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Friday, October 24, 2025

मृत्युदंड में घातक इंजेक्शन विकल्प पर सुप्रीम कोर्ट का सख्त रुख

मृत्युदंड में घातक इंजेक्शन विकल्प पर सुप्रीम कोर्ट का सख्त रुख

नई दिल्ली। 
तहलका 24×7
               सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार के उस सुझाव पर नकारात्मक रुख अपनाया है, जिसमें मृत्युदंड पाने वाले दोषियों को फांसी के स्थान पर घातक इंजेक्शन देने का विकल्प देने की बात कही गई थी।न्यायालय जनहित याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें पारंपरिक फांसी की सजा की जगह घातक इंजेक्शन या कम से कम दोषी को सजा का तरीका चुनने का अधिकार देने की मांग की गई थी।
याचिकाकर्ता के वकील ऋषि मल्होत्रा ने दलील दी कि दोषी को यह अधिकार दिया जाना चाहिए कि वह फांसी चाहता है या घातक इंजेक्शन। घातक इंजेक्शन त्वरित मानवीय और सभ्य तरीका है, जबकि फांसी क्रूर और विलंबकारी है। उन्होंने कहा कि सेना में भी ऐसा विकल्प दिया जाता है।सरकार की ओर से दायर जवाबी हलफनामे में कहा गया कि यह विकल्प व्यवहार्य नहीं है। इस पर न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने टिप्पणी की कि सरकार समय के साथ बदलाव के लिए तैयार नहीं दिख रही है।
पीठ ने कहा, यह एक बहुत पुरानी प्रक्रिया है, जबकि समय के साथ चीजें बदल चुकी हैं।सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सोनिया माथुर ने कहा कि दोषियों को विकल्प देना एक नीतिगत मामला है। मामले की अगली सुनवाई 11 नवंबर को होगी। याचिकाकर्ता ने कहा कि फांसी की वर्तमान प्रथा में लंबे समय तक दर्द और पीड़ा होती है, जबकि घातक इंजेक्शन, फायरिंग स्क्वाड या विद्युत सदमे जैसे तरीके से व्यक्ति कुछ मिनटों में मर सकता है।
उन्होंने कहा कि अमेरिका के 50 में से 49 राज्यों में घातक इंजेक्शन का प्रयोग होता है।याचिका में दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 354 (5) को भेदभावपूर्ण बताते हुए इसे संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन के अधिकार) का उल्लंघन घोषित करने की मांग की गई है। साथ ही “सम्मानजनक मृत्यु का अधिकार” को मौलिक अधिकार के रुप में मान्यता देने की भी मांग की गई है। फांसी से मृत्युदंड को बर्बर, अमानवीय और क्रूर बताया गया है। संयुक्त राष्ट्र के उन प्रस्तावों का हवाला दिया गया, जिनमें मृत्युदंड को न्यूनतम कष्ट के साथ देने की सिफारिश की गई है।

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