नौनिहालों के जीवन से खेलते स्कूल संचालक
# अनहोनी से पहले अभिभावक भी नहीं लेते खोज खबर
सुईथाकला, जौनपुर।
उपेन्द्र सिंह
तहलका 24×7
क्षेत्र में संचालित अनेक स्कूलों के संचालकों की मनमानी और विभाग के जिम्मेदारों की अनदेखी के चलते स्कूलों में पढ़ने वाले नौनिहालों का जीवन खतरे में पड़ा हुआ नजर आता है। दाखिले के समय स्कूल संचालक अनेक सुविधाओं का हवाला देते हुए यातायात संसाधन के नाम पर अपने अनुसार मोटी फीस तो लेते हैं, लेकिन समय बीतने के साथ भुसे की तरह बच्चों को विभिन्न सवारी गाड़ी में ढोते हैं।
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स्कूलों में छात्र संख्या बढ़ाने की दिशा में आवागमन की सुविधा के तौर पर मानक के विपरीत डग्गामार वाहनों की भरमार लगा रखा है। जिससे उन नौनिहालों को भूंसे की तरह ठूंस कर स्कूल लाने और घर पहुंचाने का कार्य बेखौफ किया जाता है। जिसे देखकर जहां लोगों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं, वहीं प्रशासन मौन साधे हुए दिखाई पड़ता है। जानकारों की मानें तो सरकार द्वारा सशर्त वित्त की मांग किए बिना स्कूल संचालन की सुविधा प्राप्त स्कूल संचालकों के लिए आज यह बेरोजगारी दूर करने का एक माध्यम बना हुआ है। कुकुरमुत्तों की तरह खुले स्कूलों में जहां कान्वेंट की सुविधा उपलब्ध कराने के नाम पर स्कूल संचालकों द्वारा अभिभावकों से अच्छी खासी रकम ऐंठी जाती है, उसके बदले में नौनिहालों के लिए आवागमन की सुविधा के नाम पर डग्गामार वाहनों की सुविधा तक सीमित रह जाते हैं।
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चेतावनी के बावजूद स्कूली वाहनों में सम्बंधित विभाग के मानक को पूरा करने को कौन कहे चालक के अलावा कोई अन्य सहायक भी नहीं होता, जो आवश्यकता पड़ने पर बच्चों की सहायता कर सके। आलम यह है कि बस, मिनी बस और बोलेरो को कौन कहे तीन सवारी बैठाने की परमिट लिए आटो रिक्शे भी नौनिहालों को ढोने में लगे हुए हैं। जो विभागीय आदेशों को ठेंगा दिखाते हुए मानक के विपरीत नौनिहालों को धड़ल्ले से बैठाते हैं। स्थिति तब बद से बद्तर होती है जब जर्जर अवस्था में होने के कारण बन्द हो कर रास्ते में खड़ी हो जाती है और नौनिहालों का कालांश छूट जाता है। मजे की बात यह है कि मोटी रकम वहन करने वाले अभिभावक भी यह नजारा किंकर्तव्यविमूढ़ हो कर देखते हैं। इधर सुरक्षा के लिए जिम्मेदार और प्रशासन के लोग भी मौन साधे नजर आते हैं।
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मामले में जब एआरटीओ से सम्पर्क साधा गया तो उन्होंने मोबाईल उठाना उचित नहीं समझा। फिलहाल एक बात तो तय है कि भारत का भविष्य कहे जाने वाले ऐसे नौनिहालों का जीवन खतरे में है। यदि जिम्मेदारों के द्वारा इस तरफ कोई ध्यान नहीं दिया गया तो हादसे होते ही रहेंगे। अभिभावक का ध्यान भी तभी जाता है जब अनहोनी हो जाती है।