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Saturday, November 22, 2025

धूल से उपजा था जेपी ग्रुप, आज धूल में मिल गया

धूल से उपजा था जेपी ग्रुप, आज धूल में मिल गया

# अडाणी ने कौडियों में खरीदा, कभी बडा साम्राज्य रहा। जेपी जमीन से उठे, आसमान छुआ, फिर कर्ज के बोझ तले दबे! 

कुमार सौवीर 
स्वतंत्र पत्रकार
तहलका 24×7
               एक छोटे से सिविल इंजीनियर की महत्वाकांक्षा ने 1979 में जयप्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड (जेएएल) को जन्म दिया, जब जयप्रकाश गौर ने बुलंदशहर से दिल्ली की ओर कदम बढ़ाए और सड़कों, बांधों व नहरों के छोटे ठेकों से शुरुआत की। यह था भारत के सबसे चमकदार इंफ्रास्ट्रक्चर साम्राज्यों का बीज, जो अगले दो दशकों में सीमेंट, पावर, रियल एस्टेट, हॉस्पिटैलिटी और इंजीनियरिंग के सात सेक्टरों में फैल गया, जहां 2000 के दशक की शुरुआत में आर्थिक उछाल ने इसे ‘इंडिया का किंग’ बना दिया।
1990 के दशक तक जेपी ग्रुप ने उत्तर भारत के लैंडस्केप को बदल दिया। सरदार सरोवर डैम से लेकर कोलकाता मेट्रो तक और भूटान के हाइड्रो प्रोजेक्ट्स से लेकर 18 राज्यों में फैले प्रोजेक्ट्स तक। इसकी पहुंच हर कोने में थी, जबकि 2007 में यमुना एक्सप्रेसवे प्रोजेक्ट ने दिल्ली-आगरा को जोड़ते हुए 165 किलोमीटर की वर्ल्ड क्लास सड़क बनाई, जिसकी लागत 13,000 करोड़ रुपये थी और साथ ही 2,500 हेक्टेयर जमीन के रियल एस्टेट डेवलपमेंट राइट्स भी हासिल कर लिए, जो टोल रेवेन्यू के अलावा स्पोर्ट्स सिटी, गोल्फ कोर्स व हाई-राइज टाउनशिप्स का सपना बुनने का मौका दे गई।2000 के दशक के मध्य में चरम पर पहुंचा यह साम्राज्य।
जेएएल की सब्सिडियरी जेपी पावर वेंचर्स ने 1,700 मेगावाट हाइड्रो पावर प्लांट्स चला लिए, जबकि जेपी सीमेंट ने 20 मिलियन टन सालाना क्षमता हासिल कर ली और 2011 में बुद्ध इंटरनेशनल सर्किट ने भारत को पहली बार फॉर्मूला वन रेस होस्ट करने का गौरव दिलाया, जहां जेपी स्पोर्ट्स सिटी ने मॉल्स, स्टेडियम व थॉम्पसन इंजीनियरिंग कॉलेज जैसे प्रोजेक्ट्स के साथ ग्रेटर नोएडा को नई पहचान दी। जेपी होटल्स ने मुंबई, मसूरी व आगरा में पांच लग्जरी प्रॉपर्टीज खोलीं और रेवेन्यू 6,500 करोड़ रुपये सालाना तक पहुंच गया, जबकि मार्केट कैप 2010 में हजारों करोड़ों का था।
लेकिन यह चमक कर्ज के काले बादलों से ढकी हुई थी, क्योंकि हर बड़ा प्रोजेक्ट 70:30 के डेट-इक्विटी रेशियो पर खड़ा किया गया, जहां 1999-2014 के बीच डेट 40 गुना बढ़कर 61,285 करोड़ रुपये हो गई। रेवेन्यू तो 32 प्रतिशत सीएजीआर से बढ़ा लेकिन ओवर लीवरेज ने जाल बुन लिया। फिर आया मोड़।2011 के बाद ग्लोबल फाइनेंशियल क्राइसिस ने रियल एस्टेट प्राइसेस गिरा दिए, सीमेंट डिमांड घटी और जेपी के अमीर प्रोजेक्ट्स जैसे यमुना एक्सप्रेसवे पर टोल कलेक्शन उम्मीद से कम रहा, जबकि 2010-11 में ग्रेटर नोएडा व यमुना एक्सप्रेस-वे के लिए किसानों से 1,000 हेक्टेयर जमीन अधिग्रहण पर भड़की हिंसक आगजनी ने सबको हिला दिया।
जहां भट्टा पारसौल गांवों में पुलिस फायरिंग से मौतें हुईं और किसानों ने 850 रुपये प्रति वर्ग मीटर की जगह 3,000 रुपये मांगे, जिससे प्रोजेक्ट्स रुके, कोर्ट केस चले और जेपी पर ‘मिलियन म्यूटिनीज’ का ठप्पा लग गया। 2014-15 में डिमांड स्लोडाउन ने घाव गहरा किया। अल्ट्राटेक को 1.5 मिलियन टन ग्राइंडिंग यूनिट 360 करोड़ में बेचना पड़ा, जेएसडब्ल्यू एनर्जी को दो हाइड्रो प्रोजेक्ट्स 9,700 करोड़ में सौंपे और कंसॉलिडेटेड डेट 57,000 करोड़ से ऊपर चढ़ गया, जबकि होमबायर्स के 32,000 फ्लैट्स डिलीवर न होने से सुप्रीम कोर्ट ने 2017 में डायरेक्टर्स को पर्सनल एसेट्स बेचने से रोका।
2017-18 में संकट फूट पड़ा। सब्सिडियरी जेपी इंफ्राटेक पर आईडीबीआई बैंक के 526 करोड़ डिफॉल्ट पर एनसीएलटी ने इंसॉल्वेंसी शुरु की, जहां 20,000 होमबायर्स व 12 बैंकों ने वोटिंग राइट्स हासिल किए, लेकिन लाक्षद्वीप की 7,350 करोड़ बोली रिजेक्ट हो गई और मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा, जहां जेपी को 2,000 करोड़ जमा करने पड़े।उसी साल आईसीआईसीआई बैंक ने जेएएल के खिलाफ पहली इंसॉल्वेंसी पिटीशन दाखिल की और 2022 में एसबीआई ने 6,893 करोड़ डिफॉल्ट पर याचिका की, जबकि जुलाई 2023 में 4,044 करोड़ लोन डिफॉल्ट घोषित हुआ।
ग्रुप ने 40,000 करोड़ एसेट्स बेचे, लेकिन डेट 55,371 करोड़ तक पहुंच गया। 2020 में गवर्नमेंट ने एसएफआईओ प्रोब शुरु की फाइनेंशियल इर्रेगुलैरिटीज पर और 2024 में यमुना अथॉरिटी ने 1,000 हेक्टेयर लैंड अलॉटमेंट कैंसल कर दिया (3,621 करोड़ ड्यूज पर), जिसे जेपी ने 200 करोड़ जमा कर रिस्टोर करने की कोशिश की, लेकिन इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सैल ऑफ 150 एकड़ लैंड को रिजेक्ट कर दिया क्योंकि 80 एकड़ बैंकों के पास मोर्टगेज्ड थे।
3 जून 2024 को एनसीएलटी इलाहाबाद बेंच ने जेएएल को आधिकारिक तौर पर इंसॉल्वेंट घोषित किया, जहां 22 लेंडर्स के 57,185 करोड़ क्लेम्स में एनएआरसीएल ने 12,700 करोड़ का बड़ा हिस्सा ले लिया और जून 2025 तक पांच बिडर्स अडानी, वेदांता, डालमिया भारत, जिंदल पावर व पीएनसी इंफ्राटेक ने रेजोल्यूशन प्लान्स जमा किए, जहां अडानी की 14,535 करोड़ (6,000 करोड़ अपफ्रंट) बोली ने 89 प्रतिशत वोट्स से वेदांता की 17,000 करोड़ को पछाड़ दिया। जयपी इंफ्राटेक को 2024 में सुरक्षित ग्रुप ने 1,334 करोड़ किसान कंपनसेशन के साथ ले लिया, लेकिन जेएएल के 35,000 करोड़ एसेट्स।
जेपी ग्रीन्स, विश्टाउन, स्पोर्ट्स सिटी, यमुना टोलिंग, पावर वेंचर्स (24 प्रति5 स्टेक) व होटल्स। अब अडानी के कंट्रोल में आने को हैं। जबकि ग्रेटर नोएडा लैंड डिस्प्यूट सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। यह सफर महत्वाकांक्षा का है जो ओवर एक्सपैंशन, किसान विवादों व डेट ट्रैप में फंस गया, लेकिन आईबीसी के तहत अब नई जिंदगी मिल रही। जेपी की धूल चाटने वाली कहानी भारत के कॉर्पोरेट उत्थान-पतन का आईना है, जहां कल के किंग आज बिडर्स की लाइन में खड़े हैं।

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