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Wednesday, April 24, 2024

शाहगंज दशहरा मेले का मुख्य आकर्षण है ट्रैक्टर और ट्रक, जिस पर बैठ महिलाएं उठाती हैं मेले का लुत्फ

शाहगंज दशहरा मेले का मुख्य आकर्षण है ट्रैक्टर और ट्रक, जिस पर बैठ महिलाएं उठाती हैं मेले का लुत्फ…

# आईये जानते हैं शाहगंज के ऐतिहासिक दशहरा एंव भरत-मिलाप के बारे में कुछ विशेष..

शाहगंज।
राजकुमार अश्क
तहलका 24×7
                सिराज-ए-हिंद की सबसे समृद्धिशाली तहसील शाहगंज की ऎतिहासिक रामलीला एवं भरत-मिलाप अपने अंदर कई सदियों का इतिहास छिपाए हुए है। इसे गंगा-जमुनी तहज़ीब का मिला-जुला संगम भी कहा जा सकता है। तो आइए जानते हैं शाहगंज के रामलीला एवं भरत मिलाप का इतिहास..
तहलका 24×7 (फाइल फोटो)
शाहगंज में रामलीला के मंचन की शुरुआत सर्वप्रथम पंडित अनंत राम ने आज से लगभग 185 वर्ष पहले की थी। शुरुआत में इसका मंचन पुराना चौक पर होता था जिसमें हजारों की संख्या में लोग इकट्ठा होकर इस ऐतिहासिक दृश्य का आनंद उठाते थे। तत्पश्चात् इसके मंचन का कार्यक्रम पक्का पोखरा स्थित बाबू छेदी लाल के मकान के सामने होने लगा मगर समय के साथ इसके स्थान में भी परिवर्तन हुआ और वर्तमान में रामलीला का मंचन कलेक्टरगंज स्थित चबूतरे पर होने लगा और..
तब से लेकर आज तक निर्वाध गति से चला आ रहा है। नई आबादी तहसील के पास रामलीला मैदान में भी रामलीला का मंचन तीन दिन होता है, यह पहलें सिर्फ रात में होता था मगर कुछ समय से रामलीला के मंचन का आयोजन दिन में भी पक्का पोखरा पर हो रहा है। जिसमें हजारों की संख्या में भक्त पहुँच कर प्रभु श्रीराम के दर्शन करते हैं वहीं भरत-मिलाप की परम्परा आज भी पुराना चौक पर ही होती है।
तहलका 24×7 (फाइल फोटो)
गौरतलब है कि क्षेत्र में 185 वर्ष पूर्व श्रीराम लीला और विजयादशमी मेला की शुरुआत हुई। तभी से रावण के पुतले के अलावा राजा दशरथ के दीवान, अशोक वाटिका, मेघनाथ, जटायु, हिरन आदि के पुतले बनाने का काम सुब्बन खां का परिवार करता चला आ रहा है। सुब्बन खां बताते हैं कि इससे पहले उनके पिता कौसर खां रावण का पुतला बनाने की जिम्मेदारी निभाते रहे अब इस काम को वे करते हैं।
सहयोग में पत्नी महजबी, पुत्री अफरीन, गुलसबा व पुत्र शाहनवाज, आकिब लगे रहते हैं। सुब्बन खां का परिवार पीढ़ियों से बगैर किसी हिचक के विजयादशमी के पर्व में अपना सहयोग देता चला आया है। उनका यह सहयोग आपसी भाईचारे की जीती जागती मिसाल है। वहीं रावण के पुतले में लगने वाली आतिशबाजियों का सहयोग नटराज आतिशबाजी के सेराज आतिश एंव बेलाल आतिश तीन दशक से कर रहे हैं।
तहलका 24×7 (फाइल फोटो)
बताते चलें कि शाहगंज के विजयादशमी का मेला पूर्वांचल में अलग स्थान रखता है। यहां क्षेत्र के अलावा आजमगढ़, सुल्तानपुर, आंबेडकर नगर जिलों से भी लोग आते हैं। मेले में बैलगाड़ी और ट्रैक्टर से महिलाओं के पहुंचने की एक अनोखी परंपरा रही है। हालांकि बदले दौर में अब इक्का- दुक्का बैलगाड़ी ही दिखाई पड़ती हैं। इनकी जगह ट्रैक्टर और ट्रकों ने ले लिया है।
गाड़ियों में चारपाई और चौकी आदि रख कर उस पर बैठकर महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग मेले में पहुंचते हैं। मेला स्थल पर व्यवस्था बनाए रखने में पुलिस प्रशासन के साथ ही श्रीराम लीला समिति के पदाधिकारी और कार्यकर्ता भी सक्रिय भूमिका निभाते हैं। आयोजन स्थल में बने पंडाल में क्षेत्रीय जनप्रतिनिधि और प्रशासनिक अफसरों की मौजूदगी मेले के महत्व को दर्शाती है।
तहलका 24×7 (फाइल फोटो)
वहीं शाहगंज के भरत-मिलाप की बात की जाए तो प्रभु श्रीराम का पुष्पक विमान इतना मनोरम होता है कि इसे देखने के लोग दूर-दराज से आते हैं और पूरी रात का यह मेला पूर्वांचल में प्रसिद्ध है।प्रभु का पुष्पक विमान इतनी अलौकिक छटा लिए होता है कि जैसे प्रतीत होता है स्वंय भगवान विश्वकर्मा ने ही बनाया है।

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