आवाम की दिलों पर छा जाने वाले शायर डा. दिलशाद गोरखपुरी
स्पेशल डेस्क।
एख़लाक खान
तहलका 24×7
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गोरखपुर की अद्भुत फिजा को सदा उर्दू अदब याद रखेगी। गोरखपुर की धरती ने बड़े-बड़े शयरों और साहित्यकारों को जन्म दिया। इसी सर ज़मीन से रघुपति सहाय फिराक गोरखपुरी ने जन्म लिया जिनकी शायरी ने पूरी उर्दू दुनिया पर अपना लोहा मनवाया। उर्दू अदब कभी इस बात को फरामोश नहीं कर सकता। इस सरजमीन ने मजनू गोरखपुरी जैसी इलमी व आदबी शख्सियत को जन्म दिया। न जाने कितने शायरों ने गोरखपुर से उठकर पूरी दुनिया के अंदर गोरखपुर जिला का नाम रोशन किया। लोगों ने इस बात की तस्दीक की है कि जब भी गोरखपुर से कोई आवाज उठती है तो पूरे हिंदुस्तान के अंदर गूंजती है। एक ऐसी शख्सियत का जिक्र काबिले गौर है जो कि एक बहुत मारूफ एंकर नजिमें मुशायरा हैं जिनकी धूम पूरी दुनिया के अंदर मची है। इस नाम को आज पूरी दुनिया में बड़े अदब के साथ लिया जाता है।
गोरखपुर की मिट्टी से उठे देशभर में मुशायरों की निजामत और प्रेम की शायरी करने वाले मशहूर शायर डाॅ. दिलशाद गोरखपुरी से तहलका संवाद के प्रधान कार्यालय में हुई एक मुलाकात में बातचीत का दौरान शायर डाॅ. दिलशाद ने बातों को आगे बढ़ाते हुए बताया मशहूर मारूफ नजिमें मुशायरा उमर कुरैशी जिनकी निजामत का लोहा पूरी उर्दू दुनिया के अंदर माना जाता है। आवाम ने यहां तक कहा कि अब ऐसा नजिम नहीं पैदा होगा। पूरे हिंदुस्तान के अंदर बहुत से ऐसे मशहूर नाजिम जिनकी मुशायरा व कवि सम्मेलन में हिंदुस्तान में नहीं बल्कि दूसरे मुल्क में उनका सिक्का जमा हुआ था जैसे प्रोफेसर मलिकजादा मंजूर, अनवर जलालपुरी, जमाल आजर ने माना कि उमर कुरैशी जैसा नाजिम अब नहीं देखने और सुनने को मिलेगा।
इस विरासत को संभालते हुए गोरखपुर से एक और आवाज उठती है जो बहुत कम उम्र में अपनी मुशायरा व कवि सम्मेलन की दुनिया में अलग पहचान बनाए हुए हैं। मुशायरे और कवि सम्मेलन में तो कम देखने को मिलते हैं लेकिन जब भी किसी मुशायरे की निजामत उनकी लाइव यूट्यूब के जरिए देखने को मिलती है तो इस बात को तस्लीम जरूर किया जाता है कि उनकी निजामत पर मुशायरा बहुत कामयाब रहता है। यूपी का, बिहार का, बंगाल का हो या नेपाल का, मुशायरा किसी प्रदेश का हो, नवजवान नजिमें मुशायरा डॉक्टर दिलशाद गोरखपुरी ने अपनी एक अलग पहचान बनाई है।
उनसे उर्दू अदब पर किए गए सवाल पर उन्होंने कहा कि मैं मुशायरा कवि सम्मेलन के मंच पर वह सब कुछ देखना चाहता हूं जो कि बुजुर्गों ने आज से चंद साल पहले मुशायरे का तरीका बनाया था। मुशायरे में किस तरीके से बैठना है, कैसे कलाम पढ़ना है, कैसे आवाम के सामने रूबरू होना है, मुशायरे के मंच पर किसी तरह की बे-अदब चीजों को आप बर्दाश्त नहीं करते। यही वजह है कि आज भी दिलशाद गोरखपुरी का नाम बड़े सलीके और अदब से लिया जाता है। डॉ. दिलशाद गोरखपुरी की अपनी अलग दिनचर्या है, पेशे से डॉक्टर हैं। गोरखपुर शहर के मोहल्ला चिलमापुर उनका शिफा होम्योपैथिक दवा खाना है। एक अच्छे शायर व नाजिमें मुशायरा के साथ एक अच्छे बा-अदब इंसान भी हैं और दाे किताबों के लेखक भी। जो गुलदस्ते नात और नगमा ते दिलशाद के नाम से लिखी गई हैं।
शायरी में दर्द और सच्चाई अंदाजा लगाएं
बा हमें रिश्ते यहां पर इस कदर मजबूत हैं
प्यार के हर कोई गुण गाता है गोरखपुर में
सभी के हाथ पीले हो गए और तुम अकेली हो
तुम्हें बाजार कि ये चूड़ियां आवाज देती है
जी रहा हूं तेरी वफा के लिए
पास आ जाओ अब खुदा के लिए
जामें शराब तूने पिलाया तो क्या किया
गिरते हुए को और गिराया तो क्या किया
क्या प्यास में गुनाह का एहसास मर गया
मैं है हराम फिर भी पिए जा रहे हैं लोग
राह से भटक जाना आदमी की फितरत है
लाख कोशिशें कीजिए यह कमी नहीं जाती