कैदी की रिहाई में देरी पर चला सुप्रीम कोर्ट का चाबुक
# योगी सरकार ने दिया 5 लाख का मुआवजा
नई दिल्ली।
तहलका 24×7
उत्तर प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया कि उसके निर्देश पर एक व्यक्ति, जिसकी जमानत मिलने के बाद जेल से रिहाई में लगभग एक महीने की देरी हुई थी, उस पीड़ित को पांच लाख रुपये का मुआवजा दिया गया। मामला न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की पीठ के समक्ष आया।जीराज्य सरकार के वकील ने पीठ के समक्ष दलील दी कि राज्य ने सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश का पालन किया है, इसके साथ ही याचिकाकर्ता को मुआवजा दिया गया क्या है।

वहीं याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील ने मुआवजा प्राप्त करने की पुष्टि की। गौर करें तो शीर्ष अदालत ने 29 अप्रैल को एक मुस्लिम व्यक्ति को जमानत दी थी, जमानत मिलने के बाद 27 मई को गाजियाबाद की एक ट्रायल कोर्ट ने उसकी रिहाई का आदेश जारी किया। आफताब पर राज्य के धर्मांतरण विरोधी कानून के प्रावधानों के तहत मामला दर्ज किया गया था। हालांकि उन्हें 29 अप्रैल को शीर्ष अदालत ने जमानत दे दी थी. लेकिन आफताब को गाजियाबाद जिला जेल से 27 मई को रिहा किया गया, इस तरह से उसकी रिहाई में 28 दिनों की देरी हुई थी।

बता दें कि इस मामले की सुनवाई करते हुए 25 जून को शीर्ष अदालत ने देरी के लिए जेल अधिकारियों की आलोचना करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। इसके साथ ही पांच लाख रुपये के मुआवजे का आदेश दिया। कोर्ट ने यूपी सरकार से शुक्रवार को अनुपालन पर रिपोर्ट मांगी थी। शीर्ष अदालत ने कहा था कि संविधान के तहत स्वतंत्रता एक बहुत मूल्यवान और कीमती अधिकार है शीर्ष अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता ने “मामूली गैर-मुद्दे” के कारण 28 दिनों के लिए अपनी स्वतंत्रता खो दी थी। पीठ ने गाजियाबाद के प्रधान जिला और सत्र न्यायाधीश द्वारा मामले की जांच का भी आदेश दिया था।

पीठ ने कहा कि उसकी रिहाई में देरी उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम 2021 के एक प्रावधान की उपधारा के कारण हुई। इसका उल्लेख जमानत आदेश में नहीं किया गया था। गौर करें तो 29 अप्रैल को शीर्ष अदालत ने आफताब को जमानत दे दी थी, जिसने स्वेच्छा से हिंदू धर्म अपना लिया था, इसके साथ ही हिंदू रीति-रिवाजों के मुताबिक एक हिंदू लड़की से शादी कर ली थी। इस मामले में लड़की की मौसी ने गुमशुदगी की शिकायत दर्ज कराई। आफताब पर तत्कालीन आईपीसी की धारा 366 (अपहरण, अपहरण या महिला को शादी के लिए मजबूर करना आदि) और 2021 अधिनियम की धारा 3 और 5 (गलतबयानी, बल, धोखाधड़ी, अनुचित प्रभाव, जबरदस्ती, प्रलोभन द्वारा एक धर्म से दूसरे धर्म में धर्मांतरण का निषेध) के तहत मामला दर्ज किया गया था।