नर्सिंग होम के लिए रेफरल सेंटर बन गए सरकारी चिकित्सालय
कैलाश सिंह/अशोक सिंह
वाराणसी/लखनऊ
टीम तहलका 24×7
यूपी की सी ग्रेड सिटी में भी बिना विशेषज्ञ के खुलने लगे डायलिसिस केंद्र, इसके संचालन का जिम्मा टेक्निकल स्टाफ के नाम पर फ्रेशर सम्भाल रहे, अब पैथालॉजी की तरह इसमें भी हर घण्टे बरसते हैं रुपये, मानीटरिंग का जिम्मा सम्भालने वाले चिकित्साधिकारी पैसे और नौकरशाही के बीच बने सैंडविच।
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जिला अस्पतालों की मशीनें धूल फांक रहीं, सीएचसी, पीएचसी में तैनात चिकित्सक से लेकर पैरा मेडिकल स्टाफ अपने निजी अस्पतालों या मोटे कमीशन के लिए नर्सिंग होम में भेजते हैं मरीज। गर्भवती महिलाओं को भी नहीं बख्शते, आपरेशन के नाम पर उन्हें भी पहुंचा देते हैं नर्सिंग होम, दवाओं में भी है बड़ा खेल।
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विस्तृत खबर :
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प्रदेश सरकार राजकीय अस्पतालों में जिन सुविधाओं को बढ़ाती है, उसे ही मरीजों के आवक का हाइ-वे मानकर मल्टी स्पेशलिटी के नाम से कार्पोरेट स्टाइल में चलने वाले नर्सिंग होम संचालक लपक लेते हैं। शुरुआत एक्स-रे मशीनों से हुई और पैथालॉजी, ब्लड बैंक, सिटी स्कैन होते हुए वेंटिलेटर और अब डायलिसिस तक पहुंच गई। इसके लिए इन्हें ‘नेफ्रोलॉजिस्ट’ की जरूरत महत्व नहीं रखती, यह कार्य तो वह टेक्निकल के नाम पर फ्रेशर से उसी तरह करा लेते हैं जैसे सरकारी अस्पतालों में मशीनों की खराबी बताकर चिकित्सक व पैरामेडिकल स्टाफ मरीजों को भेजते हैं।
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बस मरीज को मशीनों पर लिटाकर बटन ही तो आन करनी होती है। उन्हें किडनी के मरीज को होने वाली परेशानी से कोई मतलब नहीं, स्थिति गम्भीर होते ही आईसीयू में शिफ्ट करके अलग से चार्ज कर लेंगे। एक बार के डायलसिस का चार्ज तीन हजार लेते हैं, लेकिन प्रतिस्पर्धा बढ़ने पर छूट का ऑफर शुरू कर देते हैं। यह समूचा कथानक जौनपुर शहर को बानगी मानकर लिखा जा रहा है।
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इस जिले का क्षेत्रफल और जनसंख्या प्रदेश के बड़े जनपदों में शुमार है। लेकिन, सिटी का तमगा ग्रेड सी से उपर नहीं हो पाया। बावजूद इसके यहां कमाई बम्पर है, बस रुपया पकड़ने वाला चाहिए। नौकरशाही की मिलीभगत और नेताओं का वरदहस्त यहां भरपूर मिलता है। इसी के बल पर तमाम अवैध धन्धे ‘वैध’ का प्रमाण लेकर आमजन को ही नहीं, सरकार को भी चपत लगाया जाता है, जैसे कुछ अस्पतालों को छोड़कर बाकी में ‘आयुष्मान कार्ड’ पर लम्बा खेल अरसे से चल रहा है। यहां की नज़ीर प्रदेशभर के हर जिले में मिलेगी।
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जिला अस्पताल तो दूर सामुदायिक व प्राथमिक चिकित्सालय भी मरीजों के लिए रेफरल सेंटर बने हैं। केस बिगड़ने पर निजी डॉक्टर वाराणसी रेफर करते हैं। किसी जानकार या तगड़ा रसूख रखने वाले मरीज को सीधे लखनऊ एसपीजीआई या बीएचयू ले जाने की सलाह दी जाती है। यहां सीएचसी, पीएचसी पर भी पैरा मेडिकल स्टाफ दशकों से तैनात हैं। मरीजों को बाहर से दवा लेने, आयुष्मान कार्ड बनाने में मोटी दलाली, मरीज को बेहतरी का झांसा देकर नर्सिंग होम तक का रास्ता यही बताते हैं।
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अब जौनपुर की कुछ बानगी देखिए : जिले की बीरीबारी सीएचसी जिसे स्वास्थ्य विभाग नम्बर वन का तगमा दे चुका है, वहां से एक गर्भवती महिला को आशा व एएनएम के साथ एम्बुलेंस 108 से जिला अस्पताल लाया गया। यहां गाइनी के डॉक्टर ने स्थिति को और गम्भीर बताकर अपने निजी अस्पताल में ले चलने का दबाव बनाया, तीमारदार नहीं माने तो दूसरे नर्सिंग होम का आफर दिया। लेकिन, घर वाले अपने परिचित अस्पताल में ले गए जहां इनके बताए बजट का आधा खर्च देना पड़ा।
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इसी तरह एसपीजीआई के एक किडनी मरीज को डायलिसिस के लिए जौनपुर के पॉलीटेक्निक चौराहा से दक्षिण एक अस्पताल में भर्ती कराया तो वहां तीमारदार का सहपाठी मिला जो निचली कक्षाओं में कई बार फेल हुआ। यह पूछने पर कि नेफ्रोलॉजिस्ट कब बने? तो जवाब मिला भैया रोटी के लिए रोजी मिली है, बस यह मशीन चलाना 30 मिनट में सीखा, चिंता मत करिए यह अस्पताल मल्टी स्पेशलिटी वाला है। यह तो बानगी है जौनपुर की जहां आधा दर्जन डायलिसिस केंद्र खुल चुके हैं।
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नईगंज की आवासीय कालोनी में तो बड़े जगलर ने हर जांच की दुकान सजाई है। लगभग डेढ़ सौ नर्सिंग होम शहर में हैं और इनमें दर्जनों मल्टी स्पेशलिटी का दर्जा प्राप्त कर लिए हैं। बाकी के यहां भी विभिन्न रोगों के विशेषज्ञों का पैनल बोर्ड टंगा है लेकिन मरीज की हालत पस्त होने पर रेफर वाराणसी या लखनऊ कर देते हैं।
(हेल्थ पर और विस्तृत जानकारी अगली कड़ी में)