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Monday, November 3, 2025

टेलीकॉम पर ‘डेटा डकैती’ “कॉम्बो पैक लो, वरना सिम बंद!

टेलीकॉम पर ‘डेटा डकैती’ “कॉम्बो पैक लो, वरना सिम बंद!

# बीएसएनएल का साजिशकृत पतन। न फोन मिले, न डेटा, निजी कम्‍पनियों का पौबारह।भाईसाहब नहीं लगेगा आधे उपभोक्ता को डेटा नहीं चाहिए लेकिन लेना मजबूरी। 

कुमार सौवीर 
स्वतंत्र पत्रकार
तहलका 24×7
              कल्‍पना कीजिए कि आप ट्रेन से स्लीपर क्लास से आरक्षण लेने जा रहे हों, लेकिन आपको फर्स्ट क्लास का टिकट लेने पर मजबूर किया जाए। ठीक यही हालत है भारत के टेलीकॉम बाजार की है। एक विचित्र विरोधाभास का शिकार है यह सेक्टर। एक तरफ डिजिटल इंडिया के सपने, दूसरी तरफ देश के 60 करोड़ मोबाइल उपयोगकर्ता आज भी फीचर फोन पर निर्भर, जिनके लिए ‘डेटा’ एक अनचाही चीज है।
फिर भी उन्हें हर महीने जबरन डेटा वाला कॉम्बो पैक खरीदने को मजबूर किया जाता है। यह कोई बाजार की मांग नहीं, बल्कि संस्थागत डकैती है।फीचर फोन यूजर्स पर जबरन डेटा थोपा जा रहा, लेकिन उपभोक्ता खामोश। भारत में 1.17 अरब मोबाइल कनेक्शन हैं, पर 46-47 प्रतिशत से भी कम लोग स्मार्टफोन इस्तेमाल करते हैं। बाकी वो ग्रामीण, बुजुर्ग और कम आय वर्ग के लोग हैं, जिनकी जरुरत सिर्फ कॉल-एसएमएस तक सीमित है।
यानी वह साधारण फोन जिसमें स्मार्टफोन की सुविधा नहीं। मगर जियो, एयरटेल जैसी कंपनियों का रवैया साफ है, कॉम्बो पैक लो, वरना सिम बंद! हैरत की बात है कि बीएसएनएल भी इसमें शामिल है और जो स्मार्टफोन पर काम करते हैं, वह भी इस लूट से प्रभावित हैं। मसलन, मल्टी-सिम यूजर्स की दुर्गति देख लें, जहां एक सिम का डेटा इस्तेमाल होता है, बाकी का पैसा बर्बाद। यह ‘डिजिटल इंडिया’ नहीं, ‘डिजिटल डकैती’ है।ऐसी कम्पनियां अपने उपभोक्ता की आवश्यकता के लिए उन्हें केवल फोन करने या केवल डेटा की सुविधा क्यों नहीं बेचती है।
क्या आपको नहीं लगता है कि यह तो सरासर दादागिरी है। आप चाहे कुछ भी चिल्लाएं, लेकिन आपको सिम के साथ डेटा लेना ही होगा। हर कीमत पर। और यह गुंडागर्दी हर कम्पनी कर रही है, चाहे वह जियो हो, एयरटेल या फिर बीएसएनएल।बीएसएनएल का नाम ‘विश्व-विजेता’ का खिताब रखता था, लेकिन आज भट्ठा बैठी हालत में है। बीएसएनएल को इतना जर्जर बना दिया गया है कि न तो उसका नम्बर मिलता है और न ही उसके डेटा में कोई दम। कनेक्टिविटी के मामले में सुपर-फलॉप कम्पनी है बीएसएनएल।
ऐसी हालत में जियो या एयरटेल ही विकल्प है। लेकिन इन दोनों की कीमत बीएसएनएल के मुकाबले ढाई गुना तक ज्यादा है।बीएसएनएल लें तो आपका कोई काम ही नहीं चल सकेगा और जियो-एयरटेल लें तो घर का बजट यानी खाना-पीना तक दूभर। जियो वाली कम्पनी तो दुनिया की सबसे बडी लुटेरी है। उसके बेटे की शादी होती है तो उसमें अरबों का खर्चा करते हैं अम्बानी, लेकिन उसकी पूरी भरपाई आम उपभोक्ता के जेब पर डकैती करके निकालते हैं।हैरत की बात है कि इस पर कोई सवाल भी नहीं उठाता है। सब के सब खामोश।
इस पतन के पीछे कोई दुर्घटना नहीं, बल्कि सुनियोजित साजिश है। मकसद था जियो समेत निजी क्षेत्र को बढाया जाए। लेकिन इसके चलते बीएसएनएल मरणासन्न हो गया।बीएसएनएल के रिटायर्ड निदेशक के मुताबिक सरकार ने ‘आत्मनिर्भरता’ के नाम पर बीएसएनएल को वैश्विक वेंडर्स (नोकिया, एरिक्सन) से तकनीक आयात करने से रोक दिया। टेंडर ब्लॉक होने से कंपनी 4जी में 5 साल पिछड़ गई। आज नतीजा सामने है।
जियो-एयरटेल 5जी पर राज कर रहे हैं, जबकि बीएसएनएल का 5जी जयपुर-चेन्नई जैसे चंद शहरों में ‘ट्रायल’ के चक्कर में फंसा है। लखनऊ जैसे बड़े शहर में भी बीएसएनएल 5जी नदारद। सबसे बड़ा आघात बीएसएनएल के बुनियादी ढांचे की इस खुली लूट से होता है। रिपोर्ट्स बताती हैं कि निजी कंपनियां बीएसएनएल के हजारों टावर इस्तेमाल कर रही हैं, लेकिन कई मामलों में यह इस्तेमाल ‘मुफ्त’ या नाममात्र के शुल्क पर है।जियो जैसी कंपनियों ने हजारों बीएसएनएल टावर लीज पर ले रखे हैं, पर भुगतान में हेराफेरी के आरोप लगते रहे हैं। यह सार्वजनिक संपत्ति की खुली लूट है।
हालांकि इस लूट की शुरुआत तो रिलायंस फोन की सर्विस से ही हो गयी थी। फैजाबाद के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि उनके पूरे रीजन में ऑप्टिकल सर्विस लगाने के लिए सडकें खोदी गयीं, उसमें बीएसएनएल की लाइनें बुरी तरह प्रभावित हुईं। लेकिन रिलायंस ने न तो सडकों को खोदने की इजाजत ली, न उसे ठीक करने की जरुरत, न उसके लिए क्षतिपूर्ति की और न ही बीएसएनएल को उसके नुकसान की अदायगी की। यह पूरे देश में हुआ।टेलीकॉम की इस लूट पर निगरानी का जिम्मा है ट्राई यानी दूरसंचार नियामक संगठन पर, लेकिन आज हालत यह है कि ट्राई की भूमिका भी केवल ‘कागजी शेर’ बन गयी है।
न तो वहां कोई शिकायत आती है, न ट्राई उसे सुनता है और न ही सरकार उस पर कोई कार्रवाई करता है।
दिसंबर 2024 में ट्राई ने वॉइस-ओनली प्लान लाने के निर्देश दिए थे, लेकिन निजी कंपनियों ने इसे ‘डिजिटल इंडिया के लिए खतरा’ बताकर विरोध किया। सवाल है कि जब ट्राई का काम उपभोक्ता हितों की रक्षा करना है, तो वह इस ‘दादागिरी’ के आगे बेनाम क्यों है? तो दो-टूक बात यही है कि टेलीकॉम एक साजिश है जिसमें हम सभी मोहरे हैं। कोई लूट रहा है, तो कोई लुट रहा है और सब के सब खामोश होकर अपना काम कर रहे हैं।
भारतीय टेलीकॉम बाजार का चक्रव्यूह स्पष्ट है। जानबूझकर कमजोर किया गया। निजी कंपनियों को बाजार पर एकाधिकार मिल गया। उपभोक्ता के पास कोई वास्तविक विकल्प नहीं और ट्राई अपनी भूमिका निभाने में विफल। यह केवल व्यावसायिक मॉडल का सवाल नहीं, बल्कि संचार के मूलभूत अधिकार का मामला है। जब तक बीएसएनएल को मजबूत नहीं किया जाता और ट्राई जिम्मेदारी नहीं निभाती, तब तक ‘डिजिटल इंडिया’ का सपना, ‘डिजिटल डकैती’ की भेंट चढ़ता रहेगा।

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