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Thursday, November 6, 2025

AIIMS में कमीशन का बड़ा खेल

AIIMS में कमीशन का बड़ा खेल

# डॉक्टर की लिखी दवाएं ढूंढने से भी नहीं मिलती, चुनिंदा मेडिकल स्टोर छोड़कर

गोरखपुर।  
तहलका 24×7
              एम्स गोरखपुर स्वास्थ्य के क्षेत्र में सबसे बड़ा नाम है, लेकिन यहां के डॉक्टर प्रतिष्ठा पर सवालिया निशान लगा रहे हैं। डॉक्टरों द्वारा मरीज के पर्चे में लिखी ढेर सारी दवाओं को मरीज खरीदने और खाने दोनों में परेशान हो रहे हैं। इनकी लिखी दवा अगर एम्स के दीवार से लगी मेडिकल स्टोर से नहीं ली गई तो फिर उसे कहीं और से खरीदना संभव भी नहीं।डॉक्टर की लिखी दवा एम्स के जेनरिक दवा काउंटर और न शहर के किसी अन्य मेडिकल स्टोर पर मिलती हैं।
यह दवायें ट्रेड नेम की हैं, जो महंगी हैं। लोग हैरान, परेशान हैं लेकिन इसका कोई निदान नहीं निकल रहा है। कुशीनगर के रहने प्रभात राय के दो बच्चों के कान और दांत का इलाज एम्स में चल रहा है। वह पर्चे पर लिखी कुछ दवाओं को खरीदने को लेकर परेशान हो गये। वह एम्स के बगल में ही मिली। यह दवाएं जानी मानी ब्रांड की हैं।उन्होंने कहा कि ओपीडी में काम करने वाले कुछ कर्मी ही मेडिकल स्टोर का नाम बताकर मरीज को दवा खरीदने के लिए भेजते हैं।
ऐसा ही हाल देवरिया के एक तीमारदार धनंजय का है जो अपने पिता की कुछ दिन की दवा एम्स के बगल से खरीदकर घर लौट गये, क्योंकि पैसे कम पड़ गए थे। फिर पर्चे पर लिखी दवा को वह देवरिया में खरीदना चाहे तो उन्हें नहीं मिली। आखिरकार उन्हें गोरखपुर आकार दवा खरीदना पड़ा।पीड़ित धनंजय का कहना है कि दवा के कारोबारी तो डॉक्टर तक से सेटिंग बना लिए हैं। उनके द्वारा लिखी जाने वाली ट्रेड नेम वाली दवाएं ही वह बेचते हैं।आश्चर्य की बात तो यह है कि एम्स के ज्यादातर डॉक्टरों की लिखी दवाएं शहर में कहीं नहीं मिलेगी।
सिर्फ एम्स के गेट नंबर 3 और पहले गेट के सामने की दुकानों पर ही मिलेंगी।एम्स में इलाज कराने पहुंचे लोगों का कहना है कि डॉक्टरों की सेटिंग वाली दवाइयां सिर्फ इन्हीं दुकानों पर मिलती है। मेडिसिन, हड्डी, गायनी, न्यूरो, चर्म रोग, सर्जरी, ईएनटी की दवाएं इसमें शामिल हैं। ओपीडी में पूरी तरह से मनमानी है। मरीज इस उम्मीद से एम्स में आता है की दवाएं सस्ती लिखी जाती हैं, लेकिन यहां तो प्राइवेट डॉक्टर जैसी पर्ची लिखी जा रही है। एम्स के जिम्मेदारों का ध्यान पता नहीं, क्यों इधर नहीं पड़ रहा है।
आसपास के मेडिकल स्टोर संचालक कहते हैं कि ओपीडी में बैठने वाले एक भी डॉक्टर जेनरिक और जन औषधि केंद्र की दवा लिखना नहीं चाहते। क्योंकि इसमें कमीशन के नाम पर इन्हें कुछ भी नहीं मिलेगा।एम्स की मीडिया प्रभारी डॉक्टर साधना सिंह का कहना है कि दवाओं का तो अक्सर साल्ट नाम डॉक्टर को लिखने को कहा जाता है, अगर ट्रेड नेम वाली दवाई लिखी जा रही है तो यह गलत है, देखती हूं ऐसा क्यों हो रहा है।

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