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Thursday, November 13, 2025

भाजपा में कलह: शीत निद्रा से उठे दो नेताओं की झूठ पर टिकी राजनीति

भाजपा में कलह: शीत निद्रा से उठे दो नेताओं की झूठ पर टिकी राजनीति

# केशव प्रसाद मौर्य 2017 में लगभग छह माह भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष रहे और उसी दौरान पार्टी ने यूपी में पूर्ण बहुमत हासिल की तो वह शीत निद्रा से जागे। लेकिन, तब तक देर हो चुकी थी और योगी सीएम बन गए, वही टीस अब कलह को सतह पर ला चुकी है।

# भाजपा की सहयोगी पार्टी अपना दल एस की मुखिया अनुप्रिया पटेल भी केशव मौर्य की तरह गलतफहमी में थीं कि इनके समाज (हम जातीय) वोटर कहीं नहीं जाएंगे, इस साल हुए लोकसभा चुनाव में भ्रम टूटा तो वह भी योगी सरकार की नीतियों को गलत बताकर चिठ्ठी लिख दीं।

कैलाश सिंह
लखनऊ।
तहलका 24×7 विशेष.                                                           सर्दी के मौसम में मेढक जैसे कई जन्तु भूमिगत हो जाते हैं, इसी को कहते हैं शीत निद्रा, अनुकूल मौसम होने पर वह उठ जाते हैं। ठीक यही तरीका राजनीति में वह नेता अपनाते हैं जिनके जनाधार का दारोमदार जातिगत यानी अपने समाज के वोटरों पर होता है। जब मतदाता उनसे छिटक जाते हैं तब वे नेता झूठ की बुनियाद पर अपनी ही पार्टी अथवा गठबंधन वाले दल के लिए आत्मघाती साबित होने लगते हैं।

इन दिनों भाजपा में आंतरिक कलह के दो शीर्ष राजनीतिक खिलाड़ी हैं, केशव प्रसाद मौर्य और अपना दल एस की मुखिया अनुप्रिया पटेल। बाकी प्लेयर तो हवा का रुख और मिशन 2027 में अपने टिकट को पक्का कराने के लिए जुबानी जंग के गेम में लगे हैं।

भाजपा सूत्रों के मुताबिक यह तो सर्व विदित है कि 2017 में हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा को बहुमत मिली तो पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य मौर्य थे। जब योगी आदित्यनाथ को सांसद रहते हुए यूपी के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठाया गया तो राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) की पूर्ण सहमति मिली थी। जबकि योगी संघ से जुड़े भी नहीं थे, लेकिन यूपी में हिंदुत्व के बड़े चेहरे में शीर्ष पर थे। मुख्यमंत्री बनने के बाद उनका कद देशव्यापी हुआ और अपराध नियंत्रण में बुलडोजर बड़ा ब्रांड बन गया।

दूसरी ओर केशव प्रसाद मौर्य शीत निद्रा से उठे तो उन्हें लगा कि मेरे प्रदेश अध्यक्ष रहते और जातीय वोटरों के अंध समर्थन के चलते भाजपा को अरसे बाद यूपी में पूर्ण बहुमत मिली है, इसलिए सीएम की कुर्सी तो मुझे मिलनी चाहिए। उनके इसी तर्क पर पार्टी हाई कमान ने यह कहकर डिप्टी सीएम बनाया की अगली पंच वर्षीय चुनावी योजना में आपका ही चेहरा होगा। वह किसी तरह पांच साल बिताए लेकिन न तो उन्हें जनता जान पाई कि वह किस विभाग का मंत्रालय देख रहे हैं और न तो वह जनता या अपने समाज के काम आए।

इतना ही नहीं, वह तो अपने मंत्रालय के नौकरशाहों को भी नहीं पहचान पाए। खैर, पांच साल बीता तो वह अपनी सीट से 2022 का विधान सभा चुनाव हार गए, फिर भी पार्टी ने उन्हें दोबारा डिप्टी सीएम बना दिया।
यहीं उन्हें अपने जनाधार को लेकर गलतफहमी हो गई, उन्हें लगा कि कुछ तो काबलियत है तभी तो पार्टी उन्हें सिर माथे पर रखे है। बस इसी के बाद सीएम बनने की उनकी इच्छाएं कुलांचे मारने लगीं और वह योगी सरकार के विरोध में अनाप-शनाप बयान देने लगे, जिसमें खुद तो फंसने ही लगे और पार्टी को नेशनल पैमाने पर फंसाने लगे।

बानगी देखिए श्री मौर्य के चलते ही प्रदेश की पार्टी बैठक में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा शामिल हुए, सीएम योगी ने पार्टी के अति आत्मविश्वास को कारण बताकर हार का ठीकरा घुमा दिया। लेकिन, केशव प्रसाद मौर्य के भाषण पर गौर करने वाली बात यह रही कि “सरकार से बड़ा संगठन होता है”, इसी बयान पर राजनीतिक विश्लेषक तर्क देते हैं कि जब संगठन बड़ा होता है तो सरकार का मुखिया बनने के लिए क्यों तड़प रहे हैं।

उन्हें तो फिर प्रदेश अध्यक्ष बनना चाहिए। दरअसल राजनीति में आने से पूर्व का उनका ‘काला’ इतिहास पीछा नहीं छोड़ रहा है। मुख्य कुर्सी मिलने पर वह इतिहास अपने हाथ से मिटा सकते हैं और बाद में पूर्व मुख्यमंत्री का दर्जा भी हासिल रहेगा, शायद उन्हें लगता होगा कि मिशन 2027 में सीएम बनने का अवसर न मिले!भाजपा सूत्र बताते हैं कि केशव प्रसाद मौर्य की इसी पीड़ा को पहचान कर भाजपा हाई कमान अमित शाह ने उन्हें अपना मोहरा बना लिया और योगी के विरोध में खड़ा कर दिया।

शाह को योगी से कोई अदावत नहीं है बल्कि उनके बढ़ते कद से डर है। यही वह क्षण था जब दो साल से राख में दबी केशव के इच्छा की चिंगारी कुलांचे मारने लगी। भाजपा में आंतरिक कलह की जड़ भी यहीं से पनपने लगी, जबकि लोकसभा चुनाव में भाजपा को वह अपने ही समाज का वोट नहीं दिला पाए। इसकी बानगी जौनपुर सीट पर मिली जहां मौर्य वोटरों ने खुलकर भाजपा के विरोध में मतदान किया।

अब बात करते हैं अपना दल एस की नेता अनुप्रिया पटेल की। वह खुद मोदी मन्त्रिमण्डल में एक दशक से हैं और उनके पति योगी की कैबिनेट में हैं, फिर भी वह योगी सरकार पर टिप्पणी करती चिठ्ठी में कहती हैं कि पिछड़े, अति पिछड़े वर्ग को नौकरियों में आरक्षण नहीं मिलता है। जबकि उन्हें पता ही नहीं है कि आरक्षण में रिक्त रह गई सीटों को अगली वेकेंसी में जोड़कर रिक्त सीटों की संख्या बढ़ा दी जाती है।

इसी तरह दूसरी चिठ्ठी में टोल प्लाजा पर अतिरिक्त पैसे लेने की बात कही, दोनों का जवाब उन्हें योगी सरकार की ओर से मिलने के बाद से तीसरी चिठ्ठी नहीं आई। लोकसभा चुनाव में अनुप्रिया खुद की सीट मुश्किल से बचा पाईं, उनके सहयोगियों को हार मिली केवल एक बयान पर। गुजरात से राजपूतों के विरुद्ध बयान की चिंगारी राजस्थान को झुलसाते हुए यूपी में धधक रही थी तभी कौशांबी, प्रतापगढ़ में सभा के दौरान उन्होंने रघुराज प्रताप सिंह राजा भैया पर लक्ष्य करके कहा कि अब राजा ईवीेएम से पैदा होते हैं, जवाब में राजा भैया ने कहा कि देश की आज़ादी के साथ राजे, राजवाड़े समाप्त हो गए, ईवीेएम से जन सेवक पैदा होते हैं, जिनकी उम्र महज पांच साल होती है।

दरअसल श्रीमती पटेल इंडिया गठबंधन से डर गई थीं, उन्हें एहसास हो गया था कि पटेल वोटर अपना दल के नियंत्रण से बाहर जा रहे हैं। सुभासपा और निषाद पार्टी की तरह उनके दल का वोटर भी भाजपा से दूर होने लगा। इसी नाकामी को छिपाने के लिए उन्होंने योगी सरकार पर सवाल खड़े किए।

इन दिनों दुकानदारों को नेम प्लेट पर पूरा पता लिखने को लेकर यूपी के साथ उत्तराखंड को लेकर राजनेताओं के बयान बवाल मचाए है, जबकि यह कानून केन्द्र की मनमोहन सरकार ने 2006 में ही बना दिया था। 2011 से यह नियम भी बड़े अक्षरों में नाम, पता लिखे बोर्ड लगाने को बन गए थे। केन्द्र से पास हुए कानून को लागू करने के चलते ही मोदी सरकार इसमें हाथ नहीं डाल रही है!

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