जौनपुर : आरक्षण ने मौसमी दावेदारों के मंसूबे पर फेरा पानी
# पुराने चेहरे ही होंगे आमने-सामने, सारा दारोमदार टिकट बंटवारे पर
शाहगंज।
रविशंकर वर्मा
तहलका 24×7
निकाय चुनाव आरक्षण की घोषणा के साथ ही शाहगंज नगर पालिका सीट पर पार्टियों के प्रत्याशियों और चुनावी टक्कर को लेकर कयासों का बाजार गर्म हो गया है। शाहगंज सीट के महिला पिछड़ा वर्ग हो जाने से एक तो मौसमी दावेदारी करने वाले कई उम्मीदवारों के पत्ते साफ हो गए, दूसरे चुनावी तस्वीर में दूर-दूर तक सिर्फ पुराने चेहरे ही दिखाई दे रहे हैं। फिलहाल सभी की निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि बड़ी पार्टियां अपना सिंबल किसे देती हैं। नतीजे बहुत हद तक टिकट बंटवारे पर ही आधारित होंगे।
मौजूदा परिप्रेक्ष्य में देखें तो शाहगंज सीट पर सबसे ज्यादा होड़ भारतीय जनता पार्टी के टिकट के लिए है। बीते दिनों अचानक से दावेदारी जता रहे दो बड़े उद्योगपतियों का पत्ता आरक्षण ने काट दिया। ऐसे में एक बार फिर टिकट को लेकर दावेदारी की लड़ाई पुराने चेहरों के बीच ही है। इनमें निवर्तमान अध्यक्ष गीता जायसवाल, अनिल मोदनवाल की भयोहू और पूर्व सभासद अन्नपूर्णा मोदनवाल, भाजपा महिला मोर्चा अध्यक्ष रीता जायसवाल, रूपेश जायसवाल की पत्नी कुसुम जायसवाल के नामों की चर्चा जोरों पर है। इसके अलावा बिंदु सोनी और संगीता जायसवाल जैसे नाम भी कमल निशान के लिए प्रयासरत बताए जा रहे हैं।

समाजवादी पार्टी के टिकट की दौड़ में लंबे समय से सबसे आगे चल रहे पूर्व पालिकाध्यक्ष स्व. जितेंद्र सिंह के पुत्र वीरेंद्र सिंह बंटी अब अपनी पत्नी रचना सिंह को मैदान में उतारने की तैयारी में जुट गए हैं। सपा से इसके अलावा कोई दूसरा नाम चर्चा तक में नहीं है। बहुजन समाज पार्टी का टिकट भाजपा के टिकट पर पालिकाध्यक्ष का चुनाव जीत चुकी सुमन गुप्ता को मिलने की संभावनाएं भी जताई जा रही हैं। सुमन गुप्ता पूर्व अध्यक्ष जयप्रकाश गुप्ता की पत्नी हैं और बीते कई चुनावों के नतीजों में वो लगातार टॉप थ्री में शामिल रहे हैं।

आरक्षण घोषणा के बाद नए सियासी समीकरण इशारा कर रहे हैं कि चुनावी लड़ाई एक बार फिर त्रिकोणीय होगी। माना जा रहा है कि ऐसा होना भाजपा के टिकटधारी के लिए फायदेमंद हो सकता है। ऐसा इसलिए क्योंकि आमने-सामने की लड़ाई में पार्टी को एंटी इनकंबेंसी का नुकसान उठाना पड़ सकता है। त्रिकोणीय रहने पर विरोधी मत बटेंगे और पार्टी के उम्मीदवार को फायदा पहुंचेगा। आरक्षण की घोषणा के बाद अचानक से सबसे ज्यादा संख्या वाले अग्रहरि वोटरों की अहमियत कम हो गई है। पूरी संभावना है कि यह वोटबैंक तीन मुख्य उम्मीदवारों में बंटेगा और उससे होने वाले फायदे- नुकसान बहुत मायने नहीं रखेंगे।

इन सब बातों के बीच एक सबसे महत्वपूर्ण इफेक्ट एंटी इनकंबेन्सी का माना जा रहा है। नगर पालिका के बीते कार्यकाल को लेकर ना सिर्फ विरोधियों बल्कि खुद भाजपा के तमाम लोगों को आपत्ति रही है। भाजपाई खुलकर तो इसे जाहिर नहीं कर रहे लेकिन अंदरखाने निवर्तमान चेयरमैन के विरोध की खिचड़ी पकाते रहने की बात छुपी नहीं है। ऐसे में सारा दारोमदार टिकट बंटवारे पर है। देखना दिलचस्प है कि सियासत का ऊंट इस बार किस करवट बैठने के मूड में है।