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Friday, March 29, 2024

जौनपुर : वैदिक रीति रिवाज के अनुसार संपन्न हुआ राजमहल का शस्त्र पूजन

जौनपुर : वैदिक रीति रिवाज के अनुसार संपन्न हुआ राजमहल का शस्त्र पूजन

जौनपुर।
विश्व प्रकाश श्रीवास्तव/ डॉ अखिलेश्वर शुक्ला
तहलका 24×7
                 जौनपुर रियासत के 12वें नरेश राजा अवनीन्द्र दत्त द्वारा हवेली में शस्त्र पूजन वैदिक रीति रिवाज से शुभ विजयदशमी के अवसर पर विधि-विधान से संपन्न हुआ। लगातार 200 से अधिक वर्षों से यह शस्त्र पूजन का कार्यक्रम हवेली के दरबार हाल में होता चला आ रहा है। शस्त्र पूजन के दौरान शहर के गणमान्यजन, व्यापारी, अलग लिबास में शानदार साफे की पगड़ी पहने दरबार हाल की शोभा बढ़ाते हैं। यही नहीं राजा साहब जौनपुर के पोखरा पर मेला एवं राजा जौनपुर द्वारा रावण दहन देखने के लिए गांव-देहात से अपार भीड़ आती है। जौनपुर रियासत के प्रथम नरेश राजा शिवलाल दत्त ने 1798 में विजय दशमी के दिन शस्त्र पूजन एवं दरबार की शुरुआत की थी।

शानदार दरबार हाल में उस समय के जिलेदार (ठिकानेदार), सर्वराकार, राज वैध, हकिम, व्यापारी सहित गणमान्यजनों की उपस्थिति में शस्त्र पूजन वैदिक रीति रिवाज से राज ज्योतिषी द्वारा निर्धारित लग्नानुसार सम्पन्न हुआ करता था। तत्पश्चात द्वितीय राजा बाल दत्त की धर्मपत्नी रानी तिलक कुंवर ने 1848 में पोखरे पर विशाल भब्य मेले की शुरुआत की थी। राजा जौनपुर की सवारी शाही अंदाज में हवेली से मानिक चौक, सिपाह होते हुए मेला स्थल (राजा साहब का पोखरा) तक पहुंच कर रावण दहन करने के बाद शम्मी पूजन करते हुए वापस हवेली पहूंचती थी। इस दौरान राजा का दर्शन करने वालों की भीड़ देखने लायक होती है। यह सिलसिला बदस्तूर जारी है। महारानी तिलक कुंवर ने वर्ष 1845 में रामलीला की शुरुआत की थी। जो रामनगर में होने वाली रामलीला के तर्ज़ पर होता था।

जिसका प्रारंभ “राजा बाजार” से होकर राजा साहब के पोखरा पर राम-रावण युद्ध के बाद रावण दहन फिर राज तिलक के पश्चात पूर्ण होता था। राजा की सवारी हवेली पहुंचती थी। पंडित जी की रामलीला ने इसे जारी रखने का प्रयास किया है। वर्तमान राजा को आज भी एक दिन के लिए राजा का सम्मान सरकार की तरफ से प्राप्त है।वर्तमान समय में अनेकों घरानों, संगठनों द्वारा शस्त्र पूजन का विधान किया जा रहा है, लेकिन जौनपुर रियासत के हवेली स्थित आकर्षक “दरबार हाल” में जो राजपुरोहित सहित पांच पंडितों की उपस्थिति में होता है वह इस दृष्टि से भिन्न है कि यहां नये शस्त्रों की नहीं बल्कि पुराने शस्त्रों की पूजा वैदिक रीति रिवाज से मंत्रोचार के साथ विधिवत सम्पन्न होती है। भारतीय संस्कृति सभ्यता परम्परा को जीवित रखने वाले ऐसे घरानों की जय हो।

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