रेबीज : जानलेवा लेकिन पूरी तरह रोकी जा सकने वाली बीमारी
आजमगढ़।
फैजान अहमद
तहलका 24×7
रेबीज एक घातक वायरल रोग है, जो संक्रमित पशु के काटने या उसकी लार के संपर्क में आने से फैलता है। यह वायरस तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करता है और जब इसके लक्षण प्रकट हो जाते हैं तो यह शत प्रतिशत घातक साबित होता है। लेकिन अच्छी खबर यह है कि समय पर सही इलाज और टीकाकरण से इसे पूरी तरह रोका जा सकता है। उक्त जानकारी डा. आलोक सिंह पालीवाल पशु चिकित्साधिकारी अढ़नपुर ने दी।

डा. पालीवाल बताते हैं कि भारत में हर साल लगभग 20 हजार लोगों की मौत रेबीज से होती है। इनमें से 36 प्रतिशत पीड़ित बच्चे होते हैं। हर साल करीब 1.75 करोड़ लोग कुत्तों के काटने से प्रभावित होते हैं। समय पर जागरूकता और टीकाकरण से 90 प्रतिशत से अधिक मामले रोके जा सकते हैं। संक्रमित कुत्ते, बिल्ली, बंदर आदि के काटने या लार के संपर्क से, जानवर के खरोंचने या चाटने से, इंसान से इंसान में यह बहुत दुर्लभ है, लेकिन अंग प्रत्यारोपण से भी संभव है।काटने के 1 से 3 महीने बाद लक्षण दिखाई देते हैं।

जिसमें बुखार, बेचैनी और सिरदर्द, भ्रम, घबराहट और व्यवहार में बदलाव पानी से डर, रोशनी से डर, लकवा और अंततः मृत्यु वहीं पालतू जानवरों के लक्षण जैसे व्यवहार में बदलाव, अत्यधिक लार गिरना, काटने की प्रवृत्ति, आवाज बदलना, लकवा या मृत्यु है। रेबीज का कोई इलाज नहीं, लेकिन टीकाकरण से इसे रोका जा सकता है।रैबीज से बचाव के लिए काटने के तुरंत बाद घाव को 15 मिनट तक साबुन और पानी से धोएं। 15 दिन की PEP वैक्सीन श्रृंखला और रेबीज इम्यूनोग्लोबुलिन (RIG) लगवाएं।

वहीं पशुओं के लिए, साल में एक बार नियमित रुप से रेबीज वैक्सीन लगवाएं। रेबीज को पूरी तरह नियंत्रित किया जा सकता है, लेकिन जागरूकता की कमी से यह अब भी जानलेवा साबित होती है।पालतू पशुओं का नियमित टीकाकरण, स्कूलों व समुदाय में जागरूकता अभियान, समय पर इलाज यही जीवन बचाने का एकमात्र तरीका है।

डा. पालीवाल कहते हैं कि रेबीज से घबराएं नहीं, जागरुक बनें। अपने पालतू जानवरों का समय पर टीकाकरण कराएं। किसी जानवर के काटने पर तुरंत घाव धोकर नजदीकी अस्पताल में चिकित्सक से संपर्क करें। समय पर सावधानी ही जीवन बचा सकती है। आइए, मिलकर इस जानलेवा बीमारी को हमेशा के लिए खत्म करें।








