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Monday, July 1, 2024

15 वर्षों से नौकरशाही के चक्रव्यूह में फंसा राइट टू एजुकेशन 

15 वर्षों से नौकरशाही के चक्रव्यूह में फंसा राइट टू एजुकेशन 

कैलाश सिंह/अशोक सिंह 
लखनऊ/वाराणसी 
टीम तहलका 24×7 
                उत्तर प्रदेश में बेहतर शिक्षा, नकल विहीन परीक्षा और अनुशासन वाले बेहतरीन शिक्षकों का दौर पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के कार्यकाल के बाद इतिहास बनकर रह गया। प्राथमिक से लेकर माध्यमिक तक की शिक्षा-व्यवस्था को तार-तार करने वाले नौकरशाही से लेकर शिक्षा माफिया ने मिलकर इसे बड़ा व्यवसाय का रूप दे दिया। सरकार से मिलने वाले मिड-डे-मील, मुफ्त किताबें, ड्रेस, वजीफा के लिए प्राथमिक से जूनियर हाई स्कूल तक के उन बच्चों का नाम भी दर्ज रखते हैं जो उनके निजी विद्यालयों में नामांकित होते हैं।
शिक्षा के इस चक्रव्यूह को कल्याण सिंह के बाद कोई सीएम नहीं भेद पाया। यह चक्रव्यूह मुलायम सिंह यादव के कार्यकाल में मजबूत हुआ, यहीं से सरकारी धन और मध्यान्ह भोजन की लूट और मध्यम वर्गीय परिवारों के बच्चों को शैक्षणिक गिरोह ने कोचिंग और इंग्लिश मीडियम में पढ़ाई की लत लगाई, जो आजतक बदस्तूर जारी है। जुलाई आते ही स्कूल चलो अभियान बिल्कुल पौधरोपण सरीखे शुरू होगा। लेकिन, मुफ्त किताबें परीक्षाओं के बाद मिलेंगी या खण्ड शिक्षा कार्यालयों में दीमक का आहार बनकर कबाड़ी के हाथ लगेंगी।
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कैलाश सिंह/अशोक सिंह
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खबर विस्तार से :–
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उत्तर प्रदेश में बुनियादी शिक्षा व्यवस्था को नौकरशाहों ने ही विकलांग (दिव्यांग) बनाया। ऊपरी कमाई की हवस ने उनका संपर्क शिक्षा माफिया से कराया। उन्होंने ही कमाई के तमाम रास्ते बनाए और इसमें कुछ शिक्षकों को शामिल करके प्रदेश की राजधानी से लेकर गांव स्तर तक इतनी मजबूत चेन बनाई जो आज तक कायम है। शिक्षा माफ़िया के निशाने पर मध्यम वर्गीय परिवारों के बच्चे आये। यह वर्ग स्टेटस सिम्बल का भूखा होता है।
घर में खाने के लाले पड़े हों लेकिन बच्चों को इंग्लिश मीडियम स्कूलों व कोचिंग कराने का चस्का ऐसा लगा कि पूछो मत।ये इसी बात से खुश होते हैं कि आस-पड़ोस के लोग बोलते हैं कि वाह, बच्चों की पढ़ाई पर बहुत खर्च करते हैं।तमाम लोग यह भी कहते हैं कि जो शिक्षक प्राथमिक या जूनियर हाई स्कूल में तैनात हैं उनके भी बच्चे इंग्लिश मीडियम में ही जाते हैं, क्योंकि उन्हें पता है इन स्कूलों में पढ़ाई नहीं होती है। इनमें अधिकतर शिक्षक अपने स्थान पर पांच हजार में शिक्षित बेरोजगार को लगाए रहते हैं, और इतनी ही रकम विभागीय अधिकारियों को महीना बांधे होते हैं।
इसे हफ्तावसूली नहीं, बल्कि सुविधा शुल्क का नाम दिया गया है।इसी परम्परा से प्रभावित होकर जिला पंचायत राज अधिकारी का दफ्तर भी सफाई कर्मचारियों के लिए मोटी रकम बांधे है। इसके बाद इन कर्मियों को कहीं झाड़ू नहीं लगानी पड़ती है, जैसे शिक्षकों को छूट है। वह तो अपना निजी स्कूल खोलकर शिक्षा माफिया की गैंग का हिस्सा बन जाते हैं। ये पूरा जाल प्रदेश भर में फैला है।
क्योंकि स्कूलों में हाजिरी की जांच करने वाले अधिकारी ‘डोली के कहार’ जो हैं। वह प्रदेश मुख्यालय तक फाइल भेजने का कोरम पूरा कर लेते हैं। उसी दौरान जिन नए शिक्षकों को पढ़ाने का चस्का होता है उसका भी भूत उतारकर माफिया की गैंग में शामिल होने का रास्ता बता देते हैं। अपना स्कूल खोलने वाले शिक्षक मध्यान्ह भोजन, स्कूल ड्रेस, किताबों का भी वारा-न्यारा अपने यहां की छात्र संख्या को सरकारी स्कूलों में दर्शा कर केन्द्र व राज्य सरकार के पैसे को डकार लेते हैं।
प्रदेश के हर जिले में शिक्षा विभाग का यही हाल है।कल्याण सिंह के कार्यकाल में नौकरशाही उनके इकबाल से कांपती थी। उसे डर था की न जाने कब और कहां वह अचानक जांच करने पहुंच जाएं।वर्ष 1998-99 में उन्होंने जौनपुर में जांच कर कई अफसरों को नाप दिया था। सरकारी स्कूलों की महत्ता दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने जरूर बढ़ाई है।
यूपी में सीएम योगी आदित्यनाथ भी अब लोकसभा चुनाव के बाद नौकरशाही का एक्स-रे अपनी निजी टीम की रिपोर्ट पर कर रहे हैं, संभावना यही है कि यहां से भी शिक्षा माफिया पलायन करेंगे और अफसर सुधरेंगे। समूची यूपी की चरमराई शिक्षा व्यवस्था का बेहतरीन नमूना बानगी के तौर पर जौनपुर के मंदियाहूं तहसील क्षेत्र का देखिए।
रामनगर ब्लॉक के भगवानपुर में जूनियर हाई स्कूल से 10 फीट की दूरी यानी खडंजा वाला रास्ता ही डिवाइडर का काम करता है। दूसरी तरफ एवीएस इंटर कॉलेज है, लेकिन जूनियर हाई स्कूल के शिक्षक ही कॉलेज के मैनेजर हैं। इन महोदय को ‘एनपीआरसी’ बनाया गया तो मडियाहूं की टीचर्स कॉलोनी में प्रज्ञा कोचिंग खोल लिए। इसके साथ यह हर सरकारी सुविधा, वजीफा समेत अपने निजी स्कूल के बच्चों के नाम पर लेते हैं।
शिकायत के बाद विभागीय जांच टीम आई तो जरूर। लेकिन, डोली का कहार बन कर रह गई। यहीं आकर राइट टू एजुकेशन 2009 दम तोड़ देता है। इससे साफ है कि यह कानून 6 से 14 वर्ष की आयु के बच्चों को मुफ्त शिक्षा की कितनी गारंटी देता है।

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