शतरंज की बिसात पर सवर्ण एंव वैश्य समुदाय की पैनी नजर
# ठाकुर और ब्राह्मण मोड़ सकते हैं किसी भी चुनाव का रुख
स्पेशल डेस्क। रवि शंकर वर्मा तहलका 24×7 यूपी के चुनावी रण में जहां तमाम जातियों का शोर मच रहा है, वहीं सवर्ण खामोशी से चुनावी परिदृश्य का आंकलन कर रहे हैं। समीकरणों की बिसात पर ये बिरादरियां किसी भी उम्मीदवार या पार्टी का खेल बनाने और बिगाड़ने का माद्दा रखती हैं। अतीत में झांकें तो ऐसे कई उदाहरण है जब सवर्ण जातियों ने किंग मेकर की भूमिका निभाई। इस चुनाव में भी इन जातियों की अहम भूमिका है और सभी दलों की निगाहें इस तरफ हैं।
उत्तर प्रदेश की बात करें तो सवर्ण मतदाताओं की आबादी 26 फीसदी से ज्यादा है। इनमें सबसे ज्यादा 11 फीसदी से अधिक ब्राह्मण वोटर हैं। 9 फीसदी से ज्यादा क्षत्रिय मतदाता हैं। वैश्य मतदाता 6 प्रतिशत से अधिक और कायस्थ करीब 2 फीसदी हैं। शहरी सीटों पर वैश्य मतदाताओं की मौजूदगी ज्यादा है। ग्रामीण परिवेश में ब्राह्मण, क्षत्रिय, कायस्थ आदि मतदाताओं की अच्छी खासी संख्या है। सवर्ण वोट बैंक की खासियत यह रही है कि ये किसी पार्टी विशेष के बंधन में नहीं बंधे। समय और परिस्थिति के हिसाब से ये जातियां अपनी उपस्थिति अपने हिसाब से दर्ज कराकर चुनाव के परिणाम बदलती रही हैं। 1990 से पहले उत्तर प्रदेश की सत्ता पर ब्राह्मण और क्षत्रियों का खासा दबदबा रहा है। प्रदेश में कुल आठ ब्राह्मण मुख्यमंत्री और पांच बार ठाकुर मुख्यमंत्री बने। पिछले चुनावों की बात करें तो भाजपा ने इस वर्ग में सबसे तगड़ी सेंध लगाई है।
# इन जिलों में काफी है संख्या
प्रदेश में गाजियाबाद, हमीरपुर, गौतमबुद्धनगर, प्रतापगढ़, बलिया, जौनपुर, गाजीपुर, फतेहपुर, बलरामपुर, गोंडा में ठाकुरों की मौजूदगी अच्छी खासी है। वहीं, ब्राह्मणों की जिन जिलों में अच्छी खासी संख्या है, उनकी संख्या 24 से ज्यादा है। शामली, सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, बिजनौर, हापुड़, बुलंदशहर, अलीगढ़, मुरादाबाद, मेरठ, बरेली, बागपत, आगरा, अमरोहा, गौतमबुद्धनगर सहित कई जिलों में सवर्णों की तादाद काफी है। पहले चरण के चुनाव की बात करें तो सवर्ण इन सीटों पर किसी का भी परिणाम बदल सकते हैं।
# पिछले चुनाव में दिखे भाजपा के साथ
विधानसभा चुनाव 2017 की बात करें तो ज्यादातर सवर्ण जातियां भाजपा के साथ नजर आई थीं। यही कारण रहा कि इस बार जिन 11 जिलों की 58 सीटों पर पहले चरण में चुनाव हो रहा है, उनमें से 53 पर भगवा परचम फहराया था। भाजपा ने इस बार सवर्णों को साधने के लिए पहले दो चरणों की पहली सूची में ही 10 ब्राह्मणों और 18 ठाकुरों को टिकट देकर उन्हें खुश करने की कोशिश की।
# बसपा और सपा कर रही पूरा प्रयास
बसपा और सपा सवर्णों को रिझाने के लिए भरपूर कोशिश कर रही हैं। खास तौर पर बसपा तो वर्ष 2007 के चुनाव में सवर्णों के दम पर ही सत्ता के शिखर तक पहुंची। सोशल इंजीनियरिंग के उसी फॉर्मूले को इस बार भी बसपा आजमाना चाह रही है। सपा ने भी भगवान परशुराम की मूर्ति के बहाने सवर्णों में खास तौर से ब्राह्मणों को लुभाने की कोशिश की है।