दिल्ली से आए कलाकार बनाएंगे रावण का 90 फिट ऊंचा पुतला
# तीसरी पीढ़ी के सुब्बन खां परिवार के साथ सूर्पनखा एंव मेघनाद के पुतला बनाने में जुटे
# 186 वर्ष पुराना है शाहगंज का एतिहासिक श्रीराम लीला मंचन एंव दशहरा मेला
शाहगंज।
रवि शंकर वर्मा
तहलका 24×7
186 वर्ष पुरानी शाहगंज की एतिहासिक श्रीराम लीला एंव भव्य दशहरा मेला पूर्वांचल में ख्यातिलब्ध है और उसका मजबूत कारण है कि गंगा जमुनी तहज़ीब की अनोखी मिसाल… एतिहासिक दशहरा मेला में दहन किए जाने वाले रावण, मेघनाथ और सूर्पनखा के पुतले के निर्माण में सुब्बन खां की तीन पीढ़ियों ने अपना अमूल्य योगदान दिया है। नगर के ऐतिहासिक विजयादशमी मेले में रावण के पुतले के निर्माण में लगे सुब्बन खां की तीन पीढ़ियां राजा दशरथ का दीवान व अशोक वाटिका आदि तमाम पुतले की कृतियां बनाते चली आ रही हैं। पीढ़ियों से भादी के निवासी सुब्बन खां का कुनबा प्रभु श्रीराम के इस काम में हाथ बंटाता चला आया है। इस साल 90 फुट ऊंचा रावण का पुतला मेले के आकर्षण का केंद्र होगा।
बताते हैं कि नगर में 186 वर्ष पूर्व श्रीराम लीला और विजयादशमी मेले की शुरुआत हुई तभी से रावण के पुतले सहित राजा दशरथ का दीवान, अशोक बाटिका, मेघनाथ, सूर्पनखा, जटायु, हिरन आदि का पुतला बनाने का काम एक मुस्लिम परिवार करता चला रहा है। भादी गांव निवासी सुब्बन खां बताते हैं कि उनके पहले उनके पिता कौसर खान रावण के पुतले को बनाने की जिम्मेदारी निभाते रहे। आज इस काम को सुब्बन खां करते हैं। जिनके सहयोग में अपनी पत्नी महजबी, पुत्री अफरीन, गुलसबा व पुत्र शाहनवाज, आकिब लगे होते हैं। सुब्बन खां का परिवार पीढ़ियों से बगैर किसी हिचक के विजयादशमी के पर्व में अपना सहयोग देकर चला आया है। उनका यह सहयोग आपसी भाइचारे की तहजीब की एक जीती जागती मिसाल है। सुब्बन बताते हैं कि इस वर्ष दिल्ली से आए कलाकार सिराजुद्दीन 90 फुट ऊंचा रावण का पुतला बना रहे है। जो कि पिछले वर्ष 80 फुट का बना हुआ था। इस साल पुतले के बनाने में लोहे के रिंग का भी उपयोग हो रहा है। जो पुतले को मजबूती देगा और उसे खड़ा करने में भी मददगार होगा।
स्थानीय विजयादशमी का मेला पूर्वांचल में अपना एक अलग स्थान रखता है। यहां पर क्षेत्र के अलावा आजमगढ़, सुल्तानपुर, अंबेडकर नगर जिलों से भी लोग मेले में शरीक होने के लिए पहुंचते हैं। मेले में बैलगाड़ी और ट्रैक्टर से महिलाओं के पहुंचने की एक अनोखी परंपरा सी रही है। जो बदले दौर में इक्का – दुक्का बैलगाड़ी ही दिखाई पड़ती हैं। इनकी जगह ट्रैक्टर और ट्रकों ने ले लिया है। गाड़ियों में चारपाई और चौकी आदि रख कर उस पर बैठकर महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग मेले में शरीक होते हैं। मेला स्थल पर व्यवस्था को बनाए रखने में पुलिस प्रशासन के साथ ही रामलीला समिति के पदाधिकारी और कार्यकर्ता भी सक्रिय भूमिका निभाते हैं। आयोजन स्थल में बने पंडाल में क्षेत्रीय जनप्रतिनिधि और प्रशासनिक अफसरों की मौजूदगी मेले के महत्व को दर्शाती है।
