भाजपा को मजबूत करने के लिए संघ खींचेगा नई और बड़ी लकीर
# हिंदुत्व के सहारे सनातन का अस्तित्व बनाए रखने को आधार केन्द्र बनेगी गोरक्ष पीठ, इसके लिए योगी के चेहरे को राष्ट्रीय फलक पर लाएगा आरएसएस। भाजपा की टूटी सांगठनिक कड़ी को जोड़ने के लिए संघ से ही आएगा मुद्रा दोष मुक्त नया अध्यक्ष।
# यूपी 2027 फतह के लिए सीएम योगी ऐक्शन में, नौकरशाही को आमजन के लिए जिम्मेदार बनाने को बिजिलेंस और एंटी करप्शन जैसे तंत्र किए गए सक्रिय। अफसर जन समस्या निस्तारण में सुस्त दिखे तो नपेंगे, नहीं चलेगा कोरम।
गोरखपुर/लखनऊ।
कैलाश सिंह/अशोक सिंह
टीम तहलका 24×7
गोरखपुर में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का शिविर अचानक नहीं, बल्कि पूर्व से निर्धारित था। इसमें संघ प्रमुख का आगमन भी समान्य ही है। मीडिया और राजनीतिक दलों को इसलिए सब कुछ गम्भीर और प्रायोजित लग रहा है क्योंकि मोहन भागवत का आम चुनाव के बाद आया वक्तव्य जहां भाजपा के शीर्ष नेताओं के लिए सबक जैसा था, वहीं नई सरकार के लिए सालभर से जल रहे मणिपुर की घटना का जिक्र उसकी जिम्मेदारी का एहसास कराने के लिए था।
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इन सब के बीच असल मकसद भाजपा और इस संगठन से ऊपर ‘व्यक्ति’ को मान लेने वालों को ही पार्टी की पराजय का मूल कारण बताना था।दूसरी ओर विपक्षी दल संघ प्रमुख के आगमन को एनडीए सरकार के खिलाफ कुछ बड़ा होने का इंतजार कर रहे हैं, वहीं दो धड़े में विभक्त मीडिया के लोग भी शिविर में भागवत से योगी की मुलाकात के विविध मायने निकाल रहे हैं। पिछले सात साल पर नजर डालिए तो दिखेगा कि मुख्यमंत्री बनने के बाद से हर हफ्ते या पखवारे के अंत में योगी का प्रवास गोरक्ष पीठ में होता है।
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इस दौरान यदि लम्बा गैप हो जाता है तो उनके जनता दर्शन में भीड़ हजारों में हो जाती है।यह बात तो खुली है कि संघ के हस्तक्षेप पर ही योगी को यूपी की कमान मिली थी। उसके बाद इतनी तेजी से मोदी के साथ योगी का चेहरा पूरे देश में लोकप्रिय हुआ कि मोदी के बाद खुद को रेस में मानने वाले अमित शाह ने लखनऊ में योगी के बराबर एक अनौपचारिक पॉवर सेंटर विकसित कर दिया।
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यहीं से दिल्ली और लखनऊ के बीच शीत युद्ध शुरू हो गया। शाह ने उस पॉवर सेंटर का प्रमुख एक ऐसे पत्रकार को बना दिया जिसने 2013-14 में उन्हें यूपी से परिचित कराने के साथ भाजपा को पहली बार बम्पर जीत दिलाई।वर्ष 2019 में भी टिकट वितरण में उसी की चली और इस बार भी वैसा ही हुआ, लेकिन पार्टी को मुंह की खानी पड़ी।
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योगी की राह में रोड़ा बने सहयोगी संगठनों के वोटों के ठेकेदार भी फेल हो गए। यदि सब पहले की तरह ठीक होता तो चुनाव के बाद योगी की जगह कोई दूसरा चेहरा आना हैरतअंगेज नहीं होता।भाजपा की हार और पार्टी की हो रही दुर्दशा के साथ कार्यकर्ताओं के गिरे मनोबल पर संघ की पैनी नजर उसी तरह थी जिस तरह यूपी के सिंहासन के खिलाफ चल रहे षडयंत्र पर रही।
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छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा जैसे हालात यूपी का संघ नहीं होने देता। आरएसएस सूत्रों के मुताबिक भाजपा की दुर्गति जो महाराष्ट्र में दिख रही थी उसी को नजीर मानकर संघ यूपी के प्रति सतर्क था। गोरखपुर के शिविर में आने से पूर्व संघ प्रमुख ने योगी आदित्यनाथ की सरकार को ताकत प्रदान कर चुके थे, तभी तो केंद्र में एनडीए की सरकार बनते ही मुख्यमन्त्री पूरे तेवर में दिखे।
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उन्होंने मंत्रिमंडल की बैठक पहले ली और मन्त्रियों से गांव किसान तक सम्पर्क पर बल दिया। इस दौरान उन्होंने पार्टी नेताओं, कार्यकर्ताओं के अलावा निजी तौर पर अपनी टीम से आमजन की नाराजगी के कारणों की तलाश शुरू कर दी।पुलिस-प्रशासनिक अफसरों की आमजन से दूरी, हर काम के बदले सुविधा शुल्क, अंग्रेजी शासनकाल की कार्य शैली जैसी बातें उभरकर सामने आने लगीं।
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सूत्र बताते हैं कि ऐसे अफसरों पर नकेल लगाने को ही विजिलेंस और एंटी करप्शन जैसी एजेंसियों से मानीटरिंग सक्रिय कर दी गई है। संघ के सूत्रों से पता चल रहा है कि हजारों साल पुरानी गोरक्ष पीठ पहले से ही नाथ संप्रदाय के तहत हिंदुत्व का केंद्र रही है। अब इसी के जरिए नये सिरे से राष्ट्रीय स्तर पर सनातन के अस्तित्व को और मजबूत बनाया जाएगा। रहा सवाल भाजपा के निराश कार्यकर्ताओं में पुनः जोश लाने का तो उसके लिए पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के लिए निर्विवाद चेहरा संघ खोज चुका है। यह चेहरा संघनिष्ठ होने के साथ मुद्रा दोष से मुक्त होगा।