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Monday, May 20, 2024

लोकआस्था, कठोर तपस्या, सूर्य उपासना का शुभ महापर्व “डाला छठ” 

लोकआस्था, कठोर तपस्या, सूर्य उपासना का शुभ महापर्व “डाला छठ” 

जौनपुर। 
विश्व प्रकाश श्रीवास्तव 
तहलका 24×7
              प्राय: कुछेक लोगों को यह कहते हुए आपने सुना होगा कि “डुबते हुए सूर्य को नमस्कार कौन करता है” इस प्रकार की बात करने वाले लोग भी अब अपनी खुली आंखों से देख रहे हैं कि केवल डुबते हुए सूर्य को नमस्कार ही नहीं बल्कि आस्था, विश्वास एवं कठोर तपस्या के साथ सूर्य उपासना का यह चार दिवसीय त्योहार अत्यंत ही श्रद्धा, भक्ति एवं अंतर्मन की शुद्धि के साथ “कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष में षष्ठी तिथि” को मनाया जाता है।जिस परिवार में भी इस ब्रत को करना होता है, वहां कम से कम एक सप्ताह पहले से हीं शुद्धता के साथ तैयारी शुरू हो जाती है। उपयोग में लाई जाने वाली सामग्री/अनाज आदि की साफ सफाई पर विशेष ध्यान रखा जाता है।
व्रत की शुरुआत चतुर्थी तिथि से “नहाय खाय” अर्थात शुद्धतपूर्ण ‌आहार से प्रारंभ होता है। पंचमी तिथि को केवल एक बार साम को “मीठा भात” (जाउर या गुड़ का खीर) ग्रहण करके अगले दिन षष्ठी तिथि को ब्रत रहकर सायं काल डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर ब्रति सूर्य प्रणाम करता है। यह कार्य जलाशय (नदी- पोखरा) में खड़ा होकर किया जाता है।
अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देकर ब्रति दीप जलाकर रात्रि जागरण, कथा/ गीत-संगीत के साथ करते हुए पुनः प्रातः सूर्योदय (उदयाचल) के समय उदित सूर्य को अर्घ्य देकर चौथे दिन पूर्ण मनोयोग से मनोकामना पूर्ति की ईच्छा के साथ घाट पर खड़े श्रद्धालुजनों में प्रसाद वितरण एवं सुहागिन औरतों की मांग में व्रती औरतें सिंदूर भरती हैं। इस समय प्रसाद प्राप्त करने के लिए घाटों पर जो भीड़ होती है, वह देखते बनती है। वास्तव में एक ब्यक्ति पांच व्रती से प्रसाद ग्रहण करने को शुभ मानता है। तत्पश्चात व्रती अन्न जल ग्रहण कर ब्रत पूरी करते हैं।
लोग इसे बिहार से शुरू हुआ ब्रत कहते हैं। लेकिन उत्तर प्रदेश से होता हुआ केवल भारत में ही नहीं, बल्कि पश्चिम के कई देशों में लोग इस त्योहार को मनाते देखे जा सकते हैं। इसकी लोकप्रियता का आलम यह है कि शासन प्रशासन को भी काफी चाक चौबंद के साथ साथ तैयारी करनी पड़ती है। “धन्य हैं भारतीय ब्रत, पर्व, त्योहार जो भारतीयों को ब्यस्त रहो-मस्त रहो, स्वस्थ एवं प्रशन्न रहें” की शुभ मंगल कामनाएं लेकर आती हैं, और फिर ज्यों ही हम पुनः उदासी की तरफ बढ़ने को होते हैं। एक नया त्योहार हमें प्रफुल्लित करने को तैयार रहता है। “प्रकृति के साथ जीने की सिख भी हमें आसानी से दे जाता है।” हम अपने सभी ब्रत, त्योहार उल्लासपूर्ण मंगल कामनाओं के साथ मनायें।
प्रोफेसर अखिलेश्वर शुक्ला
पूर्व प्राचार्य/ विभागाध्यक्ष
राजनीति विज्ञान विभाग
राजा श्रीकृष्ण दत्त स्नातकोत्तर महाविद्यालय जौनपुर यूपी

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