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Saturday, May 18, 2024

उम्र भर भरते रहे थे, जो दरारों में प्रणय। 

उम्र भर भरते रहे थे, जो दरारों में प्रणय। 

अंत में विध्वंस भी, उनके इशारों पर हुआ।

तौलकर मजबूतियां, मजबूरियों में बैठकर। 
एक दूजे को उठाने का किया अनुबंध जो।
हम परस्पर ढ़ाल हैं इस बात को ही सोचकर। 
शांत ही करते रहे हम रक्त की थी गंध जो।
प्राण जब तक हैं तभी तक पालना है ये विनय। 
किन्तु ये अवसान शापित से किनारों पर हुआ।
था झुका वटवृक्ष भी इक जिंदगी के बोझ से। 
शाख ने धब्बा लगाया पालकों के भाव पर। 
धिक् नियन्ता! सृष्टि का दुर्दिन फिरा है कोप से। 
कर लिया स्वीकार हाथों का नमक भी घाव पर।
व्यक्ति जो था जिंदगी की राह में निश्चित अजय। 
अंततोगत्वा उसी का ऋण सितारों पर हुआ।
राहुल राज मिश्र
शिक्षक, गीतकार
राजकीय हाईस्कूल सवायन-जौनपुर

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