हाईकोर्ट ने श्रीकृष्ण जन्मभूमि परिसर में तीन दुकानदारों का दावा किया खारिज
# 25 साल से अधिक समय से चल रहा था विवाद
प्रयागराज।
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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मथुरा श्रीकृष्ण जन्मभूमि परिसर में दुकानों के कब्जे को लेकर दाखिल किरायेदारों की याचिका खारिज कर दी। न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल ने याचिका खारिज करते हुए दुकानदारों से कहा कि संस्था सार्वजनिक धार्मिक एवं चैरिटेबल ट्रस्ट है और उसकी संपत्तियां यूपी किराया कानून के दायरे से बाहर हैं।

किरायेदारी को लेकर 25 साल से अधिक समय से विवाद चल रहा था। कोर्ट ने निचली अदालत को शेष दो मुकदमों को दो महीने में निस्तारित करने का भी निर्देश दिया है। वर्ष 1944 में पं. महामना मदन मोहन मालवीय के नेतृत्व में श्रीकृष्ण जन्मस्थान के जीर्णोद्धार का कार्य शुरु हुआ था, वर्ष 1951 में श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट की स्थापना की गई और 1958 में इसके प्रबंधन के लिए श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान नामक सोसायटी बनाई गई।

संस्थान ने परिसर में कुछ दुकानें बनवाकर उन्हें किराए पर दिया। इनमें दुकान नंबर 8 ए अशोक राघव, दुकान नंबर 8 पद्मा राघव और दुकान नंबर 16-17 हरीश राघव (अब उनके वारिस) को दी गई। 11 महीने के लाइसेंस की अवधि समाप्त होने के बाद भी किरायेदारों ने दुकानें खाली नहीं की, जिसके बाद संस्थान ने बेदखली वाद दाखिल किया।

किरायेदारों ने कहा कि संस्थान सार्वजनिक धार्मिक या चैरिटेबल ट्रस्ट नहीं है। इसलिए उत्तर प्रदेश अर्बन बिल्डिंग एक्ट 1972 लागू होना चाहिए, जो किरायेदारों को ज्यादा सुरक्षा देता है। यह भी कहा कि संस्थान के सचिव कपिल शर्मा के पास उनके खिलाफ मुकदमा करने का अधिकार नहीं था। कोर्ट ने ट्रस्ट डीड व सोसायटी के मेमोरेंडम का अवलोकन करने के बाद कहा कि इसका उद्देश्य पूरे विश्व के हिंदुओं के लिए धार्मिक और कल्याणकारी कार्य करना है। इसलिए यह स्पष्ट रुप से सार्वजनिक धार्मिक और चैरिटेबल संस्थान है। ऐसी संस्थाओं की संपत्तियां किराया कानून के दायरे से परे हैं।

कोर्ट ने कहा कि सोसायटी के बाइलॉज के अनुसार सचिव और संयुक्त सचिव को संस्थान की ओर से मुकदमा चलाने का पूरा अधिकार है।कपिल शर्मा के अधिकार पर संस्थान के किसी भी ट्रस्टी या सदस्य ने आपत्ति नहीं की, इसलिए किरायेदार इस आधार पर मुकदमे को चुनौती नहीं दे सकते।हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट को पद्मा राघव और हरीश राघव के वारिसों के खिलाफ लंबित बेदखली के मुकदमों की प्रक्रिया दो महीने के भीतर पूरी करने का निर्देश दिया है।








