कर जाते हैं।

वैसे तो सोशल मीडिया ने भी लोगों की निजी जिंदगी बर्बाद करने में कोई कसर नहीं छोड़ी, क्योंकि वहां पर सब कुछ हकीकत से कोसों दूर होता है, जिसके चलते डिजिटल दुनिया अक्सर रियल लाइफ से मेल नहीं खाती। घर पर रहें तो लैपटॉप पर, बाहर निकलें तो मोबाइल पर उंगलियां चलती ही रहती हैं। दिखावे के इस बाजार में हर दूसरा व्यक्ति डिजिटल और रियल पर्सनैलिटी के बीच उलझा हुआ है।

आज के दौर में हम सोशल मीडिया को पसंद या नापसंद तो करते हैं, लेकिन नजरअंदाज नहीं करते। सोशल साइट्स के प्रति लोगों का बढ़ता एडिक्शन रिश्ते टूटने की वजह बन रहा है। आजकल लोग सोशल लाइफ को रियल लाइफ समझने लगे हैं। ऐसे में लोग ऑनलाइन दुनिया में मेलजोल बढ़ाने के लिए निजी रिश्तों को भी दांव पर लगा देते हैं। रियल पर्सनैलिटी से दूर होकर दिखावटी दुनिया का हिस्सा बन रहे हैं। जबकि उस दिखावटी दुनिया में हमारी सोच, हमारी मानसिकता और पर्सनैलिटी हमारी रियल पर्सनैलिटी से एकदम अलग होती है।

वर्तमान समय में आडंबर, दिखावा, पाखंड और ऊपरी शानो-शौकत इस कदर हावी हो रहे हैं कि सभी इसके शिकार हो रहे हैं। किसी को पांच रुपए देते वक्त पांच सौ रुपए का नोट निकाल कर लोगों को दिखाना ऐसे लोगों की फितरत है। ज्यादातर सामाजिक समारोह, चाहे वे धार्मिक हों या परंपरागत, सभी धनबांकुरों की गिरफ्त में हैं। सभी ओर पैसे वाले और उनसे जुड़े नेताओं का ही बोलबाला है। अब ऐसी दिखावटी जिंदगी में लोगों के पास समय बहुत कम है, जिसके कारण रिश्तों का मतलब ही बदलता जा रहा है। लोग आजकल अपने आप में इतने मशगूल रहते हैं कि उन्हें आस-पास अपनी व्यक्तिगत या सामाजिक जिम्मेदारियों तक का एहसास नहीं रहता।

रिश्तों में सौहार्द लाने के लिए जरूरी है कि एक-दूसरे की जरूरतों को समझा जाए। कभी-कभी कुछ कारणों से परिवार या समाज में से किसी एक को लगने लगता है कि दूसरा उसे नजरंदाज कर रहा है, इसलिए जरूरी है कि ऐसी भावनाओं को पनपने न दें। अगर हम अपनों की इच्छाओं की कदर करेंगे, तो हमारे आपसी रिश्तों की डोर और भी मजबूत होगी। किसी भी रिश्ते का मजबूत आधार विश्वास होता है। अगर आपकी अपने पारिवारिकजनों या समाज में किसी सदस्य से अच्छी नहीं बन रही, तो कहीं न कहीं इसके पीछे विश्वास का कम होना और आपकी दिखावटी जीवनशैली का अधिक होना हो सकता है।