हर्षोल्लास के साथ मनाया गया ईद उल अजहा का पर्व, नमाज के बाद मुल्क में अमन शांति की मांगी गई दुआ
शाहगंज, जौनपुर।
एखलाक खान
तहलका 24×7
क्षेत्र के बड़ागांव स्थित ऐतिहासिक ईदगाह में सोमवार की 6:30 बजे ईद उल अजहा की नमाज मुफ्ती अजीजुल हसन द्वारा अदा की गई। वहीं दूसरी तरफ चहार रौज़ा स्थित शिया समुदाय की जमा मस्जिद में सुबह 8:30 बजे मौलाना आजमी अब्बास द्वारा नमाज पढ़ाई गई। नमाज के दौरान कोतवाली पुलिस द्वारा सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए।

बकरीद या ईद-उल-अजहा का पर्व रमजान के पवित्र महीने के खत्म होने के लगभग 70 दिनों के बाद आता है। इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार कहते हैं कि पैगंबर हजरत इब्राहिम से ही कुर्बानी देने की प्रथा शुरू हुई थी। कहा जाता है कि अल्लाह ने एक बार पैगंबर इब्राहिम से कहा कि वह अपने प्यार और विश्वास को साबित करने के लिए सबसे प्यारी चीज का त्याग करें और इसलिए पैगंबर इब्राहिम ने अपने इकलौते बेटे की कुर्बानी देने का फैसला किया था।

कहा जाता है कि जब पैगंबर इब्राहिम अपने बेटे की कुर्बानी देने ही वाले थे कि उसी वक्त अल्लाह ने अपने दूत को भेजकर बेटे को एक बकरे से बदल दिया था। तभी से बकरा ईद अल्लाह की राह में पैगंबर इब्राहिम के विश्वास को याद करने के लिए मनाई जाती है।
त्योहार में प्रार्थना, दावत और परिवार और दोस्तों के बीच उपहारों का आदान-प्रदान शामिल है।

पैगंबर इब्राहिम के बलिदान की याद में मुसलमान परंपरागत रूप से एक जानवर की बलि देते हैं, आमतौर पर बकरी, भेड़, भैंस आदि। जिसके मांस को तीन भागों में बांटा जाता है। एक परिवार के लिए, एक रिश्तेदारों और दोस्तों के लिए, और एक जरूरतमंदों लोगों के लिए। यह पर्व उदारता और एकता का प्रतीक है।