16.1 C
Delhi
Sunday, November 23, 2025

जो गायों को भूखा नहीं मार सकते, इंसानों को सालों-साल बंद कैसे करेंगे

जो गायों को भूखा नहीं मार सकते, इंसानों को सालों-साल बंद कैसे करेंगे

# गौशाला बनाम डिटेंशन सेंटर: सीएम योगी ने लिया एक नया संकल्प

कुमार सौवीर 
स्वतंत्र पत्रकार
तहलका 24×7
               उत्तर प्रदेश में इन दिनों दो तस्वीरें एक साथ चल रही हैं। एक तस्वीर में सड़कों पर भूखी-प्यासी गायें फसलें चरती दिखती हैं। गौशालाओं के बाहर ताले लटकते हैं और किसान रातभर जागकर अपनी खेती बचाता है। दूसरी तस्वीर में वही सरकार हर जिले में “अस्थायी डिटेंशन सेंटर” बनाने का फरमान सुना रही है। मानो इंसानों को बंद करके रखना, उनकी नागरिकता साबित करने की प्रक्रिया चलाना, फिर उन्हें डिपोर्ट करना, गायों को चारा पहुंचाने से आसान काम हो।
इसी वास्तविकता की पृष्ठभूमि में अब सरकार एक नया सपना दिखा रही है डिटेंशन सेंटरों का। यह कोई अतिशयोक्ति नहीं है। यह एक कड़वा सच है।मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने यूपी के सभी जिलाधिकारियों को साफ निर्देश दिया है कि हर जिले में अस्थायी डिटेंशन सेंटर बनाए जाएं। इन सेंटरों में “घुसपैठियों” को रखा जाएगा, उनकी पहचान होगी, दस्तावेज जांचे जाएंगे और फिर उन्हें उनके “मूल देश” भेज दिया जाएगा।
सरकारी भाषा में ये केंद्र “दंडात्मक” नहीं, सिर्फ़ “सत्यापन केंद्र” हैं। लेकिन जमीनी हकीकत कोई और कहानी कह रही है। जो राज्य सात साल में अपनी गायों के लिए चारा, छांव और दवा का इंतज़ाम नहीं कर पाया, वह इंसानों के लिए 24 घंटे सुरक्षा, भोजन, स्वास्थ्य-सुविधा, कानूनी प्रक्रिया और अंतरराष्ट्रीय कूटनीति का जटिल ताना-बाना कैसे बुन लेगा?गौशाला मॉडल पहले ही बता चुका है कि बड़े-बड़े ऐलान और बजट के आंकड़े जमीनी हकीकत नहीं बदलते।
हर साल सैकड़ों करोड़ रुपये गौ-कल्याण पर खर्च होते हैं। रोजाना 7.5 करोड़ के चारा-दवा का दावा है। फिर भी अधिकांश गौशालाएं खाली पड़ी हैं या आधी-अधूरी चल रही हैं। भुगतान महीनों लेट, स्टाफ गायब, चारा गायब। नतीजा यह है कि गायें सड़कों पर, किसान परेशान, सरकार का दावा बरकरार। अब यही सरकार 75 जिलों में डिटेंशन सेंटर बनाना चाहती है। एक साधारण सेंटर का सालाना खर्च 12 से 18 करोड़ रुपये तक जाएगा। प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 900 से 1400 रुपये।
“यह उतना ही खर्च है जितने में भारत का एक गरीब परिवार पूरे हफ्ते का राशन चला लेता है।” यानी गौशाला मॉडल से 20-30 गुना महंगा। यह तो सिर्फ शुरुआत है।असली पेच डिपोर्टेशन का है। असम का सबक अभी ताज़ा है। वहां दस साल में हजारों लोग डिटेंशन में डाले गए। 95 प्रतिशत से ज्यादा आज भी वहीं हैं।और जिन प्रतिशत लोगों को आज तक डिपोर्ट नहीं किया जा सका, वे कानूनी रुप से ‘नागरिक नहीं’, और व्यावहारिक रूप से ‘कहीं के भी नहीं’ बन कर रह गए।
बांग्लादेश ने साफ कह दिया। “बिना ठोस सबूत हम एक भी नहीं लेंगे”। न डिपोर्ट हुए, न रिहा हुए। बस खर्च बढ़ता गया, मानवाधिकार के सवाल बढ़ते गए और सेंटर अनिश्चितकालीन जेल बन गए। उत्तर प्रदेश में भी यही होने वाला है। क्योंकि जिस प्रशासनिक ढांचे ने गाय को भूखा रहने दिया, वही ढांचा अब इंसान को सालों-साल बंद करके रखने की जिम्मेदारी लेने जा रहा है।
इतिहास गवाह है कि यह ढांचा टिकाऊ नहीं है। जब चारा समय पर नहीं पहुंच पाता, तो डिटेंशन में तीन वक़्त का खाना कैसे पहुंचेगा? जब गौशाला का भुगतान अटक जाता है, तो पुलिस और होमगार्ड का वेतन कैसे चुकता होगा? जब गाय को “देशी-विदेशी” नहीं बांटा जाता, तो इंसान को “घुसपैठिया” ठहराने की प्रक्रिया कितनी निष्पक्ष रहेगी? ये सवाल सिर्फ प्रशासनिक नहीं हैं।ये मानवीय हैं। ये संवैधानिक हैं और सबसे ज्यादा तो यह कि ये राजनीतिक इच्छाशक्ति के हैं।
क्योंकि जो राज्य अपनी गायों को भूखा नहीं मार सकता, वह इंसानों को सालों-साल बंद करके नहीं रख सकता।अगर रखने की ज़िद करेगा, तो नतीजा वही होगा जो गौशाला मॉडल का हुआ। बड़ा ऐलान, बड़ा ख़र्च और अंत में बड़ा संकट। बस इस बार संकट गायों का नहीं, इंसानों का होगा। इस मॉडल की असफलता का मूल्य केवल सरकारी खजाना नहीं, बल्कि इंसानी ज़िंदगियां चुकाएंगी।

तहलका संवाद के लिए नीचे क्लिक करे ↓ ↓ ↓ ↓ ↓ ↓ ↓ ↓ ↓ ↓ ↓ ↓

Loading poll ...

Must Read

Tahalka24x7
Tahalka24x7
तहलका24x7 की मुहिम... "सांसे हो रही है कम, आओ मिलकर पेड़ लगाएं हम" से जुड़े और पर्यावरण संतुलन के लिए एक पौधा अवश्य लगाएं..... ?

पूर्वांचल में मौसम ले रहा है करवट, आज से गिरेंगे तापमान

पूर्वांचल में मौसम ले रहा है करवट, आज से गिरेंगे तापमान वाराणसी। तहलका 24x7               पूर्वांचल...

More Articles Like This