राम और भरत के मिलाप की कथा सुनकर विह्वल हुए श्रोता
मछलीशहर, जौनपुर।
दीपक श्रीवास्तव
तहलका 24×7
क्षेत्र के गोधुपुर गांव में स्थित तालाब के किनारे चल रही रामकथा के पांचवे दिन चित्रकुट में भरत मिलाप की कथा सुनाते हुए व्यास मुरारी श्याम पांडेय ने कहा कि राम वन गमन के बाद गुरुजी का संदेश पाकर भरत ननिहाल से अयोध्या लौटते है। अयोध्या में जब उन्हें पिता की मृत्यु की जानकारी होती हैं तो वे विह्वल हो उठते हैं। गुरु वशिष्ठ उन्हे समझाते है कि भाग्य प्रबल होता है और संसार में हानि-लाभ जीवन-मरण जश-अपयश सब विधना के हाथ में है।
आगे की कथा सुनाते हुए व्यास मुरारी श्याम पांडेय ने कहा कि गुरु वशिष्ठ के समझाने पर भरत शांत होते है। तब गुरु वरदान के अनुसार राजगद्दी पर बैठने को कहते है, किंतु गुरु के राजगद्दी सभालने के प्रस्ताव पर भरत सहमत नही होते है। वे अपने भाई राम को मनाने के लिए चित्रकूट वन में जाने की योजना बनाते हैं। चित्रकूट में गुरु, भाई शत्रुध्न और माताओं के साथ जाते है।वहां राम को मनाने के लिए काफी प्रयास किया जाता है मगर वे पिता की आज्ञा से बंधे होने की बात कहते हुए अयोध्या वापस लौटने से मना कर देते है। उधर भरत भी राजगद्दी पर बैठने से मना कर देते है तो गुरु वशिष्ठ बीच का रास्ता निकालकर भरत को राम की चरण पादुका गद्दी पर रखकर प्रतिनिधि के रूप में राज्य का कार्य चौदह वर्ष संभालने का आदेश देते हैं। जिस पर भरत सहमत होते है। राम की चरण पादुका शिरोधार्य कर वापस लौटते हैं। राम के स्नेह और भरत के त्याग की कथा सुनकर श्रोता भाव विभोर हो गए।