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Monday, October 6, 2025

295 रुपये के लिए सात साल लड़ा केस, बैंक को सबक सिखाकर माना

295 रुपये के लिए सात साल लड़ा केस, बैंक को सबक सिखाकर माना

जबलपुर। 
तहलका 24×7 
                मध्यप्रदेश के जबलपुर से उपभोक्ता फोरम का काफी दिलचस्प मामला सामने आया है। निशांत ताम्रकार नाम के युवक ने महज 295 रुपये के लिए सात साल तक केस लड़कर राष्ट्रीयकृत बैंक को आइना दिखाया। देश के बड़े राष्ट्रीयकृत बैंक ने निशांत ताम्रकार के अकाउंट से बेवजह 295 रु काट लिए थे। इसके बाद निशांत ने अपने साथ हुए इस नुकसान को जिला उपभोक्ता फोरम में चुनौती दी। लंबी लड़ाई के बाद उपभोक्ता फोरम ने निशांत के पक्ष में फैसला देते हुए क्षतिपूर्ति के आदेश दिए। इसके साथ ही बैंक पर जुर्माना भी लगाया गया।
जबलपुर के पनागर में रहने वाले निशांत ने 2017 में एक वॉशिंग मशीन फाइनेंस करवाई थी। जानीमानी प्राइवेट फाइनेंस कंपनी ने उन्हें यह वॉशिंग मशीन फाइनेंस की थी। जिसकी ईएमआई डेबिट होने के लिए ग्राहक का खाता स्टेट बैंक जुड़ा था। अकाउंट में बैंक की किस्त के लिए पर्याप्त पैसा था, बावजूद इसके एक बार उनके खाते से किस्त के साथ 295 रुपया ज्यादा काटा लिए गए। निशांत बजाज फाइनेंस के अधिकारियों से इसकी जानकारी चाही तो फाइनेंस कंपनी ने बैंक की ओर से काटने की बात बताई।
295 रु बेवजह डेबिट होने की शिकायत स्टेट बैंक की पनागर शाखा में की, जहां बैंक से जवाब मिला कि यह पैसा चेक डिडक्शन चार्ज के नाम पर काटा गया है। जबकि निशांत ने कहा कि उनका चेक बाउंस नहीं हुआ, खाते में पर्याप्त पैसा था, फिर यह पैसा क्यों काटा? लेकिन बैंक ने निशांत ताम्रकार को कोई संतोषजनक जवाब नहीं दिया।निशांत इसके बाद अपने एडवोकेट रोहित पैगवार से बात की तो एडवोकेट ने उपभोक्ता फोरम में मामले को पेश किया। 2017 से लगातार इसमें सुनवाई चलती रही लेकिन बैंक ने फोरम को जवाब नहीं दिया।
सात साल के लंबे इंतजार के बाद जबलपुर के उपभोक्ता फोरम ने इस मामले में फैसला सुनाया। कोर्ट ने माना कि बैंक ने शिकायतकर्ता के खाते से 295 रुपये गलत तरीके से काटे। इसके बाद फोरम ने आदेश सुनाते हुए निशांत ताम्रकार को उनके 295 रुपये वापस करने के साथ कोर्ट में लगे खर्च और पहुंची मानसिक पीड़ा के लिए 4 हजार रुपए मुआवजा देने के निर्देश दिए।
एडवोकेट रोहित ने बताया कि उपभोक्ता फोरम ने अपने आदेश में लिखा है कि बैंक 295 रुपये वापस करे और एडवोकेट का खर्च दिया जाए। इसके साथ ही पीड़ित रोहित को दो हजार रुपये मानसिक पीड़ा का व्यय दिया जाए। यदि बैंक दो महीने के अंदर पीड़ित को 295 और चार हजार रुपए नहीं देता तो स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के संबंधित अधिकारी पर 10 हजार रुपए पेनाल्टी भरनी होगी और फोरम संबंधित अधिकारी को तीन साल की सजा भी दे सकता है।

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