श्री अन्न का कृषि और जीवनशैली पर प्रभाव एवं महत्त्व
डाॅ. विशाल सिंह (सहायक आचार्य केएनआई)
भारत सरकार की पहल पर वर्ष 2023 को संयुक्त राष्ट्र द्वारा अंतर्राष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष (इंटरनेशनल ईयर आफ मिलेट्स) के रूप में घोषित किया गया है। इसलिए पूरे विश्व में मोटे अनाजों के प्रति किसानों और आम नागरिकों में जागरूकता पैदा की जा रही है।
वित्त मंत्री ने बजट पेश करते समय बताया कि “मोटे अनाज को श्रीअन्न भी कहते हैं। हम दुनिया में श्रीअन्न के सबसे बड़े उत्पादक और दूसरे सबसे बड़े निर्यातक हैं। मोटे अनाज में ज्वार, बाजरा, रागी (मडुआ), जौ, कोदो, सामा, बाजरा, सांवा, लघु धान्य या कुटकी, कांगनी और चीना फसलों को मोटे अनाज के तौर पर जाना जाता है। वहीं दानों के आकार के आधार पर मोटे अनाजों को दो भागों में बांटा गया है। पहला मोटा अनाज जिनमें ज्वार और बाजरा आते हैं। दूसरा लघु अनाज जिनमें बहुत छोटे दाने वाले मोटे अनाज जैसे रागी, कंगनी, कोदो, चीना, सांवा और कुटकी आदि आते हैं।
मक्का, ज्वार और अन्य मोटे अनाज का उत्पादन भारत के कुल खाद्य उत्पादन का एक चौथाई है। यह देश की अर्थव्यवस्था में अहम योगदान देता है। इसके अलावा पारंपरिक पाक विधियों में मोटे अनाजों का इस्तेमाल शिशु आहार बनाने वाले उद्योग तथा अन्य खाद्य पदार्थों के उत्पादन में किया जाता है। ज्वार का इस्तेमाल ग्लूकोज और अन्य पेय निर्माण उद्योग में किया जाता है। अब रागी और गेहूं के मिश्रण से निर्मित वर्मिसेली बाजार में उपलब्ध है। जिसे खाने के लिये तैयार भोजन के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।
# भारतीय रसोई से मोटे अनाज क्यों हो गए गायब?
कई अन्य आदतों की तरह हम भारतीयों ने भी अपने भोजन की आदतों को पश्चिमी स्वाद के अनुसार स्थानांतरित कर दिया। स्वदेशी खाद्य पदार्थों को छोड़ कर हम लोग विदेशी खाद्य सामग्रियों की ओर ज्यादा लालायित हो उठे हैं। जिसके परिणाम स्वरूप मानव शरीर में अनेक प्रकार की कमजोरियों के साथ साथ जानलेवा बीमारियों का अधिग्रहण हो जाना है। हरित क्रांति से पहले मोटे अनाज कुल उपज का 40 प्रतिशत योगदान देते थे। ये अनाजों में धान से भी अधिक उत्पादन दिया करते थे।
# सरकार मोटे अनाज की खेती पर दे रही है जोर
केंद्र सरकार मोटे अनाज की खेती पर जोर दे रही है क्योंकि बढ़ती आबादी के लिए पोषणयुक्त भोजन उपलब्ध करवाने में यही अनाज सक्षम हो सकते हैं। मोटे अनाज पोषण का सबसे बेहतरीन जरिया हैं। सरकार इसके पोषक गुणों को देखते हुए इसे मिड डे मील स्कीम और सार्वजनिक वितरण प्रणाली में भी शामिल करने की योजना बना रही है।
केंद्र सरकार ने मोटे अनाज की खेती के लिए प्रेरित करने के लिए साल 2018 को मोटा अनाज वर्ष के रूप में मनाया था। उस वक्त कृषि मंत्री रहे राधामोहन सिंह ने संयुक्त राष्ट्र संघ खाद्य एवं कृषि संगठन को पत्र लिखकर 2019 को मोटा अनाज वर्ष के रूप में मनाने की अपील की थी।
छत्तीसगढ़ और ओडिशा के कुछ इलाकों में मोटा अनाज की खेती बढ़ी है। दक्षिण भारत में भी मोटा अनाज का चलन बढ़ा है। आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और ओडिशा में रोज के खान-पान में मोटा अनाज को शामिल किया जा रहा है।
# मिलेट्स खाने के फायदे
कोरोना के बाद मोटे अनाज इम्युनिटी बूस्टर के रूप में प्रतिष्ठित हुए हैं। इन्हें सुपरफूड कहा जाने लगा है। मिलेट्स में कैल्शियम, आयरन, जिंक, फास्फोरस, मैग्नीशियम, पोटेशियम, फाइबर, विटामिन-बी-6, 3 व कैरोटीन,
लेसिथिन आदि तत्व होते हैं।
शरीर में स्थित अम्लता यानी एसिड दूर करता है। एसिडिटी के कई नुकसान होते हैं। इसमें विटामिन-बी 3 होता है जो शरीर की मेटाबॉलिज्म की प्रक्रिया को ठीक रखता है। जिससे कैंसर जैसे रोग नहीं होते हैं।
मिलेट, टाइप-1 टाइप-2 डायबिटीज को रोकने में सक्षम है। अस्थमा रोग में लाभदायक है। बाजरा खाने से श्वास से संबंधि सभी रोग दूर होते हैं।
यह थायराइड, यूरिक एसिड, किडनी, लियर लिपिड रोग और अग्नाशय से संबंधित रोगों में लाभदायक है। क्योंकि यह मेटाबोल्कि सिद्धींम दूर करने में सहायक हैं।
(लेखक कमला नेहरू भौतिक एवं सामाजिक विज्ञान संस्थान, सुल्तानपुर में सहायक आचार्य हैं।)