कैश विवाद में सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस वर्मा से कहा- आपका आचरण विश्वास पैदा नहीं करता
नई दिल्ली।
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सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के जज न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के वकील से कहा कि उनके मुवक्किल का आचरण विश्वास पैदा नहीं करता। कोर्ट ने न्यायाधीश से कई सवाल पूछे, जिन्होंने आंतरिक जांच समिति की रिपोर्ट को अमान्य ठहराने की मांग की थी। जजों के पैनल ने उन्हें नकदी बरामदगी मामले में कदाचार का दोषी पाया था।जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस एजी मसीह की पीठ ने कहा कानून यह है कि आंतरिक प्रक्रिया लगभग पिछले 30 वर्षों से लागू है।

सभी न्यायाधीश जानते हैं या उन्हें पता होना चाहिए प्रक्रिया क्या है! सभी जज संविधान का पालन करने की शपथ लेते हैं।सभी न्यायाधीश जानते हैं कि जज का पद ग्रहण करने के बाद उनके आचरण को इसी तरह रेगुलेट किया जाएगा।जस्टिस दत्ता ने जस्टिस वर्मा का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल से पूछा, क्या संसद भारत के मुख्य न्यायाधीश की सिफारिश मानने के लिए बाध्य है? जस्टिस दत्ता ने कहा, मिस्टर सिब्बल आंतरिक प्रक्रिया में प्रस्तावित प्रक्रियात्मक जांच इस प्रकार हो सकती है।

शुरुआत में मुख्य न्यायाधीश द्वारा गहन जांच का आदेश देने के लिए पेश किया गया मटेरियल अपर्याप्त हो सकता है। कोई कार्रवाई नहीं की जाती है और न्यायिक कार्य वापस नहीं लिया जाता है, (न्यायाधीश का) ट्रांसफर और रिमूवल का सवाल से अलग नहीं है।पीठ ने कहा कि जांच पूरी होने के बाद एक रिपोर्ट प्रस्तुत की जाती है और मुख्य न्यायाधीश को लगता है कि यह एक ऐसा मामला है, जिसकी रिपोर्ट की जानी चाहिए और मटेरियल के आधार पर आरोप गंभीर हैं।

निष्कासन की प्रक्रिया शुरू की जा सकती है। पीठ ने कहा, इसे स्वीकार करना या न करना पूरी तरह से संसद पर निर्भर है। यह बाध्यकारी नहीं है, यह केवल एक सिफ़ारिश है कि ऐसा मटेरियल है जिसके लिए एक विद्वान न्यायाधीश के विरुद्ध कार्यवाही की जानी चाहिए। जस्टिस दत्ता ने न्यायमूर्ति वर्मा से पूछा कि वह आंतरिक जांच समिति के सामने क्यों नहीं पेश हुए और उसे वहीं चुनौती क्यों नहीं दी, जबकि उन्हें आंतरिक जांच समिति की रिपोर्ट के विरुद्ध पहले ही सुप्रीम कोर्ट आना चाहिए था।

पीठ ने कहा कि जस्टिस वर्मा ने नकदी जलाने वाले वीडियो को हटाने के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख नहीं किया और उन्हें आंतरिक जांच समिति के खिलाफ वे मुद्दे पहले उठाने चाहिए थे, जिन्हें वह वर्तमान में उठा रहे हैं। इस पर सिब्बल ने कहा कि यह मुद्दा उठाना उनके मुवक्किल का मौलिक अधिकार है।बेंच ने कहा कि उनके आचरण से भरोसा नहीं होता, क्योंकि उन्होंने मुख्य न्यायाधीश द्वारा गठित आंतरिक जांच समिति द्वारा उनके विरुद्ध निष्कर्ष निकाले जाने के बाद देर से सुप्रीम कोर्ट का रुख किया।

जस्टिस दत्ता ने कहा यहां आपका आचरण विश्वास पैदा नहीं करता… हम यह नहीं कहना चाहते थे, लेकिन आपका आचरण बहुत कुछ कहता है। आप आ सकते थे। ऐसे फैसले हैं जो कहते हैं कि एक बार जब आप प्राधिकारी को प्रस्तुत करते हैं तो अनुकूल निष्कर्ष की संभावना होती है। इस पर सिब्बल ने कहा कि अगर उनका मौलिक अधिकार प्रभावित होता है तो वे निश्चित रुप से इसे चुनौती दे सकते हैं।

सिब्बल ने कहा कि उन्हें हटाने के लिए आंतरिक जांच पैनल की सिफारिश असंवैधानिक है और इस बात पर जोर दिया कि इस तरह से हटाने की कार्यवाही की सिफारिश एक खतरनाक मिसाल कायम करेगी।विस्तृत दलीलें सुनने के बाद पीठ ने आंतरिक जांच पैनल की उस रिपोर्ट को अमान्य करने की उनकी याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया, जिसमें उन्हें नकदी खोज विवाद में कदाचार का दोषी पाया गया था।








