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Sunday, May 19, 2024

जौनपुर : 13 रजब के जश्न में महफिल का आयोजन

जौनपुर : 13 रजब के जश्न में महफिल का आयोजन

# केक काटकर मनाया गया हजरत अली का जन्मदिवस

सुइथाकलां। 
मो आसिफ 
तहलका 24×7 
                  क्षेत्र के बड़ागांव में जश्न-ए खालिक-ए नहजुल-बलागा हजरत अली का जन्मदिन हर्षोल्लास के साथ मनाया गया रविवार को सुबह से ही बाजार सजने लगे और बच्चों के चेहरे पर उत्साह देख कर यह लग रहा था कि आज किसी बड़े जश्न की तैयारी हो रही है।
रविवार की शाम चहारौ रौजा में हजरत अली के जन्मदिन के अवसर पर एक महफिल का आयोजन किया गया महफिल के पूर्व चाहारौ रौजे के प्रांगण में केक काटकर जन्मदिन की शुभकामनाएं एक दूसरे से साझा की गई। जिसमें सदर-ए हुसैनी मिशन सैयद जीशान हैदर, इमामे जुमा बड़ागांव मौलाना सैयद अज्मी अब्बास, मौलाना सैयद आरजू हुसैन आब्दी, मौलाना एजाज मोहसिन, उपस्थित रहे जिसके बाद महफिल का सिलसिला शुरू हुआ महफिल के कन्वीनर बड़ा गांव के पूर्व प्रधान मोहम्मद अजहर, कार्यक्रम की अध्यक्षता सदरे हुसैनी मिशन सैयद जीशान हैदर ने किया। कार्यक्रम का संचालन सैयद परवेज़ मेहंदी सहर अर्सी ने अपने खुसूसी अंदाज में किया। जश्न की इस महफिल में अली की शान में कसीदे पढ़ने के लिए देश के अलग-अलग हिस्सों से आए हुए कवियों ने पूरी रात शेर शायरी से लोगों को आनंदित किया। कार्यक्रम के दौरान पुलिस प्रशासन की तरफ से भी सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए थे।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि सैयद अहमद हसन तनवीर मंचासीन मौलाना सैयद शौकत रिजवी, डॉ अबरार हुसैन, मौलाना कमर, कार्यक्रम के दौरान मंच का संपूर्ण प्रबंध वरिस टेंट हाउस के ऑनर वारिस हाशमी द्वारा किया गया। कार्यक्रम के सफलता पूर्वक संपन्न होने के उपरांत कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे सदर ए हुसैनी मिशन सैयद जीशान हैदर शिक्षा के क्षेत्र में बढ़ावा देने के लिए एक एलाउंसमेंट किया जिसका उद्देश शिक्षा ग्रहण कर रहे विद्यार्थियों को एक ऊर्जा प्रदान करता है। सैयद जीशान हैदर ने बताया गांव के टॉप फाइव बच्चों की पढ़ाई का पूरा खर्च सदरे हुसैनी मिशन उठाएगा जिसका उपदेश उर्दू और अरबी शिक्षा को बढ़ावा देना है।
हजरत अली के जीवन की कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां अली इब्ने अबी तालिब का जन्‍म 17 मार्च 600 (13 रज्जब 24 हिजरी पूर्व) मुसलमानों के तीर्थ स्थल काबा के अन्दर हुआ था। वे पैगम्बर मुहम्मद (स.) के चचाजाद भाई और दामाद थे और उनका चर्चित नाम हज़रत अली है। वे मुसलमानों के ख़लीफ़ा के रूप में जाने जाते हैं। उन्होंने 656 से 661 तक राशिदून ख़िलाफ़त के चौथे ख़लीफ़ा के रूप में शासन किया, और शिया इस्लाम के अनुसार वे 632 से 661 तक पहले इमाम थे। उन्‍होंने वैज्ञानिक जानकारियों को बहुत ही रोचक ढंग से आम आदमी तक पहुँचाया था।
अबू तालिब और फातिमा बिन असद से पैदा हुए, कई शास्त्रीय इस्लामी के अनुसार, इस्लाम में सबसे पवित्र स्थान मक्का के काबा में पैदा होने वाले अली अकेले व्यक्ति है। स्रोत के अनुसार अली बच्चों में प्रथम थे जिसने इस्लाम को स्वीकार किया,और कुछ लेखकों के मुताबिक पहले मुस्लिम थे। अली ने मुहम्मद को शुरुआती उम्र से संरक्षित किया और मुस्लिम समुदाय द्वारा लड़ी लगभग सभी लड़ाई में हिस्सा लिया। मदीना में जाने के बाद, उन्होने मुहम्मद की बेटी फातिमा से विवाह किया। मुसलमानों के तीसरे खलीफा उसमान इब्न अफ़ान की हत्या के बाद, 656 में मुहम्मद के साथी (सहाबा) ने हजरत अली को खलीफा नियुक्त किया था। अली के शासनकाल में गृह युद्ध हुए और 661 में कुफा कि जामा मस्जिद में कुरान की तिलावत के समय खारजी इब्न मुल्ज़िम ने उन पर हमला किया और हत्या कर दी।
राजनीतिक और आध्यात्मिक रूप से शिया और सुन्नी दोनों के लिए हजरत अली महत्वपूर्ण है। अली के बारे में कई जीवनी स्रोत अक्सर सांप्रदायिक रेखाओं के अनुसार पक्षपातपूर्ण होते हैं, लेकिन वे इस बात से सहमत हैं कि वह एक पवित्र मुस्लिम थे, जो इस्लाम के कारण और कुरान और सुन्नत के अनुसार एक शासक थे। जबकि सुन्नी अली को चौथे खलीफा रशीद मानते हैं, शिया मुसलमानों ने अली को गदिर खुम में घटनाओं की व्याख्या के कारण मुहम्मद (स.अ. व) के बाद पहले इमाम के रूप में माना। शिया मुस्लिम मानते हैं कि अली और अन्य शिया इमाम (जिनमें से सभी मुहम्मद के सदस्य हैं) मुहम्मद (स.) के लिए सही उत्तराधिकारी हैं।

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