भाजपा के साथ सुभासपा और अनुप्रिया की अग्नि परीक्षा आई
# आखिरी फेज़ में 57 सीटों पर एक जून को होगा मतदान, पूर्वांचल की 13 सीटों पर 144 प्रत्याशी हैं मैदान में, सोनभद्र के विस उप चुनाव में 6 प्रत्याशी हैं।
# एनडीए गठबंधन का हिस्सा बनने और सत्ता में शामिल होने वाले सुभासपा, अपना दल एस के नेताओं ने भाजपा के कोर वोटरों को नाराज़ किया, अपना वोटबैंक भी गंवाया।
वाराणसी/मिर्जापुर/मऊ
कैलाश सिंह/अशोक सिंह/एखलाक खान
सलाहकार सम्पादक
तहलका 24×7
इंतज़ार की घड़ी खत्म। एक जून को लोकसभा चुनाव के अंतिम सातवें फेज़ में देश की 57 सीटों के लिए वोट पड़ेंगे। पूर्वांचल की 13 सीटों पर कुल 144 प्रत्याशी मैदान में हैं। इनमें वीआईपी सीट वाराणसी से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तीसरी बार मैदान में हैं।

इस बार उनकी ही लहर खुद के काम नहीं आई, लिहाजा उनकी जीत का अंतर बनाए रखने को देशभर के पार्टी नेता जमे रहे और मतदान से दो दिन पूर्व 30 मई की शाम को वह मौन साधकर मेडिटेशन को निकल गए, अब मैदान में भाजपा की बैसाखी बनने वाले दो सहयोगी दलों के नेताओं को पसीने छूट रहे हैं, उसपर प्रकृति भी नाराज़ है।

चुनाव के चर्मोत्कर्ष पर मौसम की तल्खी भी चरम पर है। बढ़ता तापमान 47 डिग्री से 52 डिग्री की ऊंचाई वाराणसी से दिल्ली तक दर्ज करा कर पुराने रिकॉर्ड तोड़कर नये रिकॉर्ड बनाते हुए राजनीतिक बदलाव का एहसास करा रहा है। एक जून को पूर्वांचल की जिन सीटों पर मतदान होंगे उनमें महराजगंज, गोरखपुर, कुशीनगर, देवरिया, बांसगांव, घोसी, सलेमपुर, बलिया, गाज़ीपुर, चन्दौली, वाराणसी, मिर्जापुर और रॉबर्टसगंज शामिल हैं।

इनमें मिर्जापुर और रॉबर्टसगंज में अनुप्रिया पटेल की प्रतिष्ठा दांव पर है। उन्होंने पांचवे फेज़ के बाद छठें फेज़ के लिए चुनाव प्रचार में राजा भैया रघुराज प्रताप सिंह को इंगित करते हुए प्रतापगढ़ और कौशांबी में कहा था कि अब कोई राजा किसी रानी से नहीं पैदा होता, वह तो ईवीएम से पैदा होता है। इसके जवाब में राजा भैया ने कहा की राजे राजवाड़े का दौर तो देश की आज़ादी के बाद खत्म हो गए, ईवीएम से तो जनसेवक पैदा होते हैं जिनकी उम्र महज पांच साल होती है।

इसके बाद तो गुजरात में रुपाला की लगाई आग जो पश्चिमी यूपी तक आकर ठहरी थी उसे पेट्रोल सरीखा ईंधन मिल गया।भाजपा की ये सीटें तो फंसी ही और कल होने वाले मतदान में अपना दल दो सीटें भी फंस गई। भाजपा के कोर वोटरों में शुमार ठाकुर उससे भी बिदक गए, क्योंकि भाजपा उनकी ज़ुबान पर लगाम नहीं लगा पाई। हालांकि खुद पीएम मोदी के बोल का भी संतुलन डगमगा गया है।

दरअसल कुर्मी वोटरों की फिसलन 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में ही अनुप्रिया नहीं रोक पाईं, इन मतदाताओं ने उस दौरान दल की बजाय जातिगत प्रत्याशियों को प्राथमिकता दी, चाहे वह किसी दल में रहे हों। इसी रास्ते पर लोस चुनाव में मौर्य भी चल पड़े। इसका खुलेआम प्रमाण छठें फेज़ में जौनपुर सीट पर देखने को मिला।

सुभासपा के ओपी राजभर तो असंसदीय शब्द बोलकर ही राजनीति में स्थापित होने की कोशिश कर रहे हैं। इनके बोल 2017 के विधानसभा चुनाव में तब असली रूप में आये जब सीएम योगी आदित्यानाथ को अपशब्द कहने लगे, जबकि वह मंत्रालय में शामिल थे। निकाले जाने पर सपा में गए तो संसदीय भाषा का बांध तोड़ दिये।

वहां से हटाए गए तो भाजपा के केंद्रीय नेता अमित शाह ने इन्हें सपा के साथ योगी आदित्यानाथ के खिलाफ इस्तेमाल करने को हाथ रख दिया। बस इसके बाद दिल्ली और लखनऊ में शीत युद्ध शुरू हो गया। दिल्ली मंत्रालय दिलाना चाहता था और लखनऊ कई महीने तक इन्हें त्रिशंकु बनाए रखा। चुनाव से पूर्व शामिल किया कैबिनेट में। लोकसभा चुनाव में अपने पुत्र को भाजपा से घोसी सीट लेने में तो सफल रहे लेकिन इस बीच यह और इनके पार्टी के नेता जातीय गाली देने पर उतर आये।

इनकी पार्टी ने ठाकुरों पर जो आश्लील शब्द बोले उसका वीडियो बैसाख के तपते महीने में जंगल में लगी आग की तरह बढ़ते हुए अपना दल से जुगलबन्दी करने लगा। इसके बाद राजभर घोसी के मैदान में सवर्ण वोटों के लिए तरस रहे हैं।








