दिल्ली के निशाने पर है यूपी, शह-मात के खेल में बिखर रही है भाजपा
कैलाश सिंह/एके सिंह
नई दिल्ली/लखनऊ
टीम तहलका 24×7
भाजपा में सत्ता संघर्ष दिला रहा महाभारत की याद, आरएसएस की भूमिका श्री कृष्ण सरीखी, वह योगी के साथ खड़ा, भाजपा का शीर्ष नेतृत्व दी गई सलाह पर भी नहीं कर रहा अमल। इसमें पिट रहा भाजपा का सांगठनिक ढांचा, दुविधा में हैं पदाधिकारी, कार्यकर्ता, संघ हिंदुत्व का चेहरा लेकर अडिग, लम्बा खिचा युद्ध तो एनडीए पर भारी पड़ेगा इंडिया।
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दिल्ली और यूपी में जारी शीत युद्ध का नतीजा है अनुप्रिया पटेल का लेटर बम, उनके सुर में सुर मिलाने लगे संजय निषाद। लोस चुनाव में अमित शाह के चारो मोहरे पिट गए, उन्होंने समाज के बजाय अपने परिजनों को ही दिलाया था टिकट, फिर भी हम जातीय मतदाताओं ने छोड़ दिया साथ। पेपर लीक में सहयोगी विधायक के चलते राजभर बैकफुट पर, ज़ुबान बन्द।
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दो साल पूर्व 2022 का विधान सभा चुनाव फिर जीतने के बाद मोदी-योगी का एक साथ लगा नारा मोदी के कथित चाणक्य अमित शाह के सीने में शूल की तरह चुभने लगा। यहीं से दिल्ली और लखनऊ के बीच का ‘टशन’ शीत युद्ध में तब्दील होकर सतह पर आ गया। केशव मौर्य को हारने के बावजूद डिप्टी सीएम बनाया गया, यह साबित करने के लिए कि अगले सीएम यही होंगे। उधर ब्राह्मण चेहरा दिनेश शर्मा को बदलकर बसपा से भाजपा में आये ब्रजेश पाठक को यही तमगा दिया गया।
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ये दोनों मोहरे लोस चुनाव में भी पिट गए। इस बीच भाजपा से सपा में गए सुभासपा के बड़बोले मुखिया ओपी राजभर को उनके विधायकों समेत भाजपा में लाकर योगी को दबाने और पिछड़ा वर्ग का वोट हथियाने को उन्हें मोहरा बनाया गया। लेकिन वह भी अपने बेटे की सीट नहीं बचा पाए।राजभर हार का गम भी नहीं मना पाए तब तक उनके द्वारा नौकरी की गारन्टी बने विधायक बेदीराम पेपर लीक मामले में फिर फंस गए।
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अबकी वह सरगना के रूप में दिखे, गुजरात का इनसे बड़ा सरगना विदेश भाग निकला। इसके बाद भी शाह ने हार नहीं मानी।राजनीतिक गलियारे में चर्चा के शीर्ष पर अपना दल एस की मुखिया अनुप्रिया पटेल द्वारा यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ को लिखा गया ख़त आ गया।
इस चिट्ठी में योगी को नसीहत और दिल्ली की केंद्र सरकार की तारीफ ने उन्हें अमित शाह का मोहरा साबित कर दिया।
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जबकि श्रीमती पटेल के पति यूपी सरकार में अहम रसूख रखते हैं। यदि वह चिठ्ठी लिखे होते तो इसके राजनीतिक मायने बदल गए होते।अनुप्रिया पटेल का यह लेटर बम सीधे योगी पर फोड़ा गया है। लेकिन यूपी में कानून व्यवस्था को पटरी पर लाने वाले योगी आदित्यनाथ तक पहुंचकर यह इसलिए निष्क्रिय हो गया क्योंकि निर्विवाद, बेदाग हिंदुत्व के इस चेहरे पर ही गोरखपुर के आसपास की कई सीटें भाजपा की झोली में आईं।
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जबकि वाराणसी में मोदी की जीत का अंतर तीन लाख घट गया और आसपास मैदान साफ हो गया। योगी को खत लिखने वाली अनुप्रिया पटेल अपनी सीट मुश्किल से जीतीं और अपने सहयोगी की आरक्षित सीट हारने के साथ कौशांबी, प्रतापगढ़ एवं आरक्षित मछलीशहर को भी नहीं बचा पाईं।बानगी के तौर पर मछलीशहर की माड़ियाहूं विधान सभा में पटेल वोटरों की संख्या अकेले हर जातिगत वोटरों से अधिक है।
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जौनपुर सीट पर भी केशव मौर्य के साथ अनुप्रिया बेअसर हो गईं। इसका सीधा कारण जनमानस में तैर रही चर्चा को मानें तो यह कि अनुप्रिया, राजभर, संजय निषाद, केशव मौर्य के जातिगत वोटर उन्हें अपना नेता मानने से इंकार करने लगे हैं और यह भी मान रहे हैं कि यह लोग अपने समाज की चिंता की बजाय अपने परिवार की ही फ़िक्र कर रहे हैं।
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अनुप्रिया के खत की तमाम लाइनें गवाही दे रही हैं कि उसे लिखा नहीं, ‘लिखवाया’ गया है। वह एक दशक से मोदी सरकार में मंत्री हैं, अब तीसरे कार्यकाल में भी कैबिनेट का हिस्सा हो गईं तब उन्हें ओबीसी, एससी/एसटी वर्ग के बेरोजगारों की चिंता सताने लगी। वैसे भी आरक्षण वाली तमाम नौकरियों में केन्द्र सरकार के पास ही अधिक विकल्प है। संघ सूत्रों के मुताबिक भाजपा में सत्ता संघर्ष के बीच पिस रहा है इसका सांगठनिक ढांचा। कार्यकर्ता, पदाधिकारी दुविधा में पड़े हैं।
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पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष का भी चयन होना है, लेकिन शीर्ष नेतृत्व लोस चुनाव में हार के बाद भी अपनी खत्म हुई लहर और फेल हुए मुद्दों को सच नहीं मान पा रहा है। वह अपनी पराजय का ठीकरा लगातार योगी आदित्यनाथ पर फोड़ने की कोशिश में लगा है, जिन मोहरों का इस्तेमाल अपनी ही पार्टी के सीएम पर किया जा रहा है, उन मोहरों का हम जातीय फतह तक पहुंचने से पूर्व भाजपा की रीढ़ कमजोर पड़ चुकी होगी।