सियासत का अयोध्या कांड… “मुल्ला” बनकर मजबूत हुए नेताजी
# बचपन की चवन्नी की टीस ने खत्म करा दी चुंगी…
स्पेशल डेस्क।
रवि शंकर वर्मा
तहलका 24×7
नाम मुलायम सिंह यादव… जिंदगी और सियासत का मूलमंत्र संघर्ष। सियासी सफर में कई ऐसे पड़ाव आए जब वे समझौता कर सफलता के नए रास्ते तलाश सकते थे, खलनायक का तमगा पाने की जगह नायक की भूमिका चुन सकते थे… मगर रास्ता चुना तो संघर्ष का। कई ऐसी घटनाएं हैं, फैसले हैं, जिनके जिक्र के बिना न तो मुलायम को समझा जा सकता है और न ही देश-प्रदेश में हुए सियासी बदलाव को और न ही कांग्रेस के पतन व भाजपा के उभार को। एक नहीं, अनेक ऐसे प्रसंग हैं जो उनकी दृढ़ता और जुझारूपन का प्रमाण हैं।
# सियासत का अयोध्या कांड… “मुल्ला” बनकर हुए मजबूत
बात 1990 के दशक की है। विश्व हिंदू परिषद के श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन के खिलाफ प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के कड़े तेवरों और अयोध्या में किसी परिंदा को भी पर न मारने देने की घोषणा तो दूसरी तरफ विहिप एवं श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति के हर हाल में श्रीराम मंदिर निर्माण के लिए अयोध्या पहुंचने के आह्वान तथा कारसेवा करने की घोषणा ने माहौल को तनावपूर्ण बना दिया था। पूरे प्रदेश में कर्फ्यू और बड़े पैमाने पर कारसेवकों की गिरफ्तारियां हुईं बावजूद इसके हजारों कारसेवकों की हर हाल में श्रीराम जन्मभूमि पहुंचने की जिद में अयोध्या पहुंच तो गए पर, सुरक्षा बलों से संघर्ष के बीच की गई फायरिंग से कई की मौत हो गई। सुरक्षा बलों के गोली चलाने और कारसेवकों की मौत से नाराज तमाम लोगों ने मुलायम के नाम के आगे मुल्ला जोड़ दिया। उन्हें हिंदुओं का विरोधी और मुसलमानों का हितैषी बताया जाने लगा। पर, मुलायम ने चतुराई से इन आलोचनाओं को भी अपना वोट बैंक मजबूत करने का राजनीतिक हथियार बना डाला।
# जिस दांव से कांग्रेस कहीं की न रही
बोफोर्स तोप एवं पनडुब्बी खरीद घोटालों के विरोध में चल रहे आंदोलन से नायक बनकर उभरे मुलायम को इस घटना ने ज्यादातर हिंदुओं की नजर में खलनायक बना दिया। सुरक्षा बलों के गोली चलाने और कारसेवकों की मौत से नाराज तमाम लोगों ने मुलायम के नाम के आगे मुल्ला जोड़ दिया। उन्हें हिंदुओं का विरोधी और मुसलमानों का हितैषी बताया जाने लगा। तमाम राजनीतिक विश्लेषकों का मानना रहा कि इस घटना से देश की सियासत में हुई वोटों की नई गोलबंदी ने सिर्फ भाजपा को ही मजबूत नहीं किया बल्कि मुलायम सिंह यादव के नाम के आगे जुड़े मुल्ला शब्द ने मुलायम को भी मुसलमानों के बीच मजबूत कर दिया। उन्हें मुसलमानों का खुलेआम महबूब नेता बताया जाने लगा। उधर, कारसेवकों पर गोली चलाने के विरोध में भाजपा ने मुलायम सरकार से समर्थन वापस ले लिया तो हिंदुओं की नाराजगी की अनदेखी करते हुए कांग्रेस ने उस सरकार को जिस तरह समर्थन दिया उसने हिंदुओं के बड़े वर्ग को उससे नाराज कर दिया।
शिलान्यास को अनुमति से लेकर अयोध्या आंदोलन के अन्य घटनाक्रम पर कांग्रेस की तत्कालीन केंद्र एवं मुलायम से पहले प्रदेश की राज्य सरकार के एक कदम आगे और दो कदम पीछे की नीति से मुसलमान तो पहले ही उससे नाराज थे। कांग्रेस से हिंदू और मुसलमान दोनों छिटक गए। मुलायम ने फिर एक दांव चला और कुछ ही महीने बाद अचानक एक दिन अपनी सरकार का त्यागपत्र देकर कांग्रेस को एक और झटका दे दिया। जिस कारण अयोध्या आंदोलन का घटनाक्रम प्रदेश की सियासत का टर्निंग प्वाइंट बन गया और मुलायम प्रदेश की राजनीति के अहम किरदार बन गए। यादव जातीय आधार पर मुलायम से जुड़े तो मुसलमानों की लामबंदी ने नेता जी को किसी दूसरे नेता के नेतृत्व वाली पार्टी में रहकर सांसद, विधायक बनने के बजाय समाजवादी पार्टी बनाने का रास्ता दिखा दिया। नतीजा कांग्रेस सिफर पर, समाजवादी पार्टी शिखर पर..
# बचपन की चवन्नी की टीस ने खत्म करा दी चुंगी…
मुलायम सिंह यादव पहली बार मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने एक झटके में प्रदेश भर में चुंगी खत्म करने का फैसला कर दिया। दरअसल, चुंगी खत्म करने के फैसले के पीछे मुलायम से जुड़ा दिलचस्प किस्सा है। जो यह बताता है कि वे ऐसे नेता थे जो सत्ता में शीर्ष पर पहुंचने के बावजूद गांव, गरीबों तथा किसानों की उन दुष्वारियों को जीवन भर नहीं भूले।
भाजपा नेता अमित पुरी बताते हैं कि नेता जी अर्थात मुलायम सिंह यादव के लंबे समय तक काम कर चुके भगवती सिंह ने एक बार उन्हें यह किस्सा सुनाया था। उन्होंने बताया था, मुलायम सिंह जी किशोर थे। एक दिन बैलगाड़ी पर धान लादकर शहर में एक व्यापारी के यहां बेचने जा रहे थे। जब वह शहर के नजदीक पहुंचे तो चुंगी चौकी पर रोक लिए गए। वहां के कर्मचारियों ने उनसे चुंगी शुल्क के रूप में चवन्नी (25 पैसे) की मांग की। मुलायम ने कहा, अभी पैसे नहीं है। व्यापारी के यहां धान बेचकर लौटते वक्त दे दूंगा। पर, कर्मचारी अड़ गया.. मुलायम सिंह जी बैलगाड़ी वहीं छोड़कर व्यापारी के यहां गए और उससे चवन्नी उधार मांगी और लौटकर चुंगी चुकाई। धान लेकर व्यापारी के यहां पहुंचे। वहीं पर बैठे कई किसानों तथा व्यापारियों के सामने उन्होंने ऐलान किया, मैं जिस दिन मुख्यमंत्री बनूंगा तो इन चुंगियों को खत्म कर दूंगा। लोगों ने किशोर मुलायम की यह बात सुनी और हंस दिया। पर, मुलायम को यह बात याद रही और अगस्त 1990 में चुंगी समाप्त करने का आदेश जारी हो गया।