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Sunday, November 23, 2025

करगिल विजय दिवस पर शहीदों को सत्-सत् नमन्

करगिल विजय दिवस पर शहीदों को सत्-सत् नमन्

अवधी भाषा में कवि गिरीश जी की एक रचना… 
विजय दिवस पुष्पांजलि, अर्पित करते आज।। 
वीरों के बलिदान पर, है गिरीश को नाज।।
चल हट भाग हांकिले गदहा लेइ ज उही चराउ।
ए केसर क स्वाद का जानइं एनके घास खियाउ।। 
बीछ, बीछ के ऊंच चउतरा, आसन लिहा लगाइ।
ई का तोहरे बाप क हउवइ, धत् तेरी की आउ।।
चल हट भाग हांकिले गदहा लेइ जो उनही चराऊ।। 
मंसा पूर कबउं न होये, नहंकइ हया अधीर।
जियतइ जी हमसे का लेबा तू बच्चू कश्मीर।।
करगिल द्रास बटालिक लेबा, आवा तोहके देइ।
जूता भेइं भेंइ सब मारी तोर साथ के देइ।।
ऊंट क चोरी निहारे, निहुरे देखा तनी तमाशा।
हमसे आंख मिचउली खेलबा तोहइं खाबा झांसा।।
गदहन के कांड़इ न देबइ आपन पलिहर परती।
हम भारत क बीर सिपाही ई हउ आपन धरती।।
दाड़ें अउबा भरि हिक पउबा, गदहउ मार भगाउब।
तू बाते क देवता नाही, लाते से लतियाउब।।
ऐना लेइके देखा चेहरा , पोता बाटइ काउ।
थू-थू, थू-थू थूकत बा दुनियां ,दुनियां से थूकवाउ।
चल, हट भाग हाँक इ गदहा लेई जा उहीं चराउ।।
रस्सी जरिग अइठन बाकी,काही के बउरान।
काउ समुझि के चढ़ि आया तू,चढ़े त भागि पराना।।
ताखे पर धइ दिहा जनेवा, ताशकन्द, शिमला समझौता।
बस यात्रा लाहौर अटल क भूलि गया तू प्रेम क न्यौता।।
रगरि के चुल्लू भर पानी में नाक डूबि मरि जाते।
कहां देखउबे आपन मुंह तैइ चोरकट तनी लजाते।।
फटा नगोटा तोर तोपि ले ज,ज, नवा सियाउ।
चीन्हि चीन्हि के बीनि ले आपन लेइ ज लाश उठाउ।।
चल हट भाग हाँक ले गदहा लेई ज उहीं चराउ।।
मन में आन बगल में छूरी, कपट भरा बा पोरे, पोरे ।
गब्बर चोर सेन्ह मे गावैइ, लाज नाइ बा ऐइसन चोरे।।
एक्कउ घर त नाइं बचा बा ,कहां नाइं फैइलाया।
खाली हांथे सब लउटाएन, सब के आगे गाया।।
फाटैइ लाग त भागइ लाग, देखि लिहा न आई।। 
अति करबा त इति कइ देबैइ,जाये नाउं बुताई।।
जिनगी भर क लतमरूआ तैइ,घूमि के तेल लगाउ।
आगे पीछे अमरीका के टहरि के गोड़ दबाउ।।
चल हट भाग हांक ले गदहा,लेइज उही चराउ।।।

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