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Sunday, May 19, 2024

बिजली विभाग के निजीकरण विरोध में कल विद्युतकर्मी करेगे विरोध प्रदर्शन

बिजली विभाग के निजीकरण विरोध में कल विद्युतकर्मी करेगे विरोध प्रदर्शन

जौनपुर।
विश्व प्रकाश श्रीवास्तव
तहलका 24×7
                बिजली के निजीकरण हेतु संसद में रखे जा रहे इलेक्ट्रीसिटी (अमेण्डमेंट) बिल 2022 के विरोध में देश के तमाम  बिजली कर्मचारी व इंजीनियर 08 अगस्त को काम छोड़कर कर दिनभर विरोध प्रदर्शन करेंगे। केंद्रीय विद्युत मंत्री आरके सिंह द्वारा इलेक्ट्रिसिटी (अमेंडमेंट) बिल 2022, 08 अगस्त को लोकसभा में रखे जाने के विरोध में देश के तमाम  बिजली कर्मचारियों व इंजीनियरों के साथ उप्र के सभी बिजली कर्मी 08 अगस्त को काम छोड़कर कर दिनभर विरोध प्रदर्शन करेंगे।

विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति, उप्र ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से इस मामले में प्रभावी हस्तक्षेप करने की अपील की है। जिससे  जल्दबाजी में इस बिल को संसद में न पारित कराया जाए और बिजली उपभोक्ताओं तथा बिजली कर्मचारियों सहित सभी स्टेकहोल्डर्स से विस्तृत चर्चा करने हेतु इस बिल को संसद की बिजली मामलों की स्टैंडिंग कमेटी को संदर्भित कर दिया जाए। संघर्ष समिति के प्रमुख पदाधिकारियों संयोजक निखिलेश सिंह, सह संयोजक संजय यादव, ई. हरीश प्रजापति, ई. राम आधार, मनीष श्रीवास्तव, संजय उपाध्याय, रविन्द्र सिंह, सत्यनारायण उपाध्याय, अश्वनी श्रीवास्तव, अरविंद मिश्रा, विवेक सिंह, गिरीश चन्द्र यादव, मोहन पांडेय, असगर मेहदी आदि ने बताया कि केन्द्र सरकार संसदीय परम्पराओं का उल्लंघन करते हुए इलेक्ट्रीसिटी (अमेण्डमेंट) बिल 2022, 08 अगस्त को संसद के चालू सत्र में रखने जा रही है जिससे पूरे देश के बिजली कर्मचारियों में भारी गुस्सा है।

उन्होंने बताया कि  इलेक्ट्रीसिटी (अमेण्डमेंट) बिल 2022 का मसौदा 05 अगस्त को लोकसभा के सांसदों को दिया गया है और इस पर केंद्रीय विद्युत् मंत्री आर के सिंह के 02 अगस्त की तारीख में हस्ताक्षर हैं। इससे स्पष्ट है कि इस बिल पर किसी भी स्टेकहोल्डर से राय नहीं माँगी गई है। उन्होंने आगे बताया कि बिजली संविधान की समवर्ती सूची में है जिसका अर्थ यह होता है कि बिजली के मामले में क़ानून बनाने में केंद्र और राज्य का बराबर का अधिकार है, किन्तु इस बिल पर केंद्र सरकार ने किसी भी राज्य से कमेन्ट नहीं मांगे है और इसे 08 अगस्त को लोकसभा में रख कर पारित कराने की कोशिश है जो संसदीय परम्परा का खुला उल्लंघन है और साथ ही देश के संघीय ढाँचे पर चोट है।

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