31.1 C
Delhi
Thursday, June 27, 2024

चाय की दुकानों पर बनती-बिगड़ती केंद्र की सरकार

चाय की दुकानों पर बनती-बिगड़ती केंद्र की सरकार

# भाजपा ने पार्टी में परिवारवाद खत्म करने की कोशिश की, पर गठबंधन के सयोगियों ने तोड़ा रिकॉर्ड

# अमित शाह और आदित्यनाथ के बीच की तल्खी ने किया भारी नुकसान

जौनपुर। 
कैलाश सिंह/अशोक सिंह/एखलाक खान 
तहलका 24×7
              निषाद, राजभर, और अपना दल एस. के मुखिया की जुबान और परिवारवाद के मोह ने उन्हें अपनी ही जातियों से किया दूर कांग्रेस के सहयोगी सपा ने परिवारवाद तो किया लेकिन पीडीए का फार्मूला हुआ सफल, इसी फार्मूला से अदर बैकवर्ड भाजपा से खिसक कर इंडिया गठबंधन की ओर आया
इस बार संसदीय चुनाव 2024 में दिखा कि जातियों के सहारे कबीलाई संस्कृति को पनपने को मिली ज़मींन
सातवें फेज में यूपी की 13 सीटों पर भी यही फार्मूला भारी पड़ता नज़र आ रहा, केवल वाराणसी सीट दिख रही क्लीयर पर पीएम की जीत का अंतर होगा कम
विस्तृत खबर :
—————————–
जौनपुर, मछलीशहर, वाराणसी,  और दिन सोमवार, स्थान चाय की दुकानें, माहौल चुनावी चर्चा। जौनपुर की दो सीटों पर मतदान हो चुके हैं और वाराणसी की सीट हॉट है। इसके साथ सातवें चरण में यूपी की 12 और सीटों पर चुनाव है। वाराणसी में चर्चाओं के दौरान पीएम मोदी के जीतने की गारन्टी सभी दे रहे। लेकिन, कांग्रेस के प्रत्याशी उनकी जीत के अंतर को कम करके अपनी पार्टी के यूपी में भी मजबूत होने की दस्तक देंगे।
जौनपुर में एक चाय की दुकान पर हो रही चर्चा के केन्द्र बिन्दु में अदर बैकवर्ड और मुस्लिम रहे।(सभी काल्पनिक नाम) असगर बोले की मुस्लिम की पहली पसन्द फिर कांग्रेस हो चुकी है, चूंकि पूर्व सांसद धनंजय सिंह दबंग नेता हैं, सरकार चाहे जिसकी हो, वह मुस्लिमों, दबे कुचलों के लिए हमेशा तैयार होते हैं, इसलिए उनके मैदान में रहते मुस्लिम ही नहीं, अदर बैकवर्ड भी मजबूती से खड़ा होता है। उनके मैदान से हटते ही कांग्रेस गठबंधन के सहयोगी सपा की ओर जाना ही विकल्प था।
उनकी बात पर दूधिया राम आसरे पाल ने सहमति जताते हुए कहा कि भाजपा सरकार में सहयोगी बैकवर्ड नेता परिवार के साथ अपनी जाति वालों का तो ध्यान रखते हैं। लेकिन, अदर बैकवर्ड या अन्य पर ध्यान नहीं देते, लेकिन वोट की बेला में वह अपनी ही जाति का वोट पार्टी को नहीं दिला पाते, तब वह राजा रघुराज प्रताप सिंह की तरह खुलकर तो नहीं पर अंदरखाने इशारा कर देते हैं।
जहां मन करे वहां जाओ, खुद मैदान में आऊंगा तब सभी साथ रहना। उनकी बात पर जोखू यादव ने बिंदास हामी भरी। इस तरह की बहस में यह बात समझ आने लगी है कि अब लोकतंत्र में आम चुनाव हो या प्रादेशिक अथवा प्रधानी या नगर निकाय, इस दौरान आमजन भी जाति के बहाने कबीलाई हो जाता है।जबकि, इन्हीं चुनाव के जरिये कबीलों से उठकर लोगों को बेहद सशक्त वोट के अधिकार मिले हैं।
अब भाजपा के सहयोगी पार्टियों पर नज़र डालें तो इनपर भी चाय की दुकानों पर सुबह-शाम चर्चा होती है। जहां भाजपा समर्थक दुहाई देते हैं कि इन्हें देश, प्रदेश की सरकारों में स्थान दिये गए। लेकिन, यह अपने परिवार पत्नी, बेटे, पति तक सीमित रहकर भाजपा के समर्थकों को नाराज़ करने में लगे हैं। इनमें ओमप्रकाश राजभर और उनके साथी के अलावा अनुप्रिया पटेल टॉप पर हैं।
दोनों ने सरकारों से खूब लाभ लिया, लेकिन अपनी ज़ुबान से ऐसा बैकफायर किया की भाजपा के कोर वोटर बिदक गए। दिलचस्प ये है कि चुनाव के आखिर में सातवें फेज में इन तीनों के परिजन फंस गए हैं। अब इनको ही अपनी जातियों के वोट के लाले पड़ गए हैं।
यूपी की राजधानी लखनऊ में दिल्ली से गृहमंत्री अमित शाह के हस्तक्षेप की भनक भी लगातार प्रदेश के अंतिम छोर के गावों तक पहुंचती रही।
योगी जी पर ठाकुरवाद के आरोप भी लगते रहे, प्रायोजित तरीके से। जबकि, वह गोरक्षपीठ के पीठाधीश्वर हैं। उनके सभी पांव छूते हैं तब सभी संत मानते हैं। योगी के हिंदुत्व ब्रांड से घबराए अमित शाह, मोदी के बाद पीएम सीट के लिए अपना रास्ता निष्कंटक बनाने लगे। इसी चक्कर में कभी केशव मौर्य कभी अन्य के नाम यूपी सीएम के लिए प्रदेश की राजनीतिक फिज़ाओं में अफवाह तैरने लगी। इन अफवाहों को इतने पंख लगे कि लोकसभा चुनाव में वोटर जातियों में विभक्त होने लगे।
इसी दौरान राजभर और उनके सहयोगी को कई महीने बाद प्रदेश के मंत्रालय में शामिल कराने को आमजन ने दिल्ली का दबाव माना, इसके बाद ठाकुर वोटबैंक भी लामबंद होने लगा। इस तरह पूरे प्रकरण का असर लोस चुनाव पर पड़ा।दूसरी तरफ विपक्ष में राहुल गांधी को यूपी में भी आमजन गंभीरता से लेने लगा। वह मोदी के हर आरोप का पलटवार उन्हीं के बोले भाषण से करने लगे।
इधर इस चुनाव में यह भी खूब देखने को मिलता गया कि आमजन जातियों में विभक्त होकर कबीलाई संस्कृति की तरफ़ बढ़ने लगा। इसका नतीज़ा सातवें फेज में चर्मोत्कर्ष पर देखने को मिलेगा। पार्टियों की नीतियों, उनके मैनिफेस्टो को दरकिनार हुए और बड़े नेताओं के भाषणों से भी नैतिकता बाहर हो गई। एक-दूसरे पर चले आरोप, प्रत्यारोप जैसे बेसिक स्कूलों के बच्चों में होने वाली अंत्याक्षरी से भी नीचे गिर गई। नैतिकता वाले मानक के बांध टूट गए।

तहलका संवाद के लिए नीचे क्लिक करे ↓ ↓ ↓ ↓ ↓ ↓ ↓ ↓ ↓ ↓ ↓ ↓

Loading poll ...

Must Read

Tahalka24x7
Tahalka24x7
तहलका24x7 की मुहिम..."सांसे हो रही है कम, आओ मिलकर पेड़ लगाएं हम" से जुड़े और पर्यावरण संतुलन के लिए एक पौधा अवश्य लगाएं..... ?

पूर्वांचल का एक ‘माननीय’ भर्ती परीक्षाओं का है बेताज खिलाड़ी

पूर्वांचल का एक 'माननीय' भर्ती परीक्षाओं का है बेताज खिलाड़ी कैलाश सिंह/अशोक सिंह नई दिल्ली/लखनऊ  टीम तहलका 24x7          ...

More Articles Like This